वैज्ञानिकों का एक तबका मानता है कि ब्रह्मांड में इंसानों जैसी कई और बुद्धिमान सभ्यताएं अलग-अलग ग्रहों पर मौजूद हैं. इन तक पहुंचने के लिए सालों से कोशिशें हो रही हैं. कई बार लोग यूएफओ जैसी चीज दिखने का दावा करते, जो अचानक दिखकर गायब हो गई. कुछ एक्सपर्ट्स ये भी मानते हैं कि हो न हो, इंसानों को भी धरती पर एलियंस ने ही भेजा होगा.
हमारे DNA की बनावट इतनी जटिल है और हम इतनी जल्दी धरती की बाकी स्पीशीज से आगे निकल आए, ये बात इस सोच को बल देती है. साइंस में इसे डायरेक्टेड पैनस्पर्मिया कहते हैं, यानी हमसे उन्नत सभ्यता का जानबूझकर हमें धरती पर भेजना.
इस थ्योरी पर लेटेस्ट रिपोर्ट मार्च 2025 में आई, जो एक्टा एस्ट्रोनॉटिका जर्नल में छपी. इसमें वैज्ञानिकों ने डायरेक्टेड पैनस्पर्मिया पर बात करते हुए संभावना जताई कि शायद हम एलियंस से जुड़े हुए हैं. साथ ही इस पर भी बात हुई कि क्या हम भी उसी रास्ते पर चल सकते हैं.
डायरेक्टेड पैनस्पर्मिया पर पहली बार जोर साल 1973 में नोबेल विजेता फ्रांसिस क्रिक और उनके साथी लेस्ली ऑरगेल ने दिया. उन्होंने संभावना जताई कि कोई एडवांस सभ्यता या स्पीशीज जानबूझकर जीवन के बीज को यूनिवर्स में फैला रही है. ये किसी प्रयोग के लिए भी हो सकता है, या फिर इसलिए कि स्पीशीज बनी रहें. इस सोच के साथ कोई पक्का दावा नहीं लेकिन काफी सारे एक्सपर्ट इसे गंभीरता से लेते रहे.
साइंस में डायरेक्टेड पैनस्पर्मिया का मतलब है, जीवन के बीज यानी माइक्रोब्स, जरूरी केमिकल्स और डीएनए को किसी और ग्रह से जान-बूझकर धरती पर भेजा गया हो. यह एक सोची-समझी योजना हो सकती है, ठीक वैसे ही जैसे आज हम मंगल ग्रह पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम भेज रहे हैं ताकि वहां जीवन की शुरुआत हो सके. हो सकता है कि आने वाले समय में दूसरे प्लानेट्स पर कॉलोनी बसाने की योजना महज एक दोहराव हो.
जिस तरह हम ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कुदरती कहर झेल रहे हैं और दूसरे ग्रहों पर पलायन की सोच रहे हैं, ऐसा हजारों साल पहले यूनिवर्स के किसी और कोने में भी हुआ होगा. हमसे बेहद एडवांस किसी सभ्यता ने सबकुछ तो पा लिया होगा लेकिन अपने ग्रह या तारे को मरने से नहीं बचा पा रही होगी. सूरज ज्यादा गर्म या ठंडा पड़ने लगा होगा.
उन्हें पता था कि यहां और गुजारा संभव नहीं. ऐसे में वहां के वैज्ञानिकों ने एक योजना बनाकर कुछ खास कैप्सूल बनाए होंगे जो हर हाल में टिक जाएं. उनमें माइक्रोब्स, अमीनो एसिड जैसे केमिकल और DNA जैसी चीजें रखी गई होंगी. ये सब स्लीप मोड में होगा ताकि वो लाखों सालों तक बिना एनर्जी रह सकें. तकनीक की मदद से ये स्पेस में अलग-अलग दिशाओं में भेज दिए गए होंगे. इन्हीं में से एक कैप्सूल अनुकूल हालात पाकर धरती पर टिक गया होगा. वक्त के साथ माइक्रोब्स एक्टिव हुए होंगे और सिंगल मॉलिक्यूल से होते हुए इंसानों में बदल गए होगें.
डीएनए इस सोच को बल देता है
इंसानों में कुछ चीजें बाकी किसी भी स्पीशीज से अलग हैं, जैसे सोचने की ताकत, कला और भाषा. वैज्ञानिकों को आज भी इंसानी DNA में ऐसे जंक सीक्वेंस मिलते हैं जिनका कोई सीधा-साफ इस्तेमाल नहीं दिखता. हो सकता है ये पुराने संदेश हों, कोई कोड, जो फ्यूचर के लिए छोड़ा गया हो. यहां बता दें कि डीएनए में जंक सीक्वेंस का मतलब वो हिस्से हैं जो प्रोटीन नहीं बनाते, यानी जिनका कोई काम अब तक हमें पता नहीं लगा.
पहले वैज्ञानिकों को लगता था कि ये बेकार हैं, इसलिए इन्हें जंक कह दिया गया लेकिन अब माना जा रहा है कि इनमें से कई हिस्सों का कुछ न कुछ काम जरूर होता है, बस हमें अभी पूरी जानकारी नहीं. फ्रांसिस क्रिक, जिन्होंने डीएनए खोजा, वो खुद मानते थे कि जीवन शायद किसी और जगह से आया हो. उल्कापिंडों और धूमकेतुओं में डीएनए के पार्ट्स मिल चुके हैं, लेकिन इसी बात से ये पक्का नहीं हो जाता कि इंसान एलियंस की संतानें हैं.
इंसानी नवजात इतना कमजोर क्यों
बाकी किसी भी प्रजाति की तुलना में इंसानों के शिशु जन्म लेते ही चल-फिर नहीं पाते, न ही खा पाते हैं. वे लंबे समय तक निर्भर रहते हैं. यहां तक कि वे चल-फिर भी नहीं पाते. इरेक्ट वॉकिंग एक अलग ही चीज है, जो पशुओं में नहीं. यानी शिशु जन्म पहले ले लेता है और विकास बाद में होता है. पैनस्पर्मिया के सपोर्टर मानते हैं कि इंसानी शरीर धरती के माहौल और ग्रैविटी के अनुकूल नहीं, और जन्म के समय संघर्ष इस बात का संकेत है कि हम धरती के लिए मूल रूप से नहीं बने. हम बहुत धूप नहीं सह पाते, जबकि ज्यादातर पशु-पक्षियों को इससे कोई परेशानी नहीं.
एक और थ्योरी है- हाइब्रिड प्रोग्राम थ्योरी
पचास के दशक से आ रही रिपोर्ट्स में कई लोगों ने दावा किया कि उन्हें एलियंस ने अगवा कर लिया और कोई प्रयोग करके छोड़ दिया. डॉ डेविड जेकब्स ने अपनी किताब द थ्रेट में इस बारे में डिटेल में लिखा. इसके मुताबिक एलियंस इंसानों के साथ मिलाकर एक हाइब्रिड बना रहे हों, जो दोनों की खूबियां रखते हों. मेनस्ट्रीम साइंस में इन थ्योरीज का कोई जवाब नहीं, हालांकि साइंटिस्ट मानते हैं कि डीएनए का हाइब्रिडाइजेशन मुमकिन है.