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झारखंड: लक्षण कोरोना जैसे, बीमारी टाइफाइड की, बोकारो में एक महीने में दोगुनी हुई मौतें

बोकोरो में कोरोना से मौतें पिछले एक महीने में दो गुने हो गए हैं, ये जिला झारखंड में कोरोना से चौथा सबसे प्रभावित जिला है. यहां के लोग कोरोना और टाइफाइड के बीच में भ्रमित हो रहे हैं. इसकी वजह से कई बार मरीजों के इलाज में देरी हो रही है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो-पीटीआई)
प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोरोना टेस्ट करवाने से हिचक रहे ग्रामीण इलाके के लोग
  • टाइफाइड और कोरोना के बीच कंफ्यूजन

झारखंड में लोग इस वक्त विकट स्थिति से गुजर रहे हैं. झारखंड के बोकारो में कई लोग अभी टाइफाइड के शिकार हो रहे हैं, लेकिन उनके शरीर के लक्षण कोरोना जैसे हैं. इस जिले में एक महीने में कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या दोगुनी हो गई है. 

संसाधनों की कमी वाले इस राज्य में मरीज जब जैसे तैसे किसी तरह से अपना टाइफाइड टेस्ट करा रहे हैं तो उनका टेस्ट पॉजिटिव आ रहा है. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, टाइफाइड की स्थिति होने से मरीजों को कोरोना का उपचार नहीं मिल पा रहा है. बोकारो सदर अस्पताल में 55 साल के धर्मनाथ रविदास कोरोना का इलाज करवा रहे हैं. एक सप्ताह पहले उन्हें टाइफाइड हुआ था, लेकिन 2 दिन के अंदर ही उनका ऑक्सीजन स्तर कम होने लगा. 

धर्मनाथ के बेटे मनीष ने कहा है कि मुझे ये समझ में नहीं आता है कि डॉक्टरों ने उन्हें कोरोना टेस्ट क्यों कराने को कहा जबकि वास्तव में उन्हें कोरोना था, हम सौभाग्यशाली रहे कि हमें तुरंत ऑक्सीजन मिल गई. 

पेटरवार ब्लॉक के 57 साल के राम स्वरूप अग्रवाल इतने भाग्यशाली नहीं थे, उन्हें पिछले साल टाइफाइड हुआ था, उनकी हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें रामगढ़ में भर्ती कराया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बचाई जा सकी. 28 अप्रैल को उनकी मौत हो गई. डॉक्टरों ने उनकी मौत की वजह कोविड बताई. 

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बोकोरो में कोरोना से मौतें पिछले एक महीने में दो गुना हो गए हैं, ये जिला झारखंड में कोरोना से चौथा सबसे प्रभावित जिला है. यहां के लोग कोरोना और टाइफाइड के बीच में भ्रमित हो रहे हैं. इसकी वजह से कई बार मरीजों के इलाज में देरी हो रही है. डॉक्टरों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में लोग डर से कोरोना का टेस्ट नहीं करवा रहे हैं. यहां जागरुकता की कमी है. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में पेटरवार ब्लॉक के बुंडु ग्राम पंचायत के प्रमुख अनिल सिंह ने सीएम के साथ वर्चुअल मीटिंग में इस भ्रम की चर्चा की थी. उन्होंने कहा, "राम स्वरूप अग्रवाल को पहले टाइफाइड की पुष्टि हुई थी...ये भ्रम पैदा करने वाली स्थिति है. "

डॉक्टरों का कहना है कि कई ऐसे मामले हैं जहां सिम्टोमैटिक मरीजों का कोविड टेस्ट निगेटिव आ रहा है और टाइफाइड टेस्ट विश्वसनीय नहीं है.

ऐसे कई उदाहरण हैं. पेटरवार के जेएमएम नेता सत्यम प्रसाद की मां को पहले टाइफाइड की पुष्टि हुई, उनका इसी का इलाज चल रहा था. डॉक्टरों ने उनका सीटी स्कैन किया और चेतावनी दी कि हो सकता है उन्हें कोरोना हुआ हो...उनकी हालत बिगड़ने लगी, जब उन्हें एक स्थानीय नर्सिंग होम ले जाया गया तो कोरोना के खौफ से स्वास्थ्यकर्मियों ने उन्हें अटेंड करने से इनकार कर दिया. बड़ी मुश्किल से एक डॉक्टर फ्रेंड ने उन्हें ऑक्सीजन दी, लेकिन उनकी मौत हो गई. 

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पेटरवार कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की मेडिकल सुपरिंटेंडेंट अल्बेला केरकेट्टा ने कहा कि ऐसा लगता है कि लोग कोरोना टेस्ट करवाने से डर रहे हैं. जब वे स्थानीय स्तर पर टेस्ट करवाते हैं और नतीजा टाइफाइड आता है तो उन्हें राहत मिलती है, लेकिन ये खतरनाक होता जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में सरकार को और जागरुकता लाने की जरूरत है. 


 

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