इजरायल और आतंकी संगठन हमास के युद्ध को दो साल होने वाले हैं. इस दौरान हमास का मुख्यालय गाजा बुरी तरह से तबाह हो चुका. वहां से भुखमरी और कुपोषण की खबरें पहले से आ रही थीं, लेकिन अब यूनाइटेड नेशन्स की एक रिपोर्ट ने तहलका मचा दिया. उसका आरोप है कि गाजा में इजरायल जनसंहार कर रहा है. जनसंहार को इंटरनेशनल कानून में सबसे बर्बर, सबसे गंभीर क्राइम माना जाता है. तो क्या यूएन की रिपोर्ट ये तय करने के लिए काफी है? या फिर इसके लिए कुछ और भी औपचारिकताएं हैं?
क्या कहती है ताजा रिपोर्ट
यूनाइटेड नेशन्स की एक जांच कमेटी ने फिलिस्तीनी हमले को लेकर बड़ा खुलासा किया. उसका कहना है कि अक्टूबर में हमास से लड़ाई शुरू होने के बाद इंटरनेशनल कानून तोड़ते हुए इजरायल ने जनसंहार किया. रिपोर्ट में इजरायली आर्मी की कार्रवाई को इसी तरह से देखा गया. तेल अवीव ने हालांकि रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए कहा कि ये भ्रम फैलाने वाली है. वे केवल सैन्य एक्शन ले रहे हैं, वो भी हमास के ठिकानों को टारगेट करते हुए.
गाजा पट्टी में लड़ाई शुरू होने के बाद से ही इसपर बात हो रही है कि इजरायल युद्ध की आड़ में जनसंहार कर रहा है. यूएन पहले भी ऐसे आरोप लगा चुका. हालांकि ज्यादातर बड़े देश इस शब्द के इस्तेमाल से परहेज करते रहे. तो क्या अकेले यूएन इतना गंभीर आरोप लगाए तो उसे सच मान लिया जाएगा?

हत्या ही नहीं, जनसंहार में और भी बहुत कुछ शामिल
जनसंहार का मतलब है किसी खास समूह को पूरी तरह से या आंशिक रूप से खत्म करने के लिए पूरी योजना के साथ हिंसक अभियान चलाना. इसमें केवल हत्या नहीं, बल्कि सोच-समझकर की गई वे सारी हरकतें शामिल हैं, जो किसी तबके को धीरे-धीरे खत्म कर दे. जैसे जन्म दर को रोकने की कोशिश करना. नई पीढ़ी को पेरेंट्स से अलग कर देना और अलग कल्चर में ढालना.
जनसंहार सबसे गंभीर इंटरनेशनल आरोप है, जो कहनेभर से तय नहीं हो जाता. इसके लिए बाकायदा जांच कमेटियां बनती हैं, जो लंबी जांच करती हैं. ग्राउंड पर जाया जाता है. लोगों से मुलाकात होती है. देखा जाता है कि हिंसा के अलावा क्या बच्चों को परिवारों से अलग किया जा रहा है. कई स्तर पर जांच होती है, तभी कुछ कहा जा सकता है.
कौन तय करता है
- यूएन की जनरल असेंबली या फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इसपर चर्चा करवा सकते हैं. वोटिंग भी हो सकती है.
- इंटरनेशनल कोर्ट चाहे तो कानूनी रूप से जनसंहार की पुष्टि कर सकता है.
- ह्यूमन राइट्स पर काम करने वाली संस्थाएं भी इसपर रिपोर्ट बनाते हुए बड़े देशों का ध्यान खींच सकती हैं.
इजरायल पर क्या है आरोप
द गार्जियन में रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि उस पर चार श्रेणियों के तहत जनसंहार का आरोप है.
आरोप है कि गाजा में बड़ी संख्या में लोगों की हत्या कर की और इसके लिए अस्पताल और रेजिडेंशियल इलाकों को टारगेट किया गया.
हमलों के बीच लगातार डर का माहौल बनाया गया, जिससे लोग विस्थापित होने लगे. साथ ही जख्मी होने पर भी उन्हें इलाज नहीं मिल सका.
वहां खाना, साफ पानी और बिजली जैसी बेसिक सुविधाओं को लगातार रोका गया, जिससे गाजावासियों का जीवन असहनीय हो जाए.
रिपोर्ट में यह दावा भी है कि इजरायली सेना ने जान-बूझकर गर्भवती महिलाओं की अस्पतालों तक पहुंच में बाधा डाली ताकि जन्मदर कम होने लगे.

क्यों यह साबित करना मुश्किल है
रिपोर्ट में यह भी दिखाना होगा कि हिंसा या मौतें या जो भी मानसिक परेशानी हो रही है, वो युद्ध की वजह से नहीं, बल्कि साजिश के तहत है. ये पक्का करना आसान नहीं. इजरायल के पास या युद्धरत किसी भी देश के पास तर्क होते हैं कि वे केवल दुश्मन को टारगेट कर रहे हैं. आम जनता का अगर कोई नुकसान हो भी रहा हो तो वो सिर्फ दुर्घटना है, न कि साजिश.
अब तक कुछ ही मामलों में जनसंहार साबित हो सका. रवांडा में साल 1994 में मिलिशिया ने एक खास समूह के लाखों लोगों को मार दिया था. इसके बाद इंटरनेशनल जांच कमेटी बैठी और कई नेताओं और सैन्य अफसरों को जेल भेजा गया. कई और मामले भी हुए लेकिन उनमें पक्का नतीजा नहीं निकल सका. वैसे जनसंहार का सबसे पहला आरोप नाजी शासन पर लगा था, जब दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान उसने लाखों यहूदियों को पूरी प्लानिंग के साथ मार दिया. जनसंहार की परिभाषा ही इसके बाद बनी.
क्या हो सकती है कार्रवाई
अगर इजरायल पर यूएन का आरोप साबित हो जाए तो कई स्तर की कार्रवाई हो सकती है. पहले मुकदमा चलेगा. फिर संबंधित लोगों के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी होगा. दोषी देश के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. उन्हें डिप्लोमेटिक अलगाव का भी सामना करना पड़ सकता है. इसके साथ-साथ पीड़ितों को मुआवजा देने का जिम्मा भी दोषी देश या समुदाय पर होता है.