SC takes suo motu cognisance of Aravalli Range: अरावली हिल्स में खनन के मामले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के इस स्वत: संज्ञान मामले पर चीफ जस्टिस की अगुआई में तीन जजों की अवकाशकालीन पीठ करेगी सुनवाई. इस मामले में पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आर पी बलवान ने भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर रखी है.
सुप्रीम कोर्ट के स्वत: संज्ञान लेने से पर्यावरण हितैषियों और 20 नवंबर के निर्णय से चिंतित लोगों में निर्णय में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद जागी है. सुनवाई करने वाली तीन जजों की अवकाशकालीन पीठ में चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 100 मीटर अरावली में खनन के लिए जिस परिभाषा और शर्तों को स्वीकार किया उसके ही उच्चाधिकार प्राप्त पैनल ने पहले विरोध भी किया था. विशेषज्ञों का ये पैनल सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में वन संरक्षण के लिए अपने सुझाव देने के लिए बनाया था.
सरकार ने जिस 100 मीटर फॉर्मूले को अब मान्यता दिलवाई उसे सुप्रीम कोर्ट 15 साल पहले 2010 में खारिज कर चुका है. पर्यावरण विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस नई परिभाषा से अरावली की करीब 90 फीसद पर्वतमाला नष्ट हो सकती है. उससे खनन माफिया को फायदा मिलेगा.
राजस्थान और गुजरात के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा. हालांकि, केंद्र सरकार इन आरोपों को सिरे से खारिज कर चुकी है. भारतीय वन सर्वेक्षण यानी एफएसआई की परिभाषा अरावली की उन निचली पहाड़ियों को भी कवर करती है जिन्हें मंत्रालय के 100 मीटर के मापदंड द्वारा बाहर रखा गया है. वन सर्वेक्षण ने राजस्थान के 15 जिलों में फैले 40 हजार 491 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को तीन डिग्री ढलान वाली निचली अरावली पर्वत श्रृंखला माना है. इन्हें भी अरावली संरक्षण के दायरे में रखा गया था.
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13 अक्टूबर को, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF और CC) ने सुप्रीम कोर्ट को अरावली के लिए एक नई 100 मीटर की परिभाषा का प्रस्ताव रखा. अगले ही दिन शीर्ष अदालत की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने पीठ की सहायता कर रहे न्यायमित्र सीनियर एडवोकेट परमेश्वर को पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने सिफारिश पर विचार नहीं किया और न ही उसे मंजूरी दी.
समिति ने तो अपने पत्र में यहां तक लिखा कि भारतीय वन सर्वेक्षण की सिफारिश, शर्तों और परिभाषा पर ही अडिग रहना चाहिए जो अरावली पर्वत श्रृंखला और यहां के वन संरक्षण के लिए तय की गई हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को सरकार के उस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी जिसमें सौ मीटर से नीचे की पहाड़ियों में खनन की इजाजत दी गई थी.