बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक नाबालिग लड़के की कस्टडी उसके पिता को दी गई थी. अदालत ने कहा कि बच्चे का वेलफेयर उसकी मां के साथ रहने में ही सबसे बेहतर होगा. अदालत ने कहा कि पर्सनल लॉ बच्चे के सात साल का होने के बाद पिता के दावे का समर्थन करते हैं, फिर भी लड़के का भावनात्मक आराम और कल्याण सबसे ज्यादा अहम है.
अदालत में अपील करने वाली मां ने निलंगा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के दिसंबर 2023 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 9 साल के बच्चे की कस्टडी उसके पिता को दी गई थी. मां जून 2020 से कर्नाटक के बीदर जिले में बच्चे के साथ अलग रह रही थी.
बच्चे के पिता ने क्या तर्क किया?
लातूर में रहने वाले पिता ने कथित उपेक्षा, मायके में अत्यधिक भीड़भाड़ का हवाला देते हुए, और मां के किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध होने का दावा करते हुए, बच्चे की कस्टडी के लिए आवेदन किया था.
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पिता ने तर्क दिया था कि मुस्लिम कानून के तहत कुछ शब्दावलियां हैं, जैसे विलायत-ए-तरबियात जिसका अर्थ है शारीरिक अभिरक्षा, पालन-पोषण हिज़ानत है और नाबालिग के शरीर पर पूरी निगरानी विलायत-ए-नफ़्स है. तर्क दिया गया कि मुख्य रूप से नाबालिग की देख-भाल एक निश्चित उम्र तक मां के पास होती है.
बच्चे की मां ने क्या कहा?
आरोपों का खंडन करते हुए, बच्चे की मां ने दावा किया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था और उसने कपड़े का एक छोटा सा बिजनेस चलाते हुए बच्चे के स्वास्थ्य और शिक्षा का पूरा ध्यान रखा था.
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जज ने अपने फैसले में क्या कहा?
दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद, जस्टिस शैलेश ब्रह्मे ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, सात साल की उम्र के बाद बच्चे की कस्टडी (हिज़ानत) मां से पिता को ट्रांसफर हो जाती है, लेकिन इस थ्योरी को बच्चे के कल्याण के संदर्भ में तौला जाना चाहिए. जज ने मां की गवाही और उसकी आय, बच्चे की स्कूली शिक्षा से संबंधित दस्तावेजों में विसंगतियों का उल्लेख किया, लेकिन इन खामियों को उसे कस्टडी से अयोग्य ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं माना.
जज ने अपने चैंबर में बच्चे से बातचीत की और पाया कि वह बुद्धिमान और अनमोल है, जिसका अपनी मां के साथ गहरा रिश्ता है और वह अपने पिता के साथ रहने से इनकार करता है. बेंच ने कहा, "कानूनी आधार पर नाबालिग की सामान्य संतुष्टि, स्वास्थ्य और अनुकूल परिवेश को देखते हुए, यह कोर्ट मां के हक़ में फैसला देना चाहती है. जब पर्सनल लॉ बच्चे के आराम और वेलफेयर से जुड़ा हो, तो मां का पक्ष ज्यादा प्रभावी होगा.
पिता को बच्चे से मिलने का अधिकार दिया गया, जबकि बच्चे की देखभाल करने की जिम्मेदारी मां को दी गई.