भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ शुक्रवार को गोरखपुर में गोरखा युद्ध स्मारक के सौंदर्यीकरण कार्य और संग्रहालय का शिलान्यास किया. यह परियोजना 45 करोड़ रुपये की लागत से विकसित की जाएगी, जो न केवल गोरखा सैनिकों के बलिदान को सम्मान देगी बल्कि भारत-नेपाल के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को नई मजबूती प्रदान करेगी.
इस कार्यक्रम के दौरान 'भारत के सामने सुरक्षा चुनौतियां' विषय पर एक सत्र को संबोधित करते हुए सीडीएस अनिल चौहान ने कहा कि युद्ध और जियोपॉलिटिक्स को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता और युद्ध 'राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने का एक माध्यम है'. उन्होंने मई में पाकिस्तान के साथ हुए सैन्य टकराव का भी जिक्र किया.
सीडीएस चौहान ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमें पूर्ण स्वतंत्रता थी, जिसमें हमले की योजना बनाने से लेकर लक्ष्यों का चयन तक शामिल था. इस ऑपरेशन का उद्देश्य सिर्फ पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेना नहीं, बल्कि हमारी सहनशक्ति की सीमा रेखा खींचना था. यह एक मल्टी-डोमेन ऑपरेशन था, जिसमें साइबर वॉर भी शामिल था. मिलिट्री विंग्स के बीच कोऑर्डिनेशन और जॉइंट मोबिलाइजेशन इसका महत्वपूर्ण पहलू था.'
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बालाकोट के बाद भारत ने बदली वॉर स्ट्रैटेजी
जनरल अनिल चौहान ने कहा, 'बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने सबक सीखा. भारत ने लंबी दूरी के सटीक हमलों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि पाकिस्तान ने संभवतः अपनी हवाई रक्षा पर जोर दिया. उरी आतंकी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक में हमने जमीन के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश कर आतंकी शिविरों को नष्ट किया था. पुलवामा के बाद हमने खैबर पख्तूनख्वा में टारगेट सेट करके हवाई हमले किए. जब पहलगाम आतंकी हमला हुआ, तब तक हमने अपनी सटीक हमले की क्षमता को बढ़ा लिया था.'
सीडीएस चौहान ने कहा, 'हमने दुश्मन को चौंकाने और संयमित हमले की योजना बनाई थी और इसके लिए लोअर एयरस्पेस का इस्तेमाल करने की तैयारी की थी. लेकिन राजनीतिक नेतृत्व के साथ चर्चा में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि केवल ड्रोन और लॉइटरिंग म्यूनिशन हमारे राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा नहीं करेंगे. बहावलपुर और मुरिदके स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए हवाई हमले आवश्यक थे और इसके लिए राजनीतिक समर्थन और विवेक जरूरी थे. ऑपरेशन सिंदूर में हमें दोनों मिले, और संदेश स्पष्ट था... आतंकी शिविरों को नष्ट करो, लेकिन केवल तभी जवाबी कार्रवाई करो जब हमारी सेनाओं पर हमला हो.'
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उन्होंने कहा, 'जर्मनी के एक प्रसिद्ध राजनीतिक वैज्ञानिक ने कहा था कि युद्ध राजनीति का विस्तार है. युद्ध और भू-राजनीति को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता. युद्ध राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने का माध्यम है. लोकतंत्र में सेनाएं राजनीतिक नेतृत्व के अधीन काम करती हैं. जब सरकार मानती है कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए बल प्रयोग जरूरी है, तो मेरे जैसे सैन्य अधिकारी के दो कर्तव्य हैं: सरकार को बल प्रयोग के लिए अधिक विकल्प देना और सरकार का अपनी सेना पर भरोसा बढ़ाना ताकि वह बड़े निर्णय ले सके. आप सभी गलवान और बालाकोट हवाई हमलों से वाकिफ हैं- इनके बाद सरकार ने सेनाओं के लिए जरूरी उपकरणों की आपातकालीन खरीद की अनुमति दी थी.'
चीन के साथ सीमा विवाद सबसे बड़ी चुनौती
जनरल अनिल चौहान ने भारत के सामने चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा, 'देशों के सामने चुनौतियां क्षणिक नहीं होतीं; वे अलग-अलग रूपों में मौजूद रहती हैं. मेरा मानना है कि चीन के साथ सीमा विवाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती है और यह आगे भी बनी रहेगी. दूसरी बड़ी चुनौती पाकिस्तान की प्रॉक्सी युद्ध की रणनीति है, जिसे वह हजार घावों से भारत को कमजोर करने की रणनीति कहता है. क्षेत्रीय अस्थिरता भी चिंता का विषय है, क्योंकि भारत के लगभग सभी पड़ोसी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अशांति का सामना कर रहे हैं. एक अन्य चुनौती यह है कि युद्ध के क्षेत्र बदल गए हैं- अब इसमें साइबर और स्पेस डोमेन भी शामिल हैं. हमारे दोनों विरोधी (चीन और पाकिस्तान) परमाणु शक्ति संपन्न हैं, और उनके खिलाफ किस तरह के ऑपरेशन करने हैं, यह तय करना हमेशा एक चुनौती रहेगी.'
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CDS चौहान ने गिनाए चार बड़े राष्ट्रीय खतरे
भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा एक व्यापक और महत्वपूर्ण विषय है. अलग-अलग क्षेत्रों के लोग इसे अलग-अलग तरीके से देखते हैं- एक राजदूत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों पर ध्यान देता है, एक अर्थशास्त्री आर्थिक पहलुओं पर. मैं 44 साल से यह वर्दी पहन रहा हूं, और मेरा दृष्टिकोण अलग है. भारत के सबसे प्रसिद्ध यथार्थवादी रणनीतिक विचारक, आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र में चार प्रकार के राष्ट्रीय खतरों का वर्णन किया है: आंतरिक खतरे, शत्रु राष्ट्रों से बाहरी खतरे, बाहरी लोगों द्वारा समर्थित आंतरिक खतरे, और आंतरिक लोगों द्वारा समर्थित बाहरी खतरे. यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा आंतरिक और बाहरी दोनों खतरों के खिलाफ महत्वपूर्ण है.'