
‘दंतकथाओं' में ऐसे लोगों का वर्णन है जिन्हें इतना सच्चा संगीत बनाने का वरदान प्राप्त है जो अतीत और भविष्य से आत्माओं का आवाह्न कर सकता है. ये वरदान ख्याति और संपत्ति दिला सकता है. किंतु जीवन और मृत्यु के बीच पड़ा पर्दा भी चीर सकता है!’- सिनर्स.
एक अच्छी फिल्म आपकी फेवरेट चॉकलेट की तरह होती है. जैसे आप उस चॉकलेट को छोटे-छोटे टुकड़ों में, उसके एक-एक कतरे का स्वाद लेकर खाना चाहते हैं और रैपर में छूट गया उसका आखिरी अवशेष भी अपनी जीभ की नोंक से समेट लेना चाहते हैं. ठीक वैसे ही, एक बेहतरीन फिल्म कभी अपने आखिरी सीन पर नहीं खत्म होती. वो तब भी खत्म नहीं होती जब स्क्रीन पर क्रेडिट्स रोल के आखिरी शब्द भी खत्म हो जाते हैं. तब भी नहीं, जब आप अगले शो के लिए थिएटर रेडी करने का इंतजार कर रहे स्टाफ की नजरों का लिहाज करते हुए, हॉल से निकलने वाले आखिरी व्यक्ति होते हैं.
एक अच्छी फिल्म शायद कभी खत्म होती ही नहीं, वो आपके अनुभवों के रजिस्टर में नई एंट्री बनकर दर्ज हो जाती है. वो आपके साथ चलती रहती है और कुछ-कुछ देर बाद अपनी तस्वीरों के नए-नए अर्थ आपको बताती रहती है. ठीक वैसे ही, जैसे सालोंसाल एक ही लकीर पर चलती-घिसती जिंदगी के बावजूद आप अपनी फेवरेट चॉकलेट का स्वाद नहीं भूलते.
फिल्ममेकर रायन कूगलर की, माइकल बी. जॉर्डन स्टारर ‘सिनर्स’ (Sinners) एक ऐसी ही बेहतरीन फिल्म है. आइकॉनिक स्वाद की विरासत वाली किसी चॉकलेट जैसी. आप जीवन भर केवल इसी एक चॉकलेट का स्वाद लेते रह सकते हैं. या फिर दशकों इससे दूर रहने के बावजूद इसके स्वाद का जादू अपनी जीभ पर महसूस करते रह सकते हैं.
क्या है ‘सिनर्स’ का मुद्दा?
कूगलर की फिल्म 1932 के साउथ अमेरिका में, मिसिसिपी के क्लार्क्सडेल कस्बे में सेट है. माइकल बी. जॉर्डन दो जुड़वा अश्वेत भाइयों स्मोक और स्टैक के रोल में हैं जो कुख्यात अमेरिकी गैंगस्टर अल-कपोन के दौर वाले शिकागो से, अपने घर वापस लौटे हैं. यहां फिल्म के इन मुख्य किरदारों की पहचान ‘अश्वेत’ बताना बहुत जरूरी है क्योंकि सारी कहानी इसी पहचान के इर्दगिर्द ही बुनी हुई है.
इधर उनका कजिन सैमी (माइल्स केटन) ब्लूज म्यूजिक में अपना नेचुरल टैलेंट तराश रहा है. सैमी के पिता एक पादरी हैं और वो सैमी के म्यूजिक से जुड़ने के खिलाफ हैं, खासकर ब्लूज म्यूजिक से. मगर सैमी अपने म्यूजिक को अपनी पहचान और संसार बनाना चाहता है. शिकागो से लौटे स्मोक-स्टैक के पास ढेर सारा पैसा और शराब है, जिससे वो एक ज्यूक-जॉइंट (एक क्लब टाइप सेटअप) खोलना चाहते हैं- अश्वेतों के लिए, अश्वेतों का एक ज्यूक-जॉइंट. जहां दिनभर कपास के खेतों में खटने वाले अश्वेत मजदूर आकर एंटरटेन हो सकें.
