समय के खिलाफ रेस में ड्रोन ने एंबुलेंस को पछाड़ दिया है. एक ड्रोन ने ग्रेटर नोएडा के GIMS अस्पताल से दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज तक ब्लड बैग को सफलतापूर्वक पहुंचाया. हालांकि यह टेस्ट 2023 में किया जाना था, लेकिन ICMR के वैज्ञानिकों की टीम ने हाल ही में इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है.
ड्रोन से ब्लड डिलीवरी का ट्रायल
निगरानी करने वाली टीम ने पाया कि ड्रोन ने 35 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 15 मिनट में तय कर ली, जो एंबुलेंस से एक घंटा तेज़ है. जून में प्रकाशित ICMR की स्टडी, 'ब्लड डिलीवरी के लिए ड्रोन टेक्नोलॉजी को अपनाना' में इसकी क्षमता और स्थायित्व का पता लगाने की कोशिश की गई है.
स्टडी में कहा गया है कि लाइफ सेविंग ब्लड और उसके कॉम्पोनेंट के ट्रांसपोर्ट के लिए ड्रोन एक उम्मीद जगाने वाला ऑप्शन है. स्टडी का नतीजा यह निकला कि मेडिकल इमरजेंसी के हालात में ड्रोन सुरक्षित और कुशलतापूर्वक फर्स्ट रेसपॉन्स व्हीकल के तौर पर काम कर सकते हैं.
हेल्थ केयर में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
यह स्टडी ड्रोन द्वारा आंख के टिशू की डिलीवरी टाइम को करीब 70% कम करने के महीनों बाद की गई है. एक ड्रोन ने सोनीपत से झज्जर तक 38 किमी की दूरी सिर्फ 40 मिनट में तय की, जबकि सड़क मार्ग से इस यात्रा दो घंटे से ज्यादा का समय लगता है. दिल्ली में तो मच्छर जनित बीमारियों से लड़ने के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जाने लगा है.
ये भी पढ़ें: ड्रोन ट्रायल फेल! ऋषिकेश एम्स से ब्लड लेकर भेजा गया कोटद्वार, लैंडिंग के समय हुआ क्रैश
हालांकि, आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि चुनौतियों का आकलन करने के लिए और ज्यादा वैज्ञानिक साक्ष्य की जरूरत है, और ड्रोन के जरिए ट्रांसपोर्ट किए जाने वाले ब्लड की क्वालिटी का आकलन भी किया जाना जरूरी है.
ड्रोन के इस्तेमाल में बाधा क्या है?
इसके अलावा ड्रोन से ब्लड डिलीवरी की कुछ बाधाएं भी हैं, इनमें से कुछ स्वाभाविक हैं, कुछ को सुलझाना जरूरी है. जैसे रेगुलेटर बाधाएं, मौसम की स्थिति, बैटरी लाइफ, मेंटेनेंस, सुरक्षा संबंधी चिंताएं, लागत और मौजूदा हेल्थ केयर सिस्टम के साथ बेहतर कॉर्डिनेशन.
ड्रोन दूर-दराज के इलाकों में मेडिकल सप्लाई की किफ़ायती और तेज डिलीवरी करके हेल्थ केयर में क्रांति ला रहे हैं. भारत में, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का लक्ष्य 'आई-ड्रोन पहल के जरिए स्वास्थ्य सेवा को भविष्य के लिए तैयार' करना है.
लेकिन ड्रोन के जरिए ब्लड ट्रांसपोर्ट मानव अंगों के ट्रांसपोर्ट की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि ब्लड की क्वालिटी और सेफ्टी बनाए रखने के लिए सख्त टेंपरेचर कंट्रोल और हाई मेंटेनेंस की जरूरत होती है, जबकि ऑर्गन की संरक्षण संबंधी जरूरतें अलग होती हैं और कभी-कभार मांग की वजह से ऐसा होता है.
आईसीएमआर की स्टडी के मुताबिक ब्लड ट्रांसपोर्ट के लिए ड्रोन ट्रायल काफी हद तक सफल रहा. इसने यह दिखाया गया किया कि तय गाइडलाइंस का पालन करके ब्लड और उसके कॉम्पोनेंट का सेफ ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है.
क्या कहती है ICMR की स्टडी?
स्टडी में चार तरह के ब्लड कॉम्पोनेंट (जैसे होल ब्लड, पैक्ड रेड ब्लड सेल, फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा, या प्लेटलेट्स) को स्पेशल टेंपरेचर कंट्रोल बॉक्स वाले ड्रोन का इस्तेमाल करके सुरक्षित रूप से पहुंचाया गया. ड्रोन से डिलीवरी वैन की तुलना में बहुत तेज़ थी. ड्रोन से डिलीवरी में सिर्फ 15 मिनट लगे, जबकि वैन से उसी दूरी के लिए एक घंटे से ज़्यादा समय लगा.
