ऑस्ट्रेलिया पूरी तैयारी में है, और अगले महीने वो यूएन की जनरल असेंबली में फिलिस्तीन को अलग स्टेट का दर्जा दे देगा. यूके, कनाडा और फ्रांस भी इसी महासभा में फिलिस्तीन को अलग देश की मान्यता देंगे. दुनिया के सबसे ज्यादा विवादित हिस्सों में से एक फिलिस्तीन के लिए लेकिन आगे की राह आसान नहीं. सबसे पहले तो इजरायल है, जो आक्रामक तरीके से इसका विरोध करेगा. और अगर वो चुप हो भी जाए तो भी फिलिस्तीन के देश बनने में कई निजी रुकावटें आएंगी.
कौन से देश दे सकते हैं मान्यता और इससे क्या फर्क पड़ेगा
सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा होने वाली है, जिसमें कई बड़े फैसले लिए जा सकते हैं. इसी असेंबली में कई पश्चिमी देश फिलिस्तीन को मान्यता देने की तैयारी कर चुके. अब सवाल आता है कि इससे क्या बदलेगा! दरअसल जब कोई देश किसी जगह को स्टेट की मान्यता देता है, तो इंटरनेशनल कानून के हिसाब से उस जगह की स्थिति मजबूत हो जाती है. फिलिस्तीन के लिए इसका मतलब होगा कि वो ऑक्युपाइड टैरिटरी नहीं, बल्कि अपनी ही सीमा में है. इससे इजरायल पर प्रेशर बनेगा कि वो गाजा पट्टी या वेस्ट बैंक के साथ एक देश की तरह व्यवहार करे, न कि कब्जे वाले इलाके की तरह.
अगर ज्यादा से ज्यादा देश उसे मान्यता देने लगें तो इजरायल डिप्लोमेटिक आइसोलेशन की तरफ जा सकता है. इससे यह भी हो सकता है कि वो लड़ाई की बजाए मुद्दे को बातचीत की टेबल पर ले आए. इंटरनेशनल राजनीति में किसी जगह को देश मानने के लिए बाकी देशों की मान्यता भी जरूरी होती है. ऐसे में फिलिस्तीन को आने वाले महीने में बड़ी मदद मिल सकती है.

इजरायल को क्या समस्या है
इजरायल और कथित फिलिस्तीन की सीमाएं विवादित हैं. तेल अवीव के मुताबिक, यहूदियों की बड़ी आबादी वेस्ट बैंक और जेरूशलम में बसी हुई है. ऐसे में अगर फिलिस्तीन बन जाए तो धार्मिक चरमपंथी उनके लोगों को खत्म कर देंगे. इसके अलावा तेल अवीव के सामने कई और समस्याएं हैं. फिलिस्तीन ने अब तक इजरायल को देश के तौर पर मान्यता नहीं दी है और लगातार उसकी सीमाओं पर कुछ न कुछ गड़बड़ करता रहता है. इजरायली लीडरशिप चाहती है कि फिलिस्तीन उसे यहूदी देश का दर्जा दे और साथ ही सुरक्षा की गारंटी दे.
फिलिस्तीन को लेकर क्या कन्फ्यूजन है
गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और ईस्ट जेरूशलम ने मिलकर अस्सी के दशक के आखिर में ही खुद को संयुक्त रूप से स्टेट ऑफ पेलेस्टाइन घोषित कर दिया था. हालांकि ये तीनों ही हिस्से विवादित हैं.
ईस्ट जेरूशलम, जिसे फिलिस्तीनी अपनी राजधानी मानते हैं, वहीं इजरायली धार्मिक स्थल भी है, और तेल अवीव उसे अपना मानता है. यहां बड़ी आबादी यहूदियों की है, जो तेल अवीव से सीधे जुड़े हुए हैं. इसके अलावा गाजा पट्टी पर हमास का कंट्रोल है, जो आतंकी संगठन है. हमास ने ही अक्टूबर 2023 को इजरायल पर बड़ा हमला करते हुए हजारों जानें ले लीं और सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया था. इजरायल हमास के चलते भी फिलिस्तीन के आइडिया का विरोध करता रहा.
अब बचा वेस्ट बैंक. यहां फिलिस्तीनी अथॉरिटी की सरकार है लेकिन पूरी तरह नहीं. यहां कई यहूदी बस्तियां हैं, जिन्हें तेल अवीव देखता है. तो कुल मिलाकर, फिलिस्तीन बनने के रास्ते में उसका भूगोल ही सबसे बड़ी मुश्किल बन सकता है.

इजराइल को छोड़ दें तो भी कई बाधाएं हैं
किसी देश को यूएन से स्टेट का दर्जा मिल सके, इसके लिए पहली शर्त है, उसकी सीमाएं तय होना. लेकिन फिलिस्तीन का नक्शा कंट्रोवर्शियल है. जब तक बॉर्डर तय न हो जाएं, मामला अटका रहेगा.
गाजा पट्टी बनाम वेस्ट बैंक
ये फिलिस्तीन का अंदरुनी मसला है, लेकिन स्टेट बनने में आड़े ये भी आ सकता है. वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी अथॉरिटी (पीए) का कंट्रोल है, जबकि गाजा पर हमास का. इन दोनों में लगातार खींचतान चलती रही. हमास को आतंकी कहा जाता है, जबकि हमास का कहना है कि पीए बैकडोर से तेल अवीव से मिला-जुला करता है. अगर कल फिलिस्तीन को मान्यता मिल भी जाए तो उसकी सरकार को लेकर घमासान मच जाएगा.
गाजा पट्टी से लेकर वेस्ट बैंक के पास अपना कोई इकनॉमिक स्ट्रक्चर नहीं. वे विदेशी फंडिंग पर टिके हुए हैं. न वहां इंफ्रास्ट्रक्चर है, न ही कोई इंडस्ट्री. कोढ़ में खाज ये कि हमेशा अस्थिरता की वजह से कोई भी देश यहां इंडस्ट्रीज पर निवेश भी शायद ही करना चाहे. आर्थिक बुनियाद के बगैर कोई देश खड़ा नहीं हो सकता.
साथी बना रहे दूरी
अरब वर्ल्ड हमेशा से आइडिया ऑफ पेलेस्टाइन का समर्थन करता दिखा, लेकिन अभी स्क्रिप्ट में कई नए बातें आ गईं. फिलिस्तीन की बात करते कई देश जैसे सऊदी और यूएई अब इजरायल से रिश्ते सुधार रहे हैं. साथ ही अमेरिका से भी मिलजुल रहे हैं. इससे फिलिस्तीन का मुद्दा कहीं न कहीं पीछे छूट रहा है. अगर ऐसा हुआ तो फिलिस्तीन के लिए टारगेट और दूर हो जाएगा.