सैमी के म्यूजिक में उन्हें अच्छी भीड़ जुटाने और उन्हें खुश करने का दम नजर आ रहा है. उन्होंने ब्लूज म्यूजिक के एक पुराने और पॉपुलर उस्ताद डेल्टा स्लिम (डेलरॉय लिंडो) को भी साथ लिया है. डेल्टा का किरदार कहानी में अश्वेत संस्कृति, उनके संगीत के इतिहास और प्रतीकों को याद दिलाने वाला किरदार है.
कहानी में स्मोक की पत्नी एनी (वनमि मोसाकु) और स्टैक की पूर्व प्रेमिका मैरी (हेली स्टेनफील्ड) भी हैं, जिन्हें दोनों भाई छोड़कर शिकागो चले गए थे. एक चाइनीज कपल है (ली यन ली और याओ), जो ज्यूक-जॉइंट सेट करने में दोनों भाइयों की मदद करता है. एक शादीशुदा लड़की है पर्लीन (जेमी लॉसन) जो सैमी के म्यूजिक और उसके एक शब्द के, एक सवाल से, उसकी तरफ खिंची चली आई है.
फिल्म की कहानी एक पूरे दिन की है. सुबह जब सैमी अपने पादरी पिता के चर्च से निकल रहा था तो उन्होंने चेतावनी दी थी- ‘You keep dancing with the devil, one day he's gonna follow you back home’(शैतान के साथ मौज करते रहोगे, तो एक दिन वो तुम्हारे पीछे-पीछे घर चला आएगा). शाम को ज्यूक-जॉइंट की ओपनिंग हो रही है. रौशनी, संगीत और प्रेम भरी ये रात अपने जश्न के चरम पर है. और दरवाजे पर उसकी दस्तक होती है- रेमिक (जैक ओ’कॉनल), एक वैम्पायर. यही इस कहानी का डेविल है!
मिसिसिपी में क्षितिज तक फैले कपास के खेतों में दिन भर मजदूरी करते इन अश्वेतों का, गोरों की पावर से दूर, अपने ज्यूक-जॉइंट का सपना बचा रह पाएगा? क्या शिकागो में सर्वाइव कर चुके स्मोक-स्टैक, अपने ही घर में सर्वाइव कर पाएंगे? और सैमी के म्यूजिक का क्या होगा? क्या सच में उसका संगीत ही डेविल का इनविटेशन है? इन सवालों के जवाब जब ‘सिनर्स’ पर्दे पर खोलती है तो एक जादू होता है.
शैतान का संगीत
अपने सामने, आज के दौर में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ जैसी लाइन देखने के बाद शायद ही किसी को ये समझाने की जरूरत हो कि अमेरिका में अश्वेतों को सदियों संघर्ष करना पड़ा है, जो आज भी कहीं न कहीं जारी ही रहता है. ऐसे में 1932 की कहानी लेकर आई ‘सिनर्स’ में रेसिज्म मुख्य थीम है. फिल्म में सबसे बड़ा प्रतीक ब्लूज म्यूजिक है. ये म्यूजिक दक्षिण अमेरिका के अश्वेत अफ्रीकन-अमेरिकन समुदायों से निकला है.
20वीं सदी की शुरुआत तक भी जब श्वेत लोगों ने इसे सुना तो इसे ‘डेविल्स म्यूजिक’ यानी ‘शैतान का संगीत’ कहा. बहुत सारे अश्वेत समुदायों में मिशनरियों के साथ आए ईसाई धर्म को, अश्वेतों की अपनी संस्कृति को खत्म करने वाला माना जाता है. ‘सिनर्स’ में उम्रदराज ब्लूज लेजेंड डेल्टा एक जगह सैमी से कह रहा है- ‘गोरों को ब्लूज तो अच्छा-खासा पसंद है, लेकिन उन्हें ये संगीत बनाने वाले लोग नहीं पसंद!’
