सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ज़ोर दिया कि ज़मीनी हक़ीक़तों को ध्यान में रखा जाना चाहिए. भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने कार्यवाही के दौरान पहलगाम मुद्दे के महत्व पर ज़ोर दिया.
अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी कर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका पर आठ हफ़्तों के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 हफ्ते बाद होगी, जब केंद्र सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी.
CJI जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, "पहलगाम जैसी घटनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता."
'यह मुद्दा अभी क्यों...'
मामले में SG तुषार मेहता ने फिलहाल के समय में पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग का विरोध करते हुए कहा, "जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन कुछ अजीबोगरीब परिस्थितियां हैं. हमने चुनावों के बाद राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था लेकिन हमारे देश के उस हिस्से की अजीब स्थिति है. मुझे नहीं पता कि यह मुद्दा अभी क्यों उठाया जा रहा है?"
मोदी सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह याचिका सुनवाई के लायक नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार ने चुनाव और राज्य का दर्जा बहाल करने का आश्वासन दिया था. उन्होंने यह भी कहा कि देश के इस हिस्से में 'अजीबोगरीब स्थितियां' हैं और इस वक्त मामले को 'गड़बड़' नहीं करना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल ने पहलगाम में हुई हाल की घटनाओं का भी जिक्र किया.
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षाविद ज़हूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा पिछले साल दायर की गई इस याचिका में केंद्र को दो महीने के अंदर राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
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याचिका में क्या मांग की गई है?
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने अदालत को राज्य का दर्जा बहाल करने का आश्वासन दिया था, लेकिन 21 महीने गुजर जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है. वहीं, केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं का विरोध किया है.
याचिका में कहा गया है, "राज्य का दर्जा बहाल करने में किसी भी तरह की देरी से जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की स्थिति गंभीर रूप से कमजोर हो जाएगी, जो संघवाद के सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है."
याचिका में यह भी कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए, "बिना किसी हिंसा, अशांति या सुरक्षा संबंधी किसी भी चिंता की घटना की सूचना नहीं मिली. इसलिए, सुरक्षा संबंधी चिंताओं, हिंसा या किसी अन्य अशांति की कोई बाधा नहीं है, जो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने/बहाली में बाधा उत्पन्न करे या उसे रोके, जैसा कि वर्तमान कार्यवाही में भारत संघ द्वारा आश्वासन दिया गया था."
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'लोकतांत्रिक अधिकार प्रभावित हुए...'
याचिकाकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि राज्य का दर्जा बहाल न होने से निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार का स्वरूप कमज़ोर हो जाएगा, खासकर जब विधानसभा के नतीजे 8 अक्टूबर, 2024 को घोषित किए जाएंगे. उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 'शीघ्र और यथाशीघ्र' राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देशों के बावजूद, केंद्र ने इसे जमीन पर लागू करने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की है.
याचिका में कहा गया है, "जम्मू और कश्मीर करीब पांच साल से एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में संचालित हो रहा है, जिससे जम्मू और कश्मीर के विकास में कई बाधाएं और गंभीर नुकसान हुए हैं और इसके नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकार प्रभावित हुए हैं."
बता दें कि 11 दिसंबर, 2023 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा और निर्देश दिया कि सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराए जाएं और 'जल्द से जल्द' राज्य का दर्जा बहाल किया जाए.