रिलायंस ग्रुप के अध्यक्ष अनिल अंबानी मंगलवार को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समक्ष पेश हुए. उन्होंने कथित घोटाले से संबंधित दस्तावेज जमा करने के लिए जांच एजेंसी से 10 दिन का वक्त मांगा है. सूत्रों ने इंडिया टुडे टीवी को यह जानकारी दी है.
66 साल के बिजनेसमेन को नई दिल्ली स्थित ईडी मुख्यालय में बुलाया गया, जहां अनिल अंबानी के ग्रुप की कई कंपनियों से जुड़े कई धोखाधड़ी मामलों से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत उनका बयान दर्ज किया गया.
पूछताछ के दौरान, अनिल अंबानी ने ईडी अधिकारियों को बताया कि धोखाधड़ी मामले से जुड़े दस्तावेज़ और तथ्य जुटाने में उन्हें कम से कम सात से दस दिन लगेंगे. सूत्रों ने बताया कि उनकी गुजारिश पर, वित्तीय जांच एजेंसी उन्हें अगले सात से दस दिनों में फिर से तलब कर सकती है.
क्या है धोखाधड़ी का मामला?
यह धोखाधड़ी का मामला करीब 17 हजार करोड़ रुपये के बकाया लोन से जुड़ा है, जो अनिल अंबानी से जुड़ी कई कंपनियों द्वारा लिए गए थे. अधिकारी इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि फंड का ट्रांजैक्शन कैसे हुआ और इसे दूसरी जगह भेजने में कौन-कौन शामिल थे.
सूत्रों ने यह भी बताया कि पूछताछ के दौरान, अनिल अंबानी ने इस मामले में किसी भी तरह से शामिल होने से इनकार किया और कहा कि सभी फाइनेंशियल फैसले उनकी कंपनियों के इंटर्नल बोर्ड द्वारा लिए गए थे और बाद में उन्होंने ही उन पर हस्ताक्षर किए थे.
जांच एजेंसियों में ईडी और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और अन्य वित्तीय नियामक शामिल हैं. जांच एजेंसियों ने एक ऐसी घटना का पर्दाफाश किया है, जिसे अधिकारी पब्लिक फंड की हेराफेरी, हजारों करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग और फर्जी कंपनियों, पिछली तारीख के अनुमोदन, फर्जी बैंक गारंटी और विदेशी संपत्तियों के नेटवर्क के जिरए बैंकिंग सिस्टम में हेरफेर करने की 'सुनियोजित और सोची-समझी साजिश' बता रहे हैं.
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अनिल अंबानी को यह समन पिछले महीने ईडी द्वारा की गई एक बड़ी कार्रवाई के बाद भेजा गया है, जिसके दौरान केंद्रीय एजेंसी ने करीब 50 कंपनियों और रिलायंस ग्रुप के टॉप अधिकारियों सहित 25 लोगों से जुड़े 35 परिसरों की तलाशी ली थी. 24 जुलाई को शुरू हुई यह तीन दिन की कार्रवाई संदिग्ध वित्तीय अनियमितताओं और बैंक लोन के बड़े पैमाने पर हेराफेरी पर केंद्रित थी.
सेबी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए, ईडी ने आरोप लगाया है कि रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने अंतर-कॉर्पोरेट जमा (ICDs) की आड़ में रिलायंस ग्रुप की अन्य संस्थाओं को धनराशि ट्रांसफर की.