लोकसभा चुनाव 2019 के तहत गुजरात की साबरकांठा लोकसभा सीट पर बीजेपी अपना परचम लहराने में कामयाब रही है. भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) उम्मीदवार दीप सिंह राठौड़ ने अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी को 268987 वोटों के अंतर से शिकस्त दी है. सामान्य वर्ग वाली साबरकांठा सीट पर कुल 20 प्रत्याशी मैदान में थे. हालांकि, मुख्य मुकाबला बीजेपी व कांग्रेस के बीच ही रहा.
2019 का जनादेश
बीजेपी उम्मीदवार दीप सिंह राठौड़ को सात लाख एक हजार 84 वोट मिले, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र ठाकोर को 4 लाख 32 हजार 997 वोट मिले. बहुजन समाज के विनोदभाई मेसारिया को 7912 वोट मिले. इस सीट पर तीसरे चरण के तहत 23 अप्रैल को मतदान हुआ था और मतदान का प्रतिशत 67.23 था.
2014 का जनादेशपिछले चुनाव में इस सीट पर 67.7% मतदान हुआ था जिसमें बीजेपी प्रत्याशी दीपसिंह राठौड़ को 5,52,205 वोट (50.5%) और कांग्रेस प्रत्याशी शंकर सिंह वाघेला को 4,67,750 (42.8%) वोट मिले थे. हालांकि, मौजूदा चुनाव से पहले शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस छोड़कर एनसीपी में शामिल हो गए थे, लेकिन वे चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
सामाजिक ताना-बाना
2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की आबादी 2428589 है, इसमें 85.02% ग्रामीण और 14.98% शहरी आबादी है. अनुसूचित जाति की आबादी 7.73% है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी 22.32 प्रतिशत है. राजकोट जिले में करीब 7 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
साबरकांठा लोकसभा सीट: दीप सिंह राठौर और राजेंद्र ठाकोर के बीच मुकाबला
इस लोकसभा क्षेत्र (सामान्य सीट) के अंतर्गत हिम्मतनगर, भिलोडा, ईडर, मोडासा, बायड, खेडब्रह्मा और प्रांतिज है. इनमें भिलोडा और खेडब्रह्मा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, जबकि ईडर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. 2017 के विधानसभा चुनाव में हिम्मतनगर, ईडर और प्रांतिज से बीजेपी जबकि खेडब्रह्मा, भिलोडा, मोडासा और बायड से कांग्रेस को जीत मिली थी. यानी 3 सीट पर बीजेपी और 4 सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी.
शंकर सिंह वाघेला: गोधरा सीट से हारे तो छोड़ दी बीजेपी, कांग्रेस के समर्थन से बने थे मुख्यमंत्री
सीट का इतिहास
1951 में इस लोकसभा सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. गुलजारी लाल नंदा को इस लोकसभा क्षेत्र से पहला सांसद बनने का गौरव मिला था. इसके बाद उन्होंने लगातार दो और चुनाव जीते.
1967 के चुनाव में कांग्रेस को पहली बार साबरकांठा लोकसभा सीट पर हार मिली. स्वतंत्र पार्टी की लहर चली और सी.सी देसाई ने परचम लहराया. इसके बाद 1971 में कांग्रेस के दूसरे धड़े यानी NCO को यहां से जीत मिली. 1977 में भारतीय लोकदल की हवा चली, लेकिन 1980 में फिर कांग्रेस ने वापसी की.
हालांकि, 1984 में जनतंत्र पार्टी को यहां से जीत मिली. 1989 में जनता दल ने बाजी मारी. 1991 में पहली बार बीजेपी ने यहां से खाता खोला और अरविंद त्रिवेदी सांसद चुने गए. इसके बाद 1996 से लेकर 2004 तक कांग्रेस इस सीट से जीतती रही. यहां तक कि 2001 में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को जीत मिली और वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री सांसद निर्वाचित हुए. हालांकि, पिछले दो चुनाव यानी 2009 और 2014 में बीजेपी को जीत मिली.
चुनाव की हर ख़बर मिलेगी सीधे आपके इनबॉक्स में. आम चुनाव की ताज़ा खबरों से अपडेट रहने के लिए सब्सक्राइब करें आजतक का इलेक्शन स्पेशल न्यूज़ लेटर