सलमान खान की फिल्म 'बजरंगी भाईजान' को आए 10 साल बीत चुके हैं. लेकिन आज भी ये फिल्म दर्शकों की फेवरेट बनी हुई है. सलमान की इस फिल्म का निर्देशन कबीर खान ने किया था. अब कबीर खान ने अपनी सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक, 'बजरंगी भाईजान' के सीन्स के पीछे की एक लड़ाई के बारे में खुलासा किया है.
इंडियन एक्सप्रेस एक इवेंट में कबीर खान ने 'बजरंगी भाईजान' को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) ने उनसे ओम पुरी के एक सीन को हटाने के लिए कहा था. ओम पुरी ने फिल्म में मौलाना का किरदार निभाया था. उस सीन में ओम पुरी के किरदार को 'जय श्री राम' कहते देखा जा सकता था. सीबीएफसी ने इसी सीन को हटाने का आदेश कबीर खान को दिया था, लेकिन उन्होंने सीन को काटने से मना कर दिया.
कबीर ने कहा कि उनका मानना है कि दर्शक उन कुछ 'द्वारपालों' की तुलना में अधिक खुले दिमाग के हैं, जो प्रतिक्रिया होने से पहले ही इसे अनुमानित कर लेते हैं. डायरेक्टर बोले, 'अगर फिल्म को अभी भी प्यार मिलता है, तो इसका मतलब है कि ये कहीं न कहीं दिल को छू गई. मुझे लगता है कि कई बार ये द्वारपाल ही सीमाएं खींचते हैं.'
बजरंगी भाईजान का वो सीन जिसपर हुई आपत्ति
ये सीन फिल्म के अंत में आता है, जब सलमान खान का किरदार जो कि एक भारतीय हिंदू है, एक खोई हुई मुस्लिम बच्चों को उसके परिवार से पाकिस्तान में मिलाने के सफर पर होता है. पाकिस्तान में सेट इस सीन में, ओम पुरी का किरदार बजरंगी को अलविदा कहता है. वो देखता है कि बजरंगी को 'खुदा हाफिज' कहने में हिचकिचाहट हो रही है और पूछता है, 'आप लोगो में क्या कहते हैं? जय श्री राम ना?' फिर बिना रुके, वो कहता है, 'जय श्री राम.'
कबीर खान के मुताबिक, सीबीएफसी ने इस लाइन को हटाने का सुझाव दिया था, क्योंकि उन्हें डर था कि ये मुस्लिम दर्शकों को नाराज कर सकता है. उन्होंने बताया, 'मैंने पूछा कि क्यों और उन्होंने कहा कि मुसलमानों को ये पसंद नहीं आएगा. मैंने कहा- सर, मेरा नाम क्या है? मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है.'
क्यों कबीर खान ने सीन को लेकर की लड़ाई
डायरेक्टर कबीर खान ने बताया कि उनकी अपनी परवरिश ने फिल्म के इस पल को देखने का उनका नजरिया बनाया है. वो बोले, 'मैं दिल्ली में पला-बढ़ा हूं, जहां जय श्री राम कोई राजनीतिक अभिवादन नहीं था. इसे हर कोई इस्तेमाल करता था और मैं पुरानी दिल्ली में रहा हूं जहां जय श्री राम नमस्ते और अलविदा कहने जैसा था. डायरेक्टर के लिए ये लाइन हमारी आपसी मानवता को दिखाती थी, न कि विभाजन को. कबीर ने कहा कि उन्होंने बोर्ड की चिंताओं के खिलाफ विरोध किया और इस सीन को जैसा लिखा और शूट किया गया था, वैसा ही रहने दिया. वो बोले, 'मैंने इसके लिए लड़ाई लड़ी. मैंने इसे बनाए रखा.'
कैसा था दर्शकों का रिएक्शन?
कबीर खान ने बताया कि दर्शकों की प्रतिक्रिया ने उनके अनुमान को सही साबित किया. उन्होंने ईद के दिन की एक स्क्रीनिंग को याद किया, जहां थिएटर 'ब्लू कॉलर मुस्लिम मजदूरों' से भरा हुआ था. नाराज होने के बजाय, उन दर्शकों ने स्क्रीन पर इस सीन को देखकर तालियां बजाईं. डायरेक्टर ने कहा, 'आज भी इसके बारे में सोचकर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सेंसर को लगा था कि उन्हें ये पसंद नहीं आएगा. मगर लोगों को ये पसंद आया, लोगों को वो सब कुछ पसंद आया जो हम उस फिल्म में दिखा रहे थे.' कबीर ने ये भी कहा कि उनके लिए ये पल इस बात का सबूत था कि दयालुता और समझदारी धार्मिक और राजनीतिक सीमाओं से परे गूंजती है.