हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राहत पहुंचाई है. गुरुवार को दिए अपने फैसले में हुड्डा के कार्यकाल में भूमि उपयोग लाइसेंस प्रदान करने में कथित अवैधता की जांच के लिए गठित ढींगरा आयोग की रिपोर्ट खारिज कर दी.
हुड्डा के कार्यकाल में गुरूग्राम में लाइसेंस प्रदान करने के कथित लाभार्थियों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा भी शामिल थे.
ढींगरा आयोग के गठन के खिलाफ हुड्डा की याचिका पर गुरुवार को दो सदस्यीय बेंच ने फैसला दिया कि 2015 में आयोग के गठन में कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं था, लेकिन हुड्डा को नोटिस जारी करने में प्रक्रियात्मक अनियमितता थी.
एक जज ने रिपोर्ट खारिज कर करते हुए आदेश दिया कि हुड्डा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. वहीं, अन्य जजों ने कहा कि इन खामियों के चलते इसका शुरूआत से ही अस्तित्व नहीं है. साथ ही अदालत ने कहा कि रिपोर्ट का प्रकाशन नहीं किया जा सकता.
हालांकि, जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसएन ढींगरा की अगुवाई वाली एक सदस्यीय आयोग द्वारा जांच आयोग अधिनियम की धारा-8 बी के तहत हुड्डा को नोटिस जारी करने में प्रक्रियात्मक अनियमितता पाने के बाद आगे के कदम पर जज की राय अलग-अलग थी.
हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन के मुताबिक, एक जज चाहते थे कि हुड्डा को केवल नए सिर से नोटिस जारी किया जाए, जबकि दूसरे जज की राय थी कि एक नया आयोग गठित किया जाए.
इसके बाद फैसले को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया गया ताकि मतभेद दूर करने के लिए तीन सदस्यीय बेंच गठित की जा सके.
बेंच ने अपने फैसले में पाया कि हरियाणा सरकार ने जो आयोग का गठन किया वह सही है, लेकिन आयोग ने हुड्डा को समन करने के लिए जो नोटिस जारी किया तो नियमों के मुताबिक नहीं है.
एक जज ने कहा कि कमीशन नए सिरे से हुडा को नोटिस जारी कर सकती है, लेकिन दूसरे जज की राय है कि कमीशन की टर्म पूरी ही चुकी है. वह अब नोटिस जारी नहीं कर सकता. दोनों जजो की राय अलग होने के बाद अब चीफ जस्टिस इस मामले को तीसरे जज के पास भेंजेगे.
कोर्ट ने यह भी माना कि आयोग का गठन कानूनन सही है और जनहित में है. तीसरे जज के फैसले तक आयोग की जो रिपोर्ट सील बंद थी, वह सील बन्द रहेगी और सरकार उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगी.
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आयोग के गठन को हाई कोर्ट में चुनौती दे रखी है. उनके वकील ने बहस में कहा था कि उनके मुवक्किल ने आयोग को गठन की प्रक्रिया और गठन के लिए कौन से ठोस तथ्य थे, इसकी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत सरकार से कई बार मांगी, लेकिन सरकार जानकारी देने में विफल रही. सरकार ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान भी वे तथ्य कोर्ट में नहीं पेश किए.
हुड्डा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि ढींगरा आयोग का गठन जनहित के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक रंजिश के कारण किया गया है. इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी भी नहीं ली गई. मुख्यमंत्री के फैसले को कैबिनेट का फैसला नहीं माना जा सकता.