
बांग्लादेश में 19 दिसंबर को 27 साल के हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की भीड़ द्वारा बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या किए जाने की घटना ने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले लगातार चिंता का विषय रहे हैं. विदेश मंत्रालय के डेटा के अनुसार, 2022 में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर 47 हमले दर्ज किए गए, जो 2023 में बढ़कर 302 हो गए, और फिर 2024 में तेज़ी से बढ़कर 3200 हो गए.
चटगांव में हिंदू परिवार के घर में आग लगाई गई
मंगलवार को, कुछ लोगों ने चटगांव में एक हिंदू परिवार के घर में आग लगा दी. आग में परिवार के पालतू जानवर मारा गया साथ ही घटनास्थल से एक धमकी भरा नोट भी मिला, जिसमें हिंदुओं पर इस्लाम विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया था और गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई थी. अगस्त 2024 में, बांग्लादेशी-अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक शफकत रब्बी ने IndiaToday.In को बताया, "बांग्लादेश में दशकों से कम तीव्रता वाले सांप्रदायिक तनाव और हिंदुओं के अवसरवादी आर्थिक शोषण का इतिहास रहा है. गरीब हिंदू लोगों की ज़मीन हड़पना भेदभाव का सबसे आम रूप है."
भारत के विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने फरवरी 2025 के शीतकालीन संसद सत्र में कहा था कि पिछले दो महीनों (26 नवंबर, 2024 से 25 जनवरी, 2025 तक) के दौरान, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों की 76 घटनाएं सामने आई हैं. अगस्त से, बांग्लादेश में हिंदुओं की 23 मौतें और हिंदू मंदिरों पर हमलों की 152 घटनाएं सामने आई हैं. उन्होंने यह भी बताया कि 10 दिसंबर, 2024 को बांग्लादेश सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमलों के 88 मामलों के सिलसिले में 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और पुलिस जांच में 1254 घटनाओं की पुष्टि हुई है.

बांग्लादेश में घटती चली गई हिंदू आबादी
बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा के मामलों में हाल के वर्षों में जिस तरह की बढ़ोतरी देखी जा रही है, वह केवल तात्कालिक कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, बल्कि देश की सामाजिक-जनसांख्यिकीय संरचना में दशकों से चल रहे बदलावों से भी गहराई से जुड़ी हुई है. सरकारी जनगणना के आंकड़े इस बदलाव की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं और बताते हैं कि किस तरह समय के साथ अल्पसंख्यक समुदायों की हिस्सेदारी लगातार सिमटती चली गई है.
1974 की जनगणना के अनुसार, उस समय बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 13.5 प्रतिशत थी, जबकि मुसलमानों की संख्या 85.4 प्रतिशत दर्ज की गई थी. इसके बाद हर दशक में यह अंतर और बढ़ता गया.2022 की जनगणना तक पहुंचते-पहुंचते मुस्लिम आबादी बढ़कर 91.08 प्रतिशत हो चुकी थी, वहीं हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 7.96 प्रतिशत रह गई.यह पहला मौका था जब देश में हिंदू आबादी का अनुपात आठ प्रतिशत से भी नीचे चला गया.

ये आंकड़े एक साफ और लगातार दोहराए जाने वाले पैटर्न की ओर इशारा करते हैं जैसे-जैसे वर्षों में बांग्लादेश की मुस्लिम आबादी का अनुपात बढ़ा है, वैसे-वैसे हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की हिस्सेदारी घटती गई है. इस जनसांख्यिकीय बदलाव के साथ-साथ, अल्पसंख्यकों पर रिपोर्ट किए गए हमलों, हिंसा, लूटपाट और उत्पीड़न की घटनाओं में तेज बढ़ोतरी ने स्थिति को और चिंताजनक बना दिया है. जनसंख्या में हो रहे लंबे समय के बदलाव और बढ़ती हिंसा की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के सुरक्षित और सम्मानजनक अस्तित्व को लेकर गंभीर और व्यापक स्तर पर विचार किए जाने की आवश्यकता है.
‘हम जिंदा हैं, लेकिन लाशों की तरह जी रहे हैं’
आजतक को दिए एक इंटरव्यू में बांग्लादेश में एक हिंदू व्यक्ति ने वहां हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रहे अपराधों पर अपना दुख जताया. उन्होंने कहा,"हम जिंदा हैं... लेकिन चलती-फिरती लाशों की तरह जी रहे हैं." अपनी सुरक्षा के डर से, उन्होंने अपना चेहरा छिपा लिया और कहा, "अगर आज किसी को पता चल गया कि मैं कौन हूं, तो कल सुबह मेरी आखिरी सुबह हो सकती है."
धमकियां, परिवारों को भागने पर मजबूर कर रही हैं
पिछले कुछ हफ्तों में, चटगांव से लेकर मैमनसिंह तक हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की कई घटनाएं सामने आई हैं. सबसे गंभीर मामले चटगांव के दूरदराज के इलाकों से सामने आए हैं. ऐसी ही घटना में पीड़ित ने aajtak.in को बताया कि 20 दिसंबर को चटगांव में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि वहां हिंदुओं को खुलेआम धमकियां दी जा रही हैं. उन्होंने दावा किया कि धमकी भरे पर्चे मिले हैं, जिनमें कहा गया है कि हिंदुओं को मार दिया जाएगा और इलाके से भगा दिया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि लोगों को उनके घरों में बंद करके आग लगा दी गई. परिवार अपनी जान बचाने के लिए झाड़ियों में छिपकर भाग गए.