राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा की पढ़ाई से जोड़ने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि गुरुकुल शिक्षा का अर्थ केवल आश्रम में रहना नहीं है, बल्कि देश की परंपराओं को जानना और समझना है. इस दौरान उन्होंने कहा कि तीन बातों को छोड़कर संघ में सब बदल सकता है. पहली- व्यक्ति निर्माण से समाज के आचरण में परिवर्तन संभव है. दूसरी- पहले समाज को बदलना पड़ता है, इससे व्यवस्था ठीक हो जाती है. तीसरी- हिंदुस्थान हिंदू राष्ट्र है.
मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र एक सत्य है, इसे आपको मानना होगा. साथ ही कहा कि हमको जितनी प्रेरणा राम प्रसाद बिस्मिल से मिलती है, उतनी ही अशफाक उल्ला खां से मिलती है.
आरएसएस के शताब्दी समारोह के दौरान पूछे गए एक सवाल पर मोहन भागवत ने कहा कि वे संस्कृत को अनिवार्य बनाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन परंपरा और इतिहास समझना जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि वे आधुनिक शिक्षा और तकनीक के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि ये लोगों पर निर्भर करता है कि वे इसका इस्तेमाल किस तरह करें. उन्होंने कहा कि वैदिक काल के प्रासंगिक 64 पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए और गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए, न कि उसे प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए.
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सराहना करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत पहले ही नष्ट हो चुकी थी. नई शिक्षा व्यवस्था इसलिए शुरू की गई क्योंकि हम हमेशा विदेशी आक्रांताओं, जो उस समय के राजा थे, उनकी गुलामी में रहे. वे इस देश पर शासन करना चाहते थे, विकास नहीं. इसलिए उन्होंने सारी व्यवस्थाएं इस बात को ध्यान में रखकर बनाईं कि हम इस देश पर कैसे शासन कर सकते हैं, लेकिन अब हम स्वतंत्र हैं, इसलिए हमें सिर्फ़ राज्य नहीं, बल्कि जनता को भी चलाना है.