आपातकाल सूचनाओं और तमाम माध्यमों के दमन के लिए कुख्यात है. बताने की जरूरत नहीं कि आपातकाल में अखबारों, पत्रिकाओं और हर उस सूचना माध्यम की सेंसरशिप हुई; जिसे तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने अपने खिलाफ खतरे के तौर पर देखा. ये काला कानून आजाद भारत में लागू एक किताब की तरह भी है. आपातकाल खत्म होने के बाद अब तक शायद ही ऐसा कोई साल बीता हो जब 'अनिवार्य औपचारिकता' की तरह उसके पन्ने न पलटे गए हों.
लेकिन, जिस सरकार की मुखिया पर तमाम सूचना माध्यमों के दमन का दाग लगा, फिल्मों के प्रिंट जलाए गए, कलाकारों का उत्पीड़न किया गया और तमाम फिल्मों की बिना वजह सेंसरशिप हुई - उसी की सरकार बाद में आपातकाल की कालिख से ठीक उलट नजर आती है. एक बातचीत में दर्ज ये किस्सा आज लगभग अनसुना है. दरअसल, इंदिरा गांधी के नाम पर गुलजार की फिल्म "आंधी" को लेकर जो राजनीतिक विवाद हुए उसकी चर्चा आज भी की जाती है. इस फिल्म को हिंदी के मशहूर साहित्यकार स्वर्गीय कमलेश्वर ने लिखा था. किस्सा भी उन्हीं से जुड़ा है.

1980 में जनता पार्टी की सरकार के पतन के बाद जब इंदिरा की फिर से केंद्र की सरकार में वापसी हुई उन्होंने कमलेश्वर को दूरदर्शन के एडिशनल डायरेक्टर जनरल के रूप में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. इंदिरा गांधी ने 1980 में कमलेश्वर को "दूरदर्शन" का निदेशक बनाया. यह जानते हुए भी कि कमलेश्वर ने "आंधी" जैसी फिल्म लिखी. कमलेश्वर ने बहुत साल पहले अपनी नियुक्ति से जुड़ा एक किस्सा Aajtak.in के संपादक पाणिनि आनंद से साझा किया था. उन्होंने नियुक्ति से पहले इंदिरा गांधी से हुई मजेदार बातचीत का जिक्र किया था.
कमलेश्वर ने क्या बताया था?
खुद कमलेश्वर को इस बात का भरोसा नहीं था कि क्यों इंदिरा उन्हें ये जिम्मेदारी देना चाहती हैं. कमलेश्वर ने बताया था कि दूरदर्शन के एडीजी पद के लिए इंदिरा सरकार के प्रस्ताव से वो हैरान थे. इस सिलसिले में जब कमलेश्वर इंदिरा के सामने पहुंचे तो उन्होंने पूछा- "क्या आपको मालूम है कि मैंने ही 'आंधी' लिखी थी?" इंदिरा का जवाब था- "हां, पता है." तुरंत ही उन्होंने यह भी कहा- "इसीलिए आपको ये जिम्मेदारी (दूरदर्शन निदेशक) दे रही हूं." इंदिरा ने कहा- "ऐसा इसलिए ताकि दूरदर्शन देश का एक निष्पक्ष सूचना माध्यम बन सके." कमलेश्वर ने दूरदर्शन के लिए दो साल तक काम किया.
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क्यों दूरदर्शन का निदेशक बनाया
कमलेश्वर से हुई बातचीत के आधार पर कहें तो हो सकता है कि इंदिरा ईमानदारी से एक निष्पक्ष माध्यम के लिए काम करने वाले इंसान को जिम्मेदारी सौंपना चाहती थीं. या यह भी हो सकता है कि आपातकाल में सरकार पर सूचना माध्यमों की सेंशरशिप पर लगे दाग मिटाने के लिए उन्होंने इस नियुक्ति को हथियार बनाने की कोशिश की हो. इस नियुक्ति से वो संदेश दे रही थीं कि आपातकाल से परे चीजों में पारदर्शिता और उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा राजनीति से परे है.
क्या है आपातकाल से जुड़ा आंधी का मामला?
आंधी, 1975 में रिलीज हुई पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म थी. जे. ओम प्रकाश के प्रोडक्शन में इसका निर्देशन गुलजार ने किया था. संजीव कुमार और सुचित्रा ने मुख्य भूमिकाएं की थीं. इसकी कहानी कमलेश्वर ने लिखी थी. आरोप थे कि इसमें इंदिरा और उनके पति की प्रेम कहानी को दर्शाया गया है. फिल्म की कहानी के मुताबिक जेके (संजीव कुमार) की एक राजनेता की लड़की (आरती) से मुलाक़ात होती है. दोनों में प्यार होता है और वो शादी कर लेते हैं. बाद में तनाव के बाद दोनों अलग होने का फैसला कर लेते हैं. जेके पत्नी से अलग होटल कारोबार में लग जाता है. बहुत साल बाद एक इलेक्शन कैम्पेन में आरती, उसी होटल में पहुंचती है जहां जेके है. कहानी आगे बढ़ती है और दोनों में फिर प्यार पनपने लगता है. सुचित्रा के किरदार को इंदिरा से जोड़कर देखा गया. हालांकि फिल्म की कहानी के सिरे इंदिरा के जीवन से मिलते-जुलते नहीं लगते, पर फिल्म में दिखाया गया उनका लुक इंदिरा गांधी के काफी करीब है.
25 जून को आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने इस फिल्म के प्रदर्शन को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया था. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो इसके प्रदर्शन पर लगे सभी तरह के बैन हटा लिए गए. आंधी को कई श्रेणियों में प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले थे.
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कौन थे कमलेश्वर?
1932 में जन्मे कमलेश्वर हिंदी के जाने-माने साहित्यकार हैं. 75 साल की उम्र में 2007 में उनका निधन हो गया था. आंधी, मौसम, रजनीगंधा, छोटी सी बात, रंग बिरंगी और द बर्निंग ट्रेन जैसी कई फिल्मों की कहानियां उन्होंने लिखी थीं. "कितने पाकिस्तान" उनकी सबसे चर्चित किताब है. उन्हें उपन्यास, कहानियों और फ़िल्मी पटकथाओं के लिए याद किया जाता है. उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड और पद्मभूषण सम्मान दिया गया है.