जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते केंद्र सरकार ने उन्हें हटाने की प्रक्रिया को लेकर तेजी दिखाई है. सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इस मुद्दे पर लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से बात की है और आम राय बनाने की कोशिश की है.
सूत्रों के अनुसार इस फैसले के पीछे सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक समिति की रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया कि जस्टिस वर्मा के आचरण को देखते हुए उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की जानी चाहिए. इसी आधार पर सरकार ने विपक्षी दलों को भी इस प्रस्ताव पर साथ लाने की रणनीति बनाई है.
50 सांसदों के हस्ताक्षर ज़रूरी
जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत संसद में प्रस्ताव लाया जाएगा, जिसके लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं. सूत्रों का कहना है कि सरकार अगले सप्ताह से हस्ताक्षर अभियान शुरू करेगी. जस्टिस वर्मा के रिमूवल प्रस्ताव पर विपक्षी दलों के बड़े नेताओं के हस्ताक्षर लिए जाएंगे.
तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपेगी समिति
फिलहाल यह तय नहीं हुआ है कि यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश होगा या राज्यसभा में, लेकिन जिस सदन में यह प्रस्ताव रखा जाएगा, उसके सभापति (स्पीकर/चेयर) एक जांच समिति बनाएंगे, इस समिति को तीन महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपनी होगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई होगी. बता दें कि संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा.
क्या था मामला?
दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में होली की रात 14 मार्च को आग लग गई थी. उस वक्त वे और उनकी पत्नी भोपाल में थे. घर पर उनकी बेटी और बुजुर्ग मां मौजूद थीं. आग बुझाने पहुंचे अग्निशमन कर्मियों ने एक स्टोर रूम में नकदी से भरे बोरों में आग लगी हुई देखी. इसके बाद घटनास्थल से दो वीडियो सामने आने पर मामले ने तूल पकड़ा.