भारत-अमेरिका के बीच पिछले कई महीनों से रिश्तों में खटास की खबरें लगातार सुर्खियों में रही हैं. विशेष रूप से रूस से तेल खरीदे जाने से नाराज अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ ने दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ा दिया था. इस बीच, अमेरिका के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भारत के खिलाफ तीखी टिप्पणियां किए जाने से रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही थी. लेकिन शनिवार को अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना भड़काऊ रुख छोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति दोस्ती का कार्ड चला है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर विश्वास जताया. क्या यह दोनों लोकतंत्रों के बीच संबंधों को सुधारने का संकेत है? या फिर यह सिर्फ कूटनीति की अनिश्चितताओं का एक क्षणिक दृश्य है? यदि इस बातचीत को देखा जाए तो संकेत उत्साहवर्धक हैं और इन्हें सुलह की दिशा में पहला कदम माना जा सकता है.
इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका दौरा किया था. व्हाइट हाउस दौरे में ट्रंप ने उन्हें 'Our Journey Together' नामक किताब भेंट की थी, जिसमें ट्रंप के पिछली मुलाकातों की तस्वीरें संकलित थीं. हो सकता है कि ट्रंप शनिवार को इस किताब को पढ़ रहे हों, जिससे उन्हें भारत विरोधी बयानबाजी कम करने और यह जाहिर करने का मौका मिला कि वे हमेशा मोदी के दोस्त रहेंगे.
'भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया'
इससे एक दिन पहले ही ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की एक साथ तस्वीर पोस्ट की और कहा था कि ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया. उम्मीद करता हूं कि उनकी साझेदारी लंबी और समृद्ध हो. अगले कुछ ही घंटे बाद ट्रंप के दूसरे पोस्ट ने पूरी दुनिया को चौंका दिया और भारत के साथ रिश्तों में जम रही बर्फ को पिघलाने की दिशा में पहला कदम आगे बढ़ाया.
मोदी-पुतिन-शी की तस्वीरों से टेंशन में आया अमेरिका
दरअसल, चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) समिट में पीएम मोदी, शी जिनपिंग और पुतिन के बीच मुलाकात हुई थी. तीनों नेताओं के हंसते हुए और सौहार्दपूर्ण बातचीत की तस्वीरों ने अमेरिका को काफी प्रभावित किया. यही वजह है कि ट्रंप ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में भारत को खो देने की बात कही, लेकिन अगले ही दिन उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका ने भारत को चीन के हाथों खो दिया है.
ट्रंप ने फरवरी में हुई अपनी मुलाकात का जिक्र किया और कहा, जैसा कि आप जानते हैं, मोदी के साथ मेरी अच्छी बनती है. वे कुछ महीने पहले यहां आए थे. हम रोज गार्डन गए थे और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी अब तक सीधे तौर पर ट्रंप पर हमला करने से बचते रहे. शनिवार को उन्होंने ट्रंप के पोस्ट के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी. पीएम मोदी ने ट्वीट किया, राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक आकलन की मैं गहराई से सराहना करता हूं और पूरी तरह से उनका समर्थन करता हूं. भारत और अमेरिका के बीच बहुत ही सकारात्मक और दूरदर्शी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा कि पीएम मोदी अमेरिका के साथ साझेदारी को बहुत महत्व देते हैं. जहां तक राष्ट्रपति ट्रंप का सवाल है, पीएम के राष्ट्रपति ट्रंप के साथ हमेशा से बहुत अच्छे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं.
कैसे आई दोस्ती में दरार?
मोदी और ट्रंप के बीच आखिरी बातचीत 17 जून को हुई थी. इस बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने ट्रंप को साफ तौर पर बताया कि मई में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ट्रंप खुद का नॉमिनेशन चाहते थे. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के इनकार करने से रिश्ते में निर्णायक मोड़ देखने को मिला. इसी बीच, प्रधानमंत्री ने वॉशिंगटन में रुकने के ट्रंप के न्योते को भी अस्वीकार कर दिया. दरअसल, जब पीएम मोदी को अमेरिका आने का न्योता दिया गया, उसी समय पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर भी वॉशिंगटन में थे और उन्हें ट्रंप ने डिनर पर आमंत्रित किया गया था. ऐसे में माना जा रहा था कि ट्रंप पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ फोटो खिंचवाने का दबाव डालेंगे. भारत को यह कतई मंजूर नहीं था. विदेशी मीडिया में आई रिपोर्टस के अनुसार पीएम मोदी ने पिछले तीन महीनों में चार बार ट्रंप की कॉल लेने से इनकार कर दिया.
