बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मुंबई के ऑटो-टैक्सी सेवाओं को "कार्टेल" की तरह काम करने वाला बताते हुए चार ऑटो रिक्शा चालकों की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कई बार ऑटो रिक्शा चालक कार्टेल की तरह काम करते हैं, वह ना तो खुद यात्रियों को ले जाते हैं और ना ही दूसरों को लेने देते हैं.
ऑटो रिक्शा चालकों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि रैपिडो जैसे ऐप-आधारित बाइक टैक्सी सेवाएं गैर-परिवहन नंबर प्लेट (सफेद-काली) वाली बाइकों का इस्तेमाल करके अवैध रूप से शहर में चल रही हैं, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ऑटो और टैक्सी चालकों की "दबंगई, भाषा, लहजे और व्यवहार" पर कड़ी टिप्पणी की, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका वापस ले ली.
'कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को लगाई फटकार'
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और डॉ. नीला गोखले की पीठ ने मुंबई के चार ऑटो रिक्शा चालकों को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने एक याचिका दायर कर मांग की थी कि अदालत महाराष्ट्र सरकार को ये निर्देश दें कि वह उसके आदेश का पालन करे, जिसमें ये सुनिश्चित किया गया है कि रैपिडो चालकों को केवल परिवहन नंबर प्लेट (पीले और काले) वाली बाइकों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया, 'आप अप्रत्यक्ष रूप से आदेश लेकर बाइक सेवाओं पर दबाव बनाना चाहते हैं. आपका इसमें क्या हित है? कोई एकाधिकार नहीं हो सकता, अगर किसी अकेले व्यक्ति को कहीं जाना है तो ऑटो या टैक्सी की जगह बाइक टैक्सी लेना बेहतर है.'
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने जोर देकर कहा कि वे केवल सरकार के फैसले का पालन चाहते हैं, जिसमें केवल परिवहन नंबर प्लेट (पीली-काली) वाली बाइकों को रैपिडो जैसे सेवाओं में इस्तेमाल करने की अनुमति है. लेकिन निजी वाहनों (सफेद-काली नंबर प्लेट) का इस्तेमाल बाइक टैक्सी सेवाओं में हो रहा है.
इसपर कोर्ट ने कहा, 'हर कोई ऑटो और टैक्सी चालकों की मनमानी देख चुका है. इसीलिए वे एकाधिकार चाहते हैं. बारिश के मौसम में रिक्शा पकड़कर देखिए.'
कोर्ट ने ऑटो और टैक्सी चालकों के व्यवहार पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, 'कई बार ऑटो रिक्शा चालक कार्टेल की तरह काम करते हैं. वे न तो खुद यात्रियों को ले जाते हैं और न ही दूसरों को लेने देते हैं.'
'प्रभावित नहीं होगा आपका मौलिक अधिकार'
खंडपीठ ने आगे कहा, 'आपका मौलिक अधिकार बिल्कुल प्रभावित नहीं हो रहा. हर साल इतनी टैक्सियां बाजार में आती हैं. कल आप कहेंगे कि टैक्सी चालकों को भी चलने नहीं देना चाहिए. फिर कहेंगे कि मेट्रो भी शुरू नहीं होनी चाहिए. 'काली-पीली' (मुंबई में टैक्सियों का स्थानीय नाम) की दबंगई की वजह से ही ओला और उबर जैसी सेवाएं लोकप्रिय हुईं. हमें इसमें दखल देने की क्या जरूरत है? ये सरकार का फैसला है.'
'पहले ऑटोरिक्श चालकों करना होगा सुधार'
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से आगे कहा कि ऑटोरिक्शा चालकों को पहले यात्रियों को मना करना बंद करना होगा, तभी वह नियमों के पालन की बात कर सकते हैं.
पीठ ने कहा, 'ये तभी रुकेगा जब आप लोगों को ले जाने से मना करना बंद कर देंगे. हमने सड़कों पर देखा है कि टैक्सी और रिक्शा चालक ग्राहकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, उनकी भाषा, लहजा और उनका व्यवहार कैसा होता है, उनकी मनमानी कैसी होती है. हम सभी ने इसका सामना किया है.'
इसके बाद पीठ ने स्पष्ट किया किया कि वह याचिका खारिज कर देगी तो याचिकाकर्ताओं ने याचिका को वापस लेने का फैसला किया.