बॉम्बे हाई कोर्ट ने अकोला के एक परिवार के खिलाफ दर्ज FIR और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है, जिनपर उनकी बहू ने शादी के 12 साल बाद उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था. बहू ने ससुराल पक्ष पर आरोप लगाया कि उसकी शादी के वक्त अच्छे इंतजाम न होने की वजह से परिवार उसका उत्पीड़न कर रहा है. जस्टिस अनिल एस किलोर और राजेश एस पाटिल की बेंच ने कहा कि शादी के 12 साल बाद इस तरह के आरोपों को स्वीकार नहीं किया जा सकता.
साल 2010 में हुई थी शादी
बेंच ने महिला की सास, देवर और ननद के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील निखिल आर. टेकाडे ने कहा कि FIR और चार्जशीट के मुताबिक उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया गया है और जो आरोप लगाए गए हैं वे स्पष्ट नहीं हैं.
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हाई कोर्ट ने चार्जशीट और FIR पर गौर करते हुए पाया कि महिला की शादी 10 दिसंबर 2010 को हुई थी. बेंच ने कहा, 'महिला के अपने बयान के मुताबिक साल 2021 तक दहेज या किसी अन्य मुद्दे पर किसी भी तरह से उसका उत्पीड़न नहीं किया गया था. इस तरह पिछले 11 साल से वह बिना किसी शिकायत के अपने पति और परिवार के सदस्यों के साथ रह रही थी.'
हाई कोर्ट ने रद्द की FIR
बेंच ने आगे कहा, 'यह भी गौर करने वाली बात है कि महिला ने 12 साल के बाद ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, मुख्य रूप से इस आरोप पर कि उसकी शादी के समय अच्छे इंतजाम नहीं किए गए थे. पहली नजर में शादी के 12 साल के बाद इस तरह के आरोपों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.' बेंच ने कहा कि इसके अलावा महिला की ओर से लगाए गए आरोप स्पष्ट नहीं हैं, इसलिए आईपीसी की धारा 498-ए की शर्तें इस मामले में लागू नहीं होतीं. अदालत ने यह कहते हुए परिवार के खिलाफ एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है.
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बेंच ने यह भी कहा कि महिला की ओर से परिवार के खिलाफ लगाए गए आरोप वैध शिकायत के बजाय बदले की भावना से प्रेरित लगते हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 498A विवाहित महिलाओं के खिलाफ उनके पति या रिश्तेदारों की ओर से की गई क्रूरता से संबंधित हैं. इसके तहत किसी महिला को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना, उत्पीड़न या दहेज की मांग करना अपराध माना जाता है.