
धर्मेंद्र का जिक्र जब भी होता है, लोग उनकी शख्सियत की बात करते हैं. उनके 'हीमैन' पर्सोना की बात होती है. 'शोले' की बात होती है. पर धर्मेंद्र के उस सुपरस्टारडम की बात कम होती है, जो लगातार कम से कम तीन दशकों तक छाया रहा. 'सुपरस्टार' एक ऐसा शब्द है जो हल्के में इस्तेमाल नहीं होता. इसके पीछे सिर्फ एक स्टार की पॉपुलैरिटी नहीं होती. उसकी बॉक्स ऑफिस सक्सेस, धुआंधार कलेक्शन और हिट-फ्लॉप की बात होती है. 'सुपरस्टार' शब्द का इस्तेमाल आपको राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन या राजेंद्र कुमार जैसे हीरोज के साथ खूब मिल जाएगा. मगर इनसे कहीं तगड़ी बॉक्स ऑफिस कामयाबी वाले धर्मेंद्र के साथ अक्सर लोग 'सुपरस्टार' शब्द लगाना भूल जाते हैं.
धर्मेंद्र जब इंडस्ट्री में आए तो देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार भी अपने पीक पर थे. फिर उन्होंने राजेश खन्ना, मनोज कुमार, अमिताभ बच्चन और जितेंद्र तक का बॉक्स ऑफिस पर सामना किया. एक वक्त तो ऐसा आया कि वो अपने ही बेटे के सामने एक बॉक्स ऑफिस सुपरपावर बनकर खड़े थे. 'सुपरस्टार' धर्मेंद्र को जानने के लिए उन्हें उनके साथियों और बॉक्स ऑफिस के साथ देखना बहुत जरूरी है.
पिछली पीढ़ी के हीरोज के सामने लोहा लेने लगे थे धर्मेंद्र
धर्मेंद्र ने 1960 में फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' से डेब्यू किया था. ये फिल्म हिट थी मगर धर्मेंद्र इसमें सोलो हीरो नहीं थे. उन्होंने बड़ा धमाका किया 1961 में, जब उनकी फिल्म 'शोला और शबनम' टॉप बॉक्स ऑफिस हिट्स में शामिल हुई.
1964 में राज कपूर की 'संगम' साल की सबसे बड़ी फिल्म थी. उसके बाद दूसरे नंबर पर थी धर्मेंद्र की 'आई मिलन की बेला'. उस साल की टॉप 10 फिल्मों में मनोज कुमार की ब्लॉकबस्टर 'वो कौन थी' भी थी. शम्मी कपूर की सुपरहिट 'कश्मीर की कली' भी. राजेंद्र कुमार की 'जिंदगी' भी. धर्मेंद्र के दबदबे के बीच ही देव आनंद की 'हरे रामा हरे कृष्णा', 'हीरा पन्ना' जैसी हिट्स आ जाती थीं. मगर अपने से पिछली जेनरेशन वाले स्टार्स के सामने भी धर्मेंद्र उल्कापिंड की तरह एक बॉक्स ऑफिस पावर बनते चले गए.

धर्मेंद्र वर्सेज राजेश खन्ना
राजेश खन्ना 1969 में वो बॉक्स ऑफिस पावर बनकर उभरे जिसकी गाथाएं आजतक गई जाती हैं. उस साल राजेश की 'आराधना', 'दो रास्ते' इंडस्ट्री की दो सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर थीं. मगर साल की सबसे बड़ी हिट्स में धर्मेंद्र की 'आया सावन झूम के' और 'यकीन' भी थीं.
1972 तक, राजेश खन्ना की लाइन से 17 फिल्में कामयाब रहीं और इस चीज को नाम दिया गया 'सुपरस्टार हिस्टीरिया'. मगर राजेश खन्ना के डेब्यू से पहले ही सुपरस्टार और मास हीरो बन चुके धर्मेंद्र, इस हिस्टीरिया के बीच भी 'शराफत', 'कब क्यों और कहां', 'तुम हसीं मैं जवां', 'मेरा गांव मेरा देश', 'सीता और गीता' जैसी हिट्स दे चुके थे. राजेश खन्ना के तूफान के बीच, धर्मेंद्र के चट्टान जैसे टिके रहने की कहानी दो फिल्मों से पता चलती है. राजेश खन्ना की 'हाथी मेरे साथी' और धर्मेंद्र की 'मेरा गांव मेरा देश.'