गोरों के क्लबों में अश्वेत लोगों के साथ इतिहास में हुए बर्तावों का अंदाजा सभी को है. इस बैकग्राउंड के साथ ‘सिनर्स’ में अश्वेतों का अपना क्लब, अपना संगीत, अपनी रंग-बिरंगी संस्कृति को कसकर पकड़े रहने की जिद और दिन भर की थकाऊ दिहाड़ियों के बाद शाम को एक ‘अपने’ स्पेस में आजाद-बेफिक्र होकर जी लेने का ख्वाब एक अटेंशन बांध लेने वाली थीम बन जाते हैं.
फिल्म में पॉजिटिव साइड पर केवल एक श्वेत किरदार है- स्टैक की गर्लफ्रैंड. मगर उसका भी दो पीढ़ी पुराना एक अश्वेत कनेक्शन है. एक ब्राउन, एशियन कपल की मौजूदगी ये दिखाती है कि दक्षिण अमेरिका का इतिहास केवल अश्वेतों का ही नहीं, प्रवासियों का भी है.
फिल्म की बहादुर क्रिएटिव चॉइस
अपनी पहली फिल्म ‘फ्रूटवेल स्टेशन’ से ही फिल्ममेकर रायन कूगलर ने दिखाना शुरू कर दिया था कि वो मैसेज देने वाली थीम्स को, ध्यान बांधने वाले एंटरटेनमेंट के साथ डिलीवर करने में सिद्धहस्त हैं. ‘क्रीड’, ‘ब्लैक पैंथर’ और उसके सीक्वल से कूगलर पर दर्शकों का विश्वास पक्का हो गया कि वो वजनदार कहानियां, एक नए विजन के साथ दमदार तरीके से पर्दे पर उतार सकते हैं. अपनी हर फिल्म में रहे जबरदस्त टैलेंटेड एक्टर माइकल बी. जॉर्डन के साथ उन्होंने एक बार फिर अपनी फिल्म में कई कमाल के क्रिएटिव फैसले लिए हैं.
‘सिनर्स’ आपको गोरों-अश्वेतों के मुद्दे पर आधे मिनट का भी लेक्चर देने की कोशिश नहीं करती. फिल्म आपसे इस मामले में बेसिक समझदारी की उम्मीद करती है, जो कि डायरेक्टर की एक बहादुरी भरी चॉइस है क्योंकि मुद्दों को ओवर-एक्सप्लेन करती लेक्चरनुमा फिल्में बनाने में एंटरटेनमेंट को साइड रख देना आजकल सिनेमा में आम होता जा रहा है.
‘सिनर्स’ को मिली ‘A’ रेटिंग देखकर आपको लग सकता है कि इसमें ट्रेडमार्क हॉलीवुड स्टाइल में सेक्स सीन्स की प्रेजेंटेशन बहुत क्लियर होगी. लेकिन फिल्म के तीनों सेक्स सीन्स को जिस तरह कूगलर ने कपल्स के प्रेम के एक्सप्रेशन में बदला है, वो बहुत खूबसूरत है. बल्कि पूरी फिल्म में सेंशुअलिटी को जिस तरह पर्दे पर उतारा गया है उसमें एक किस्म का देसीपन है, जो जाहिर तौर पर कहानी के कस्बाई टोन से आता है.
इसे जिस तरह दिखाया गया है उससे लगता है कि भारतीय फिल्में लोकसंस्कृति के फ्लेवर में मौजूद सेंशुअलिटी को, गुदगुदाने वाले रोमांचक एंगल से आगे एक्सप्लोर करने में कितना चूकती हैं. ‘सिनर्स’ इस सेंशुअलिटी को शायद इसलिए भी कायदे से दिखा पाती है क्योंकि कैमरे में इसे कैप्चर करने का जिम्मा कूगलर ने महिला सिनेमेटोग्राफर ऑटम डुरल्ड को दिया. इस फिल्म से ऑटम IMAX में शूट करने वाली पहली महिला सिनेमेटोग्राफर भी बन गई हैं.
