हस्तिनापुर में दो युवराजों की समस्या का समाधान करने के लिए भीष्म ने हस्तिनापुर के विभाजन का सुझाव दिया. तातश्री भीष्म की बातों को ध्यान में रखते हुए धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर को दो हिस्सों में बांट दिया. खांडवप्रस्थ पांडवों के नाम कर दिया और दुर्योधन को हस्तिनापुर दे दिया.
पांडवों को मिला खांडवप्रस्थ
खांडवप्रस्थ यमुना के पश्चिमी तट पर पथरीली भूमि का एक उबड़ खाबड़ क्षेत्र है जहां नागवंशी और असुरजाति के लोग रहते थे. एक प्रकार से खांडवप्रस्थ हस्तिनापुर का हिस्सा होते हुए भी नहीं है और धृतराष्ट्र पर अन्याय का आरोप ना लगे इसलिए पांडवों को खांडवप्रस्थ दिया गया जो भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को अच्छा नहीं लगा. इस विषय पर सभी विचार विमर्श करते हैं, तभी कृष्ण कहते हैं कि,"महाराज धृतराष्ट्र ने आपको लोगों को आपकी कर्मभूमि दी है."
अपने साथ हुए इस अन्याय पर भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के सामने अपनी बात रखते हैं लेकिन युधिष्ठिर उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि उन्होंने हस्तिनापुर के हिट में निर्णय लेते हुए हस्तिनापुर को छोड़ने का निर्णय ले लिया है" साथ ही कृष्ण की बातों को ध्यान में रखते हुए युधिष्ठिर ये भी कहते हैं कि वो अपने भाइयों के सहयोग से खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बनाएंगे.
शकुनि-दुर्योधन की बढ़ती आकांक्षा
हस्तिनापुर के विभाजन का फैसला करके धृतराष्ट्र अपने आपको ही कोस रहा है. धृतराष्ट्र की बातें सुनकर गांधारी समझ जाती है कि धृतराष्ट्र उस से कुछ छिपा रहे हैं. इतना सब हो जाने के बाद भी शकुनि की राजनीति चल रही है. उसे इस बात का भी दुख है कि हस्तिनापुर का आधा हिस्सा पांडवों को दे दिया गया. दुर्योधन और दुशाशन भी इस बात पर नाराज़ हैं. अब शकुनि अपना नया षडयंत्र रच रहा है उस विभाजित टुकड़े को वापस से हस्तिनापुर जोड़ने का. साथ ही वो ये भी चाहता है कि द्वारिका के यदुवंशी भी इन्हीं के वश में आ जाएं, इसीलिए शकुनि दुर्योधन को बलराम को अच्छा खाना खिलाकर, सोम रस पिलाकर अपने वश में करने की बात कहता है.
दुर्योधन मामा शकुनि की बात मानते हुए पहुंच गए कृष्ण और बलराम से भेंट करने जो हस्तिनापुर आये हुए हैं. दुर्योधन बलराम को हस्तिनापुर का भ्रमण कराने ले जाते हैं, और वहां कृष्ण कभी विदुर के घर पर साग और मकई की रोटी का आनंद उठा रहे हैं, तो कभी द्रोणाचार्य से भेंट करके उनकी हर शंका को दूर कर रहे हैं.
अर्जुन रात के अंधेरे में एक वृक्ष पर बाण चलाकर अपने क्रोध को शांत कर रहा है, तभी वहां भीष्म पितामह आते हैं और उसके क्रोध को शांत करते हैं. अर्जुन पितामह का हाथ पकड़कर रोने लगता है और उनसे विनती करता है खांडवप्रस्थ साथ चलने की , लेकिन भीष्म उसे गले लगाते हुए अपने प्रतिज्ञा और वचन की बात कहकर रोने लगते हैं और वहां से चले जाते हैं.
वहीं दूसरी तरफ दुर्योधन और दुशाशन, शकुनि मामा का कहा मानकर बलराम की आव भगत में लगे हुए हैं. और बातों ही बातों में उनसे गदा शिक्षा पाने की बात कहता है जिसे बलराम माना नहीं कर पाते.
खांडवप्रस्थ के राजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक
युधिष्ठिर अपने राज्याभिषेक के लिए तैयार हो रहे हैं. कुंती के कहने पर द्रोपदी, युधिष्ठिर को तिलक लगाती है. पांचों पांडव और द्रोपदी राज्यसभा की ओर जाते हैं. जहां पूरा हस्तिनापुर आया है और धृतराष्ट्र सबको प्रणाम कर विभाजन की घोषणा करते हैं की उन्होंने हस्तिनापुर का एक भाग यानी ययाति का खांडवप्रस्थ युधिष्ठिर को दिया है और बचा हुआ हस्तिनापुर का दूसरा भाग दुर्योधन के पास रहेगा.
युधिष्ठिर की तारीफें करते हुए धृतराष्ट्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक की घोषणा करने ही वाले थे कि वहां महर्षि वेद व्यास आ गए, सभी वेद व्यास का आशीर्वाद लेते हैं. वेदव्यास द्रोपदी को आशीर्वाद देते वक्त उसे अपने केश का ध्यान रखने के लिए कहते हैं और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक आरंभ करने के लिए कहते हैं. कृपाचार्य युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करके मुकुट पहनाते हैं और युधिष्ठिर की जय जयकार होती है. उसके उपरांत युधिष्ठिर और द्रोपदी सभी को प्रणाम करके खांडवप्रस्थ की ओर प्रस्थान करते हैं.
इंद्रप्रस्थ नगरी का निर्माण
पांचों पांडव, द्रोपदी और कुंती खांडवप्रस्थ आते हैं जहां भीष्म पितामह, कृपाचार्य और द्रोणाचार्य भी आये हैं. खांडवप्रस्थ की बंजर भूमि देखकर अर्जुन कृष्ण का आशीर्वाद लेते हैं और कृष्ण उन्हें इंद्र देव का नाम लेकर अपना काम आरंभ करने को कहते हैं.
सभी मिलकर खांडवप्रस्थ की भूमि की पूजा करते हैं और इंद्र देव को प्रणाम करते हैं. बलराम अपना हल भीम को देते हैं और सभी मिलकर उस बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का कार्य शुरू कर देते हैं. इंद्र देव भी खुश होकर वर्षा कर देते हैं और सूखी पड़ी भूमि हरी-भरी हो जाती है, चारों तरफ फूल खिल जाते हैं. धीरे धीरे समय गुजरता है खांडवप्रस्थ में पांडव अपनी नगरी भी बसा लेते हैं. महल भी बन जाता है और कृष्ण शंख बजाकर पांडवों की जीत का एलान करते हैं.
युधिष्ठिर बैठक बुलाते हैं. उस बैठक में कृष्ण युधिष्ठिर को राज्य स्थापित करने की बधाई देते हुए कहते हैं कि अब इस राज्य की सुरक्षा के बारे में सोंचना होगा. तभी बलराम कहते हैं कि वो हस्तिनापुर जाएंगे और दुर्योधन को समझाएंगे. अकेले में अर्जुन कृष्ण से राज्य सुरक्षा के बारे में पूछते हैं तो इसपर कृष्ण उन्हें कहते हैं कि विवाह की गांठ बहुत ही मजबूत होती है और इसके लिए अकेले ही निकलना होगा क्योंकि अगर सेना साथ में निकलेगी तो गांधार नरेश शकुनि को इसकी भनक लग जायेगी और वो कोई नया पासा फेंक देंगे.