चीन समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना के मामलों में तेजी देखने को मिली है. इन देशों में ओमिक्रॉन का नए वेरिएंट BF.7 बहुत तेजी से फैल रहा है. ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि कोरोना पॉजिटिव सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग की जाए. लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग कैसे की जाती है, ये जानने के लिए आजतक की टीम दिल्ली में कोरोना के सबसे बड़े अस्पताल एलएनजेपी की लैब पहुंची.
दिल्ली के लोकनाय जयप्रकाश अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि सरकार के दिशा निर्देशानुसार हर सैंपल का जीनोम सीक्वेंसिंग किया जा रहा है. अब तक कोई भी BF.7 का वेरिएंट नहीं मिला है. उन्होंने इस प्रक्रिया के बारे में बताया कि सबसे पहले RT-PCR सैंपल को लैब में लाया जाता है. उसके बाद सैंपल से RNA निकालकर इसे -80 डिग्री के तापमान वाले फ्रिज में रखकर stabilize किया जाता है. इसके बाद सीधे जीनोम सीक्वेंसिंग लैब में लाया जाता है जहां पर RNA प्रोसेसिंग की प्रक्रिया शुरू होती है.
RNA को DNA में बदला जाता है
RNA प्रोसेसिंग में RNA को DNA में तब्दील किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि RNA बहुत जल्दी रिएक्ट कर जाता है जिसके कारण उस पर किसी भी तरह का टेस्ट करना मुमकिन नहीं है. इसलिए इसे DNAमें कन्वर्ट किया जाता है. DNA में कन्वर्ट हो जाने के बाद इसे फ्रेग्मेंटेशन और एमोलिफिकेशन के लिए भेजते हैं. इसमें पूरे RNA को खोला जाता है. उसके बाद फ्रैगमेंस्ट यानी टुकड़ों में बांट दिया जाता है. फ्रेग्मेंटेशन के बाद इंडेक्सिंग की प्रक्रिया होती है. इसमें हर सैंपल को नाम देकर टैग किया जाता है.
प्रक्रिया में एनालाइजर मशीन का अहम रोल
इसके बाद इसे सीक्वेंसिंग के लिए एनालाइजर मशीन में डाला जाता है. इस मशीन में पता चलता है कि सैंपल आगे की प्रक्रिया के योग्य है या नहीं. इसके बाद पूरे सैंपल को अलग-अलग तरीकों से स्टडी किया जाता है. मशीन में जीनोम में होने वाले बदलाव के बारे में पता चलता है. यह बदलाव पुराने वायरस से कितना अलग है यह भी बताता है. सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टर्स समझ पाते हैं कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ. गौर करने वाली बात यह है कि अब तक दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल की लैब में ज्यादातर सैंपल्स ओमिक्रॉन के ही आ रहे हैं, जो xxb family से हैं. हाल फिलहाल में कोई भी सैंपल B5 या B7 का नहीं पाया गया है.