‘सिनर्स’ का सबसे बड़ा किरदार म्यूजिक है और लुडविग योरानसोन का स्कोर हर मायने में फिल्म का सबसे बड़ा हीरो है. पुराने दौर के फील से लेकर फोक-स्टाइल सेटअप हो, या लव मेकिंग सीन्स और क्लाइमेक्स एक्शन का स्कोर, लुडविग ने वो म्यूजिक दिया है जो अगले अवॉर्ड सीजन में उन्हें कई नॉमिनेशन दिलवाने वाला है. टेक्निकली हर डिपार्टमेंट में ‘सिनर्स’ एक शानदार फिल्म है. एस्पेक्ट रेश्यो को चेंज कर-कर के कूगलर ने सीन्स को जिस तरह एक शानदार अनुभव में बदला है, उसपर सिनेमा लवर्स साल भर खूब बातें करेंगे.
माइकल बी. जॉर्डन के दोनों किरदार लुक्स में या फैशन में एक दूसरे से बहुत अलग नहीं हैं इसलिए उन्होंने इन्हें केवल बॉडी लैंग्वेज और लहजे से जिस तरह अलग-अलग किया है, वो हर एक्टर के लिए नोटिस करने वाली बात है. एक परफॉर्मर के तौर पर जॉर्डन हमेशा सराहे जाते रहे हैं और ‘सिनर्स’ में भी उनका काम क्रिटिक्स का फेवरेट बनेगा. सैमी के रोल में माइक केटन ने डेब्यू किया है मगर उनका काम देखकर आप ये अंदाजा नहीं लगा सकते. स्टेनफील्ड, मोसाकु और लॉसन के किरदार जितने दमदार लिखे गए हैं, उतने ही दमदार निभाए भी गए हैं. ‘सिनर्स’ के सभी महिला किरदार और इनकी एक्ट्रेसेज मैजिकल हैं. इन पर भी अलग से लंबी चर्चाएं होंगी.
क्या है कमी?
‘सिनर्स’ को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- फिल्म का पूरा सेटअप और वैम्पायर हॉरर. दिक्कत दूसरे हिस्से में है. ‘सिनर्स’ का हॉरर, 'हॉरर' के मायनों में उतना असरदार नहीं है, जितना हो सकता था. हालांकि, फिल्म के कवितानुमा माहौल को ये सूट करता है. वैम्पायर्स के नेचर में कूगलर ने कुछ दिलचस्प बदलाव किए हैं और उनके वैम्पायर सिर्फ शिकार का खून ही नहीं उसकी आत्मा भी, याद्दाश्त समेत खींच लेते हैं और उसके भूत-भविष्य में झांक सकते हैं. वो एक बिल्कुल अलग जीव नहीं बन जाते बल्कि इंसानी शरीर में ही भयानक जीव लगते हैं. इनकी सबसे दिलचस्प खूबी ये है कि ये बिना इजाजत आपके घर में नहीं घुसते और इजाजत पाने के लिए ये जो कुछ करते हैं वही डर की वजह है.
मगर ‘सिनर्स’ का वैम्पायर एंगल सीधा-सीधा हड्डियां कंपा देने वाला गॉथिक हॉरर नहीं है. इसी हिस्से में फिल्म थोड़ी कमजोर है हालांकि, एक्टर्स का काम आपको तब भी बांधे रखता है.
कुल मिलाकर ‘सिनर्स’ इस साल की बेस्ट फिल्मों में से एक है, जिसे माइकल बी. जॉर्डन की दमदार परफॉरमेंस और रायन कूगलर के सिनेमाई कमाल ने एक शानदार अनुभव बना दिया है. किसी भी फिल्म की तरह इसकी अपनी कमियां भी हैं. मगर वो इतनी नहीं हैं कि फिल्म देखने का एक्सपीरिएंस फीका पड़े.
‘सिनर्स’ में ‘वो एक अद्भुत सीन’ भी है जो हर क्लासिक फिल्म से निकलकर सालों तक सिनेमा लवर्स की डायरी में दर्ज रहता है. बस दो बातें ध्यान रखें- सिनर्स को बेस्ट से बेस्ट स्क्रीन पर देखें, हो सके तो IMAX में और फिल्म के क्रेडिट्स रोल पूरी तरह खत्म होने तक थिएटर में रहें, वहां भी एक खास सीन आपका इंतजार कर रहा है.