बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (20 अगस्त) को दौंड के एक पार्षद के खिलाफ 2014 में दर्ज FIR को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि शिकायत दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई थी और इसमें 18 साल की देरी हुई थी.
दौंड थाना पुलिस ने 31 जुलाई 2014 को दर्ज की गई एफआईआर में 69 वर्षीय पार्षद पर बलात्कार, धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया था.
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि पार्षद (जो उस वक्त एक स्थानीय स्कूल के सचिव थे) ने शादी का वादा करके उनका शोषण किया, उनकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाए और उनके साथ दो बच्चों के पिता बने.
FIR के अनुसार, शिकायतकर्ता का बेटा एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ता था, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उसने उसे मराठी मीडियम स्कूल में ट्रांसफर करने का फैसला किया. उसने आरोपी से मुलाकात की, लेकिन उन्होंने बच्चे का स्कूल ना बदलने पर जोर दिया और आश्वासन दिया कि वह उसके बेटे की स्कूल फीस का खर्चा उठाएगा.
'नियमित होती थी दोनों की मुलाकात'
एफआईआर में बताया गया है कि जब वह अपने बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी तो दोनों की नियमित मुलाकात होती थी. आरोपी ने उसके परिवार के बारे में पूछा और अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन की परेशानियों के बारे में बताया, फिर उससे शादी का वादा किया. इसके बाद वह कथित तौर पर उसके घर आया और उसके साथ बलात्कार किया. महिला के अनुसार, इस रिश्ते से 1999 और 2001 में उसके दो बच्चे पैदा हुए.
एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं आरोप: कोर्ट
हालांकि, न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की पीठ ने इस बात पर गौर किया कि शिकायतकर्ता ने पहले खुद घरेलू हिंसा अधिनियम और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही शुरू की थी और दावा किया था कि वह आरोपी व्यक्ति की पत्नी है.
पीठ ने कहा, 'या तो यह ऐसा मामला हो सकता है, जहां महिला दावा करती है कि आरोपी उससे विवाहित है या वह दावा करती है कि आरोपी ने अपने अधिकार का दुरुपयोग करके उसके साथ बलात्कार किया है.' पीठ ने यह भी कहा कि दोनों आरोप एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं और एक साथ टिक नहीं सकते.'
मामले में हुई दो दशक लंबी देरी
पीठ ने आगे कहा कि FIR तभी दर्ज की गई जब आरोपी ने 2013 में शिकायतकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी सहित अन्य अपराधों के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू की. पीठ ने ये भी कहा कि लगभग दो दशकों की लंबी देरी, जिसके दौरान शिकायतकर्ता ने इस रिश्ते से दो बच्चों को जन्म दिया, आरोपों की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा करती है.
अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि "बेबुनियाद बयानों" के अलावा, बलात्कार या जाति-आधारित अपराधों के आरोपों को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं था.
पीठ ने कहा, 'अपराध दर्ज करने में 18 साल की देरी हुई है. हमारे विचार से शिकायत वास्तविक नहीं है और ये शिकायत दुर्भावनापूर्ण इरादे से दर्ज की गई है. इसलिए हम इस बात से संतुष्ट हैं कि अभियोजन पक्ष ने याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी कथित अपराध के लिए कोई मामला नहीं बनाया है.' इसके बाद कोर्ट ने दौंड पार्षद के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दिया.