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सिद्धारमैया और शिवकुमार में ठनी, अब कांग्रेस हाईकमान करेगा कर्नाटक का फैसला

कर्नाटक कांग्रेस में 2.5 साल के सत्ता-साझेदारी समझौते पर नया विवाद खड़ा हो गया है. सिद्धारमैया ने पहले वादा किया था, पर अब पूरा कार्यकाल चाह रहे हैं. हाईकमान दबाव में है और शिवकुमार धैर्य से इंतज़ार कर रहे हैं. आने वाले हफ्तों में तय होगा कि समझौता लागू होगा या नहीं.

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 सिद्धारमैया के बदले सुर से कर्नाटक कांग्रेस में बढ़ी हलचल (Photo-ITG)
सिद्धारमैया के बदले सुर से कर्नाटक कांग्रेस में बढ़ी हलचल (Photo-ITG)

कर्नाटक कांग्रेस में सत्ता-साझेदारी का विवाद एक बार फिर गरमाया है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हाईकमान डीके शिवकुमार को 2.5 साल इंतजार करने के लिए मना सकता है, तो वही सिद्धारमैया को वादा निभाने के लिए राजी क्यों नहीं कर पा रहा?

आजतक को कांग्रेस के करीबी सूत्रों ने बताया है कि 2023 में सत्ता में लौटने के बाद दोनों नेताओं के बीच यह फॉर्मूला तय हुआ था कि सिद्धारमैया पहले आधा कार्यकाल और शिवकुमार बाकी 2.5 साल मुख्यमंत्री रहेंगे.

बंद कमरे में हुई बातचीत में शिवकुमार ने शुरुआती कार्यकाल की मांग की थी, जिसे सिद्धारमैया ने वरिष्ठता का हवाला देकर ठुकरा दिया. लंबे संवाद के बाद समझौता हुआ और सिद्धारमैया ने डॉ. डीके सुरेश के सामने कहा था- “मैं सिद्धारमैया हूं, वादा निभाऊंगा. 2.5 साल पूरे होने से एक हफ्ते पहले इस्तीफा दे दूंगा.”

पार्टी के अंदर बढ़ता सेंटीमेंट

लेकिन समय के साथ सिद्धारमैया का रुख बदलता गया. जुलाई 2025 तक उन्होंने बार-बार कहा- “सरकार पूरे पांच साल चलेगी.” हालांकि 22 नवंबर को मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाक़ात के बाद उनका सुर नरम पड़ा और उन्होंने निर्णय हाईकमान पर छोड़ दिया.

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पार्टी के अधिकारियों के करीबी सूत्रों का कहना है कि अगर डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बन भी जाते हैं, तो भी इतिहास अब सिद्धारमैया पर पार्टी को कुछ वापस देने की नैतिक ज़िम्मेदारी होगी. एक बाहरी व्यक्ति के तौर पर कांग्रेस में आने के बावजूद, सिद्धारमैया कर्नाटक में अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें पार्टी के सबसे ताकतवर पदों का पूरा फ़ायदा मिला.

पार्टी के अंदर बढ़ती राय है कि कांग्रेस ने सिद्धारमैया को लगातार बड़ा कद दिया. लगभग आठ साल मुख्यमंत्री, पांच साल नेता विपक्ष, और 1.5 साल समन्वय समिति प्रमुख के रूप में. ऐसे में अब नैतिक रूप से उन्हें पार्टी को लौटाना चाहिए.

वहीं, डीके शिवकुमार कौशल और धैर्य के साथ इंतजार कर रहे हैं. पार्टी में मान्यता है कि कर्नाटक का सत्ता-संतुलन राजस्थान या छत्तीसगढ़ जैसा नहीं है. यहां बगावत की कीमत कहीं अधिक है. आने वाले हफ्ते तय करेंगे कि यह 2.5 साल का समझौता सच बनेगा या भारतीय राजनीति की एक और अधूरी कहानी बनकर रह जाएगा.

दिल्ली से संदेश

शिवकुमार क करीबी मंत्रियों का कहना है कि कैबिनेट बनाने के दौरान, कांग्रेस नेताओं ने मंत्री पद के उम्मीदवारों से कहा था कि वे 2.5 साल तक काम करेंगे, जिसके बाद जब शिवकुमार को लीडरशिप मिलेगी तो विभागों में फेरबदल किया जाएगा.

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सिद्धारमैया का बदलता रुख

पहले, सिद्दारमैया मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहते थे कि कांग्रेस सरकार पांच साल पूरे करेगी. 2 जुलाई, 2025 को उनका यह रुख और सख्त हो गया, जब उन्होंने ऐलान किया कि वह पूरे टर्म के लिए मुख्यमंत्री बने रहेंगे. 5 जुलाई से 21 नवंबर तक, उन्होंने लगातार अपने इस रुख का बचाव किया.

लेकिन 22 नवंबर को बेंगलुरु में मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ देर रात हुई मीटिंग के बाद, उनके तेवर नरम पड़ गए. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “पावर-शेयरिंग के मुद्दे पर हाईकमान फैसला करेगा.” 24 नवंबर को, उन्होंने आगे कहा, “अगर हाईकमान चाहेगा, तो मैं जारी रखूंगा.”

पैटर्न और यादें

पार्टी के अंदरूनी लोगों को याद है कि सिद्धारमैया ने पहले भी इसी तरह के पब्लिक दावे किए थे. 2013 इसे अपना आखिरी चुनाव कहा था और 2018 चुनाव लड़ा. चामुंडेश्वरी सीट से हारे लेकिन बादामी सीट से जीत हासिल की. 2023 फिर से पिछले चुनाव में लड़े CM के तौर पर पहले 2.5 साल मांगे. आलोचकों का आरोप है कि यह रणनीतिक उलटफेर का एक पैटर्न है.

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आगे क्या होगा?

गेंद अब पूरी तरह से कांग्रेस हाईकमान के हाथ में है. डेडलाइन पास आने और अंदरूनी गुटों में खींचतान होने के साथ आने वाले हफ्ते तय करेंगे कि 2.5 साल का समझौता हकीकत बनेगा या भारतीय राजनीति में एक और फीका पड़ता वादा बनकर रह जाएगा.

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