ये भी पढ़ें: अब खाना मंगाएंगे तो ड्रोन लेकर आएगा, इन पांच शहरों में पूरी हुई तैयारी
एक स्पेशल ड्रोन, जो हेलीकॉप्टर की तरह उड़ान भर सकता है और उतर सकता है. साथ ही 40 किलोमीटर तक उड़ सकता है, का इस्तेमाल 4 से 6 ब्लड बैग और करीब 4 किलोग्राम वजन वाले कूल जैल पैक ले जाने के लिए किया गया, सभी उड़ानों में भारत के ड्रोन सुरक्षा नियमों का पालन किया गया.
सेफ रही ब्लड की क्वालिटी
स्टडी में कहा गया कि ट्रांसपोर्ट के दौरान रक्त को कोई नुकसान (जिसे हीमोलिसिस कहते हैं) नहीं हुआ. उड़ान के दौरान और उसके बाद भी तापमान सुरक्षित सीमा के भीतर रहा. हालांकि कुछ ब्लड कॉम्पोनेंट में कुछ छोटे-मोटे बदलाव देखे गए, लेकिन ये बदलाव ड्रोन और वैन ट्रांसपोर्ट दोनों में हुए. कुल मिलाकर, ब्लड की क्वालिटी सुरक्षित रही.
इसमें कहा गया है कि इमरजेंसी के हालात में फर्स्ट रेस्पॉन्स व्हीकल के तौर पर ड्रोन एक संभावित विकल्प है. स्टडी में आगे कहा गया है, 'लेकिन ड्रोन के जरिए ट्रांसपोर्ट के बाद ब्लड की कंडीशन, ऑपरेशनल चैलेंज और क्वालिटी पर पड़ने वाले असर के बारे में ज्यादा वैज्ञानिक सबूतों की जरूरत है.'
ड्रोन से ब्लड ट्रांसपोर्ट की चुनौतियां?
आईसीएमआर ने पुष्टि की है कि अगर सख्त गाइडलाइंस का पालन किया जाए तो ब्लड और उसके कॉम्पोनेंट को ड्रोन के ज़रिए सुरक्षित रूप से पहुंचाया जा सकता है. इसने हेमोलिसिस को रोकने, टेंपरेचर बनाए रखने, रक्त की क्वालिटी सुनिश्चित करने के लिए विशेष सिस्टम और रियल टाइम मॉनिटरिंग का इस्तेमाल करने की सिफारिश की गई है.
स्टडी में सलाह दी गई है कि फिलहान ड्रोन को लेकर ज्यादा वेलिडेशन की जरूरत है ताकि रेड ब्लड सेल्स, प्लाज्मा या प्लेटलेट्स को नुकसान न पहुंचे, और इस बात पर जोर दिया कि उड़ान से पहले की जांच काफी अहम है. एविएशन रेगुलेशन का पालन और एयर ट्रैफिक कंट्रोल के साथ कॉर्डिनेशन को ग्रामीण क्षेत्रों में सेफ ड्रोन ऑपरेशन के लिए अहम बताया गया है. अब इसके लिए एक देशव्यापी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क की जरूरत है.
क्या एंबुलेंस की जगह लेंगे ड्रोन?
भारत की ऊंची पहाड़ियों और मैदानी इलाकों की बनावट ड्रोन के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है. जर्नल ऑफ ट्रांसपोर्ट एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित 2025 की एक स्टडी में कहा गया है कि ड्रोन टेक्नोलॉजी की वर्तमान हाई कोस्ट, शहरी भीड़भाड़ और सीमित ग्रामीण ब्लड बैंक इंफ्रास्ट्रक्चर में बाधा पैदा करते हैं.
हालांकि, ड्रोन जल्द ही एंबुलेंस की जगह नहीं ले पाएंगे, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर वे उनसे आगे निकल सकते हैं. धुंध भरे पहाड़ों, ट्रैफ़िक जाम जैसे मुश्किल हालात में, ज़रूरतमंदों तक ब्लड पहुंचाने वाले ड्रोन बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं. लेकिन भारत में मेडिकल ड्रोन डिलीवरी की चुनौतियां कम हो सकती हैं.
स्टडी से पता चलता है कि ड्रोन सिर्फ़ निगरानी, हमले या शादी की फोटोग्राफी के लिए नहीं हैं. अब वे जान बचाने में भी मददगार साबित हो रहे हैं. इस वादे को साकार करने के लिए इस गेमचेंजर डिवाइस को एक रियल चांस मिलना चाहिए.