ट्रंप और उनके सहयोगियों की ओर से भारत के खिलाफ लगातार तीखी टिप्पणियां जारी रहीं. अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो भारत की अर्थव्यवस्था को 'मृत' बताकर खारिज कर दिया. राजनीतिक रूप से यह बेतुकी टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब भारत जापान को पीछे छोड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है.
दोनों देशों के रिश्तों में सबसे पहले तब खटास आई, जब अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल खरीदने पर भारी टैरिफ लगाया. यह दुनिया के किसी भी देश पर अमेरिका का सबसे बड़ा टैरिफ था. इसके अलावा भारत की कृषि और डेयरी सेक्टर में विदेशी निवेश के प्रति कड़े रुख ने अमेरिका के साथ लंबित व्यापार समझौते को भी रोक दिया. ट्रंप को उम्मीद थी कि एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने से रूस, यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर हो जाएगा. लेकिन, इस दांव का कोई फायदा नहीं हुआ.
भारत ने सीधा हमला करने से किया परहेज
जब यह तनाव बढ़ता जा रहा था, तब भारत ने सीधे तौर पर अमेरिका पर हमला करने या ट्रंप की आलोचना करने से परहेज किया. अपनी रैलियों में प्रधानमंत्री मोदी ने टैरिफ का मुद्दा कभी नहीं उठाया, बल्कि चतुराई से कहा कि सरकार अपने किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगी. इस तरह के बयानों ने पीएम मोदी को अपने 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे को फिर से दोहराने का मौका दिया. स्वतंत्रता दिवस पर उनका संदेश स्पष्ट था- भारत में बनाओ और भारत में खर्च करो.
कूटनीतिक मोर्चे पर भारत ने नया चैनल खोला और चीन के साथ अपने संबंधों को स्थिर करने के प्रयास तेज कर दिए. साल 2020 के गलवान सीमा संघर्ष के बाद से दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. पिछले महीने पीएम मोदी सात साल बाद पहली बार चीन गए, जहां उन्होंने और शी ने संबंधों को फिर से सुधारने पर जोर दिया. साथ ही भारत ने रूस में अपना विश्वास मजबूत किया.
रूस ने नई दिल्ली को तेल पर अतिरिक्त छूट की पेशकश की और अपने उत्पादों को मास्को में निर्यात करने के लिए रेड कारपेट बिछा दिया. SCO समिट के दौरान मोदी और पुतिन को रूसी राष्ट्रपति की लिमोजिन कार में एक साथ जाने की तस्वीरों ने अमेरिका को और ज्यादा टेंशन में ला दिया. अमेरिका एशिया में भारत के महत्व से भलीभांति परिचित है. यह एक ऐसी रणनीति है, जिसे अमेरिका के सभी राष्ट्रपतियों ने अपनाया है.
तनाव के बीच बातचीत पर ब्रेक नहीं...
कूटनीतिक तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता चुपचाप जारी रही. हाल ही में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने विश्वास जताया है कि भारत और अमेरिका नवंबर तक व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे देंगे. शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी इस बात पर जोर दिया कि भारत-अमेरिका संबंध अक्षुण्ण हैं.
हालांकि उन्होंने नवारो की तीखी टिप्पणियों पर पलटवार भी किया. ये घटनाक्रम बताते हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के बीच संबंध अभी भी टूटे नहीं हैं. आने वाले महीने तय करेंगे कि ट्रंप और मोदी की व्यक्तिगत केमिस्ट्री भारत-अमेरिका संबंधों को फिर से पटरी पर ला पाएगी या नहीं.