1971 में दोनों फिल्में कुछ महीनों के अंतर पर रिलीज हुईं. शुरुआत में 'हाथी मेरे साथी' साल की सबसे बड़ी फिल्म थी और 'मेरा गांव मेरा देश' दूसरी. मगर पुरानी ट्रेड रिपोर्ट्स बताती हैं कि डाकू बनाम आम आदमी थीम पर बनी, अपने तरह की पहली एक्शन फिल्म 'मेरा गांव मेरा देश' ने 1972 की शुरुआत के बाद धमाका शुरू किया. देश भर के थिएटर्स में इस फिल्म के 6-7 रिपीट रन चले. महाराष्ट्र के अकोला में तो, 1978 में 'मेरा गांव मेरा देश' का 13वां रिपीट रन चला था.
1972 में स्क्रीन मैगज़ीन की एक रिपोर्ट में छपा था— 'राजेश खन्ना दिलों पर राज करते हैं, लेकिन धर्मेंद्र सिनेमा हॉल्स पर.' 72-73 के बाद जहां राजेश खन्ना का 'सुपरस्टार हिस्टीरिया' थकाऊ होता दिखा. वहीं धर्मेंद्र की 'जुगनू', 'यादों की बरात', 'ब्लैकमेल', 'पत्थर और पायल' बॉक्स ऑफिस पर गरज रही थीं. और 1975 में तो 'शोले', 'चुपके चुपके', 'प्रतिज्ञा' की जोरदार कामयाबी ने धर्मेंद्र का कद पहले से भी ऊंचा कर दिया था.
धर्मेंद्र वर्सेज अमिताभ बच्चन
अमिताभ उसी साल फिल्मों में आए थे, जब राजेश खन्ना ने डेब्यू किया था— 1969 में. मगर अमिताभ को पहली बड़ी कामयाबी मिली चार साल बाद आई 'जंजीर' से. सलीम-जावेद की राइटिंग और प्रकाश मेहरा के डायरेक्शन से निकली इस ब्लॉकबस्टर ने बच्चन के 'एंग्री यंगमैन' फिनोमिना की शुरुआत की. मगर उसी 1973 में धर्मेंद्र की चार फिल्में टॉप 10 लिस्ट में शामिल थीं. इनमें से 'जुगनूं' बॉक्स ऑफिस चार्ट्स में 'जंजीर' से बहुत ऊपर थी. 1975 की 'शोले' और 'चुपके चुपके' में तो दोनों की स्टारपावर साथ थी. मगर धर्मेंद्र की 'प्रतिज्ञा' और बच्चन की 'दीवार' का कलेक्शन ऑलमोस्ट बराबर था. 'दीवार' मुंबई में तूफान मचा रही थी, तो 'प्रतिज्ञा' उत्तर भारत के छोटे शहरों और कस्बों में.

1976 में धर्मेंद्र की 'चरस' का कलेक्शन बच्चन की 'हेराफेरी' के लगभग एकदम बराबर था और 'कभी कभी' से ज्यादा. '77 में धर्मेंद्र की 'धरम वीर' की ब्लॉकबस्टर कामयाबी, बच्चन की 'अमर अकबर एंथनी' जैसी थी. धर्मेंद्र की 'चाचा भतीजा', बच्चन की 'परवरिश' और 'खून पसीना' को टक्कर दे रही थी. '78 में साल की टॉप 3 फिल्में बच्चन की 'मुकद्दर का सिकंदर', 'त्रिशूल' और 'डॉन' थीं. तो 'आजाद' और 'फंदेबाज' की दमदार कामयाबी के साथ धर्मेंद्र भी टॉप 10 में थे.
80 तक आते-आते बॉक्स ऑफिस पर धर्मेंद्र का लेवल फिर बच्चन से ज्यादा होने लगा. उस साल उनकी 'राम बलराम' ने बच्चन की 'दोस्ताना' और 'शान' से ज्यादा कलेक्शन किया था. टॉप 10 में धर्मेंद्र की 'द बर्निंग ट्रेन' और 'अली बाबा 40 चोर' भी थीं. बॉक्स ऑफिस पर दोनों का दम बराबर बना हुआ था. मगर 87 में जब धर्मेंद्र की 'हुकूमत' साल की टॉप फिल्म बनी और उन्होंने 8 हिट फिल्में दीं, तबतक अमिताभ का ग्राफ नीचे जाने लगा था. इसके बाद अमिताभ 'शहंशाह' (1988) से एक बार फिर ट्रेड चार्ट्स में लौटे तो सही. मगर फिर उनका 'तूफान'-'जादूगर' वाला दौर शुरू हो चुका था. मगर धर्मेंद्र अभी भी 'बंटवारा' और 'एलान-ए-जंग' जैसी हिट्स दे रहे थे.
