...जब झारखंड में 18 विधानसभा सीटों पर चुने जाते थे दो-दो विधायक
झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. करीब 50 दिन चलने वाली इस प्रक्रिया में 81 सीटों पर एक-एक विधायक चुने जाएंगे. लेकिन आजादी के बाद एक समय ऐसा भी था, जब एक ही सीट पर दो-दो विधायक चुने जाते थे.
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आजादी के बाद पहले दो विधानसभा चुनावों में कुछ सीटों पर दो-दो विधायक चुने जाते थे.
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. करीब 50 दिन चलने वाली इस चुनावी प्रक्रिया में 81 सीटों पर एक-एक विधायक चुने जाएंगे. लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब एक ही सीट पर दो-दो विधायक चुने जाते थे. ये बात है आजादी के बाद हुए पहले और दूसरे चुनाव की है. तब झारखंड बिहार का हिस्सा हुआ करता था. अब ये संभव ही नहीं है, लेकिन उस समय की राजनीति में ऐसा संभव था. ऐसा किया गया था आरक्षण के चलते.
1951 में झारखंड (तब बिहार) में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. उस समय झारखंड में कुल 71 विधानसभा सीटें थीं. इनमें से 17 सीटों पर दो-दो विधायक चुने जाते थे. 1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में विधानसभा की कुल सीटें कम होकर 60 हो गई थीं, लेकिन तब भी 17 विधानसभा सीटों पर दो-दो विधायक ही चुने गए थे. लेकिन, 1962 में तीसरे विधानसभा चुनाव से यह राजनीतिक परंपरा खत्म कर दी गई. यह जानकारी चुनाव आयोग के स्टेटिस्टिकल रिपोर्ट में आसानी से देखी जा सकती है.
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जानिए... आखिर ऐसी व्यवस्था की क्यों गई थी?
आजादी के बाद हुए दोनों विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जनजाति (ST) या अनुसूचित जाति (SC) के लिए तय आरक्षित सीटों पर दो प्रतिनिधि चुने जाते थे. यहां एक सामान्य प्रतिनिधि और एक वर्ग विशेष का प्रतिनिधि होता था. संबंधित आरक्षित प्रतिनिधि का चुनाव आरक्षित वर्ग के मतों से ही होता था. यानी किसी एसटी के लिए आरक्षित सीट से दो प्रतिनिधियों का चुनाव होगा. अनुसूचित जाति के मतदाता अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को ही वोट डालते थे. जिस उम्मीदवार को ज्यादा मत मिलते थे, वही उनका प्रतिनिधि बनता था.
1957 की झारखंड की वो 18 सीटें जहां दो-दो विधायक चुने गए थे
रांचीः जगन्नाथ महतो (जेएचपी) और रामरतन राम (कांग्रेस)
रामगढ़ः रामेश्वर मांझी (सीएनपीएसपीजेपी) और तारा प्रसाद बक्सी (सीएनपीएसपीजेपी)
गिरिडीहः कामख्या नारायण सिंह (सीएनपीएसपीजेपी) और हेमलाल प्रगनैत (सीएनपीएसपीजेपी)
गावांः नागेश्वर राय (सीएनपीएसपीजेपी) और गोपाल रबिदास (सीएनपीएसपीजेपी)
गोड्डाः मणिलाल यादव (जेएचपी) और चुनका हेम्ब्रम (निर्दलीय)
दुमकाः बेंजामिन हांसदा (जेएचपी) और सनथ राउत (जेएचपी)
देवघरः शैलबाला रॉय (कांग्रेस) और मंगूलाल दास (कांग्रेस)
नल्लाः बाबूलाल मरांडी (जेएचपी) और उमेश्वर प्रसाद (जेएचपी)
पाकुड़ः रानी ज्योर्तिमयी देवी (कांग्रेस) और जीतू किस्कू (कांग्रेस)
लेस्लीगंजः राजकिशोर सिंह (कांग्रेस) और रामकृष्ण राम (सीएनपीएसपीजेपी)
घाटशिलाः श्याम चरण मुर्मू (जेएचपी) और शिशिर कुमार महतो (जेएचपी)
चक्रधरपुरः श्यामलाल कुमार पसराई (जेएचपी) और हरिचरण सोय (जेएचपी)
चांडिलः धनंजय महतो (कांग्रेस) और जतिंद्रनाथ रजक (निर्दलीय)
निरसाः रामनाराण शर्मा (कांग्रेस) और लक्ष्मी नारायण शर्मा (कांग्रेस)
मांडरः राम विलास प्रसाद (जेएचपी) और इग्नेश कुजूर (जेएचपी)
भवनाथपुरः जादूनंदन तिवारी (कांग्रेस) और रामदेनी चमार (कांग्रेस)
लातेहारः जोहान मुंज्नी (सीएनपीएसपीजेपी) और लाल जगधात्री नाथ शाहदेव (सीएनपीएसपीजेपी)
तोपचांचीः मनोरमा सिन्हा (कांग्रेस) और रामलाल चमार (कांग्रेस)
लोकसभा चुनाव में झारखंड की सीटों पर थी यह व्यवस्था
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तरह ही शुरुआती दो लोकसभा चुनावों में भी यही परंपरा चल रही थी. 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में झारखंड की 10 लोकसभा सीटों में से 5 सीटों पर दो-दो सांसद चुने जाते थे. 1957 में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव में दो-दो सांसदों वाली सीट घटकर एक हो गई. जबकि, 1962 में हुए तीसरे लोकसभा चुनाव में यह परंपरा खत्म कर दी गई.