दूसरे साथियों के लिए भी चैलेंज बने धर्मेंद्र
धर्मेंद्र के साथ ही करियर का शुरुआती स्ट्रगल देखने वाले मनोज कुमार भी सुपरस्टार बने. उनकी 'उपकार', 'पूरब और पश्चिम', 'रोटी कपड़ा और मकान' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में उसी दौर की हैं जब धर्मेंद्र बॉक्स ऑफिस पर राज करते थे. धर्मेंद्र के स्टार बनने के बाद डेब्यू करने वाले जीतेंद्र भी 80s के दशक में उन्हें बॉक्स ऑफिस पर मिले. जीतेंद्र की 'आशा', 'मांग भरो सजना' और 'जस्टिस चौधरी' जैसी फिल्में ब्लॉकबस्टर कमाई कर रही थीं. मगर 80s की टॉप 10 लिस्ट्स में 'राम बलराम' जैसी हिट्स से धर्मेंद्र उनके लिए भी चैलेंज बने हुए थे. जब धर्मेंद्र 90s में बॉक्स ऑफिस पर कमजोर पड़ने शुरू हुए, तभी जीतेंद्र भी फीके पड़ने लगे थे. मगर धर्मेंद्र ने 80s में स्टार्स की एक नई वेव का भी डटकर सामना किया.
नई पीढ़ी के एक्टर्स से भी धर्मेंद्र ने किया मुकाबला
1981 में रॉकी से दमदार डेब्यू करने वाले संजय दत्त, 1982 की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर लेकर आए— विधाता. लेकिन उसी साल धर्मेंद्र ने 5 से ज्यादा कामयाब फिल्में दी थीं, उनका राज बेरोकटोक जारी था. 83 में तो धर्मेंद्र के बड़े बेटे सनी देओल ने 'बेताब' से ब्लॉकबस्टर डेब्यू किया. सनी की ये फिल्म साल की दूसरी सबसे बड़ी हिट थी. उस साल भी टॉप 10 में धर्मेंद्र की दो फिल्में थीं— नौकर बीवी का, और जानी दोस्त. 87 में जब अनिल कपूर ने 'मिस्टर इंडिया' से बॉक्स ऑफिस टॉप किया, तब धर्मेंद्र 'हुकूमत' से उनके साथ रेस में थे. 1988 में जब आमिर खान ने 'कयामत से कयामत तक' से ब्लॉकबस्टर डेब्यू किया, तो धर्मेंद्र की 'सोने पे सुहागा' टॉप फिल्मों में थी.
1961 में 'शोला और शबनम', बॉक्स ऑफिस के टॉप 10 में धर्मेंद्र की पहली फिल्म थी. 90s में बतौर हीरो फीके पड़ने से पहले इस टॉप 10 में उनकी आखिरी फिल्म 'हमसे ना टकराना' थी. यानी ऑलमोस्ट 30 सालों तक धर्मेंद्र की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर जलवे दिखाती रहीं. इनमें से बहुत गिने-चुने साल ऐसे हैं जब उनकी एक भी फिल्म टॉप 10 में ना रही हो.
धर्मेंद्र ने जिस दौर में बॉक्स ऑफिस पर राज किया, वहां फिल्मों की कामयाबी जुबली से नापी जाती थी. 25 हफ्तों तक बॉक्स ऑफिस पर टिकने पर फिल्मों की 'सिल्वर जुबली' या जुबली मनाई जाती थी. बॉक्स ऑफिस इंडिया की एक पुरानी रिपोर्ट बताती है कि धर्मेंद्र के करियर के पीक 30 सालों में उन्होंने 60 जुबली हिट्स दी थीं. जबकि उनकी ओवरऑल कामयाब फिल्मों की गिनती 100 से ज्यादा थी.