"बिहारी डकैत" से लेकर "जोकर" और "गिरगिट" से लेकर "दलबदलू" तक, प्रशांत किशोर को सब कुछ कहा जा चुका है. लेकिन जिस बात पर सभी दलों के विरोधी और पीके (PK) के प्रतिद्वंदी सहमत हो सकते हैं, वह ये है कि पीके को सभी 'विध्वंसक' या कम से कम एक इस चुनाव में एक "फैक्टर" के रूप में देखा जा रहा है.
बिहार में विधानसभा चुनाव बेहद अहम होने वाले हैं. नवोदित प्रशांत किशोर का युवा जन सुराज पहचान की राजनीति से घिरे राज्य में एक विश्वसनीय तीसरे मोर्चे के रूप में उभरा है. हालांकि आत्मविश्वास से लबरेज पीके ने कई बार ज़ोर देकर कहा है कि जन सुराज इस चुनाव में भारी जीत हासिल करेगा, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह "राजनीतिक स्टार्टअप" बिहार की सियासत में हलचल मचाएगा या सिर्फ़ वोट काटेगा?
प्रशांत किशोर और उनके जन सुराज के बारे में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण क्या संकेत दे रहे हैं?
प्रशांत किशोर ने तो यहां तक दावा कर दिया है कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जन सुराज को बहुमत मिलेगा. चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने पीके का कहना है कि उनकी पार्टी "पहले स्थान" पर आएगी. उन्होंने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था, "या तो हम पहले स्थान पर होंगे या आखिरी. इस चुनाव में कोई बीच का रास्ता नहीं है."
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बिहार में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि कहीं बीच में आ सकते हैं, यानी कि फर्स्ट पोजिशन और लास्ट पोजिशन के बीच में. इंडिया टुडे डिजिटल द्वारा देखे गए कम से कम दो विश्वसनीय सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि पीके और उनका जन सुराज बीच में आ सकता है. क्या बिहार चुनाव इस तेज-तर्रार रणनीतिकार को गलत साबित करेंगे?
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होगा और नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. बिहार विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है.
PK बिहार चुनाव लड़ने के लिए तैयार
महीनों की अटकलों के बाद चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर ने पुष्टि की है कि वह बिहार के चुनावी मैदान में उतरेंगे.
हालांकि जन सुराज ने महीनों पहले बिहार विधानसभा उपचुनावों में चार उम्मीदवार उतारे थे और चारों हार गए थे लेकिन 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव पीके और जन सुराज की पहली असली परीक्षा होगी.
उन्होंने पहले घोषणा की थी कि उनकी जन सुराज पार्टी सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की योजना बना रही है. पार्टी 9 अक्टूबर को अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करेगी, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह "आश्चर्य से भरपूर" होगी और इसमें पीके का नाम भी होगा.
विशेषज्ञों और जमीनी पत्रकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर की जन सुराज युवाओं, उच्च जातियों, मध्यम वर्ग और शिक्षित मतदाताओं के बीच पैठ बना रही है. तो वहीं कुछ लोगों के लिए यह "ऊ पीला वाला नइका पार्टी" है.
बहरहाल बिहार के लोग अब एक नए खिलाड़ी के मैदान में होने का एहसास कर रहे हैं, जिसका श्रेय प्रशांत किशोर की 665 दिनों की पदयात्रा को जाता है. इस दौरान उन्होंने बिहार के 2,697 गांवों, 1,319 पंचायतों और 235 प्रखंडों की यात्रा की.
पिछले हफ्ते सीवान के एक यूट्यूबर को अपने फ़ॉलोअर्स को यह स्पष्ट करना पड़ा कि उन्होंने और उनके दोस्तों ने अपने गांव के पास अलग अलग दुर्गा पूजा मेलों में पीले रंग का स्कार्फ और गमछा पहनकर भोजन दान किया था. उन्होंने कहा, "यह एक पवित्र रंग है, और हमने यह नेक काम भक्तिभाव से किया."
सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख ने इंडिया टुडे टीवी को बताया, "जहां तक लोगों के आकर्षण और नैरेटिव का सवाल है, पीके बिहार में तीसरी ताकत बनकर उभरे हैं. उन्होंने खूब शोर मचाया है, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या वह इस लोकप्रियता को असली वोटों में बदल पाएंगे. मुझे इस पर संदेह है."
पीके मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शीर्ष पर, जन सुराज वोटकटवा: सर्वे
पिछले हफ्ते जारी सी-वोटर सर्वे में पीके सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरों की सूची में दूसरे (23.1%) नंबर पर हैं. आरजेडी के तेजस्वी यादव (35.5%) के बाद वे दूसरे स्थान पर थे, लेकिन मौजूदा मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार (23%) से आगे थे. जबकि डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से तो वे काफी आगे थे.
दिलचस्प बात यह है कि "सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरे" के रूप में पीके की लोकप्रियता का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है. यह आंकड़ा फरवरी में 15% से जून में 18% और सितंबर में यह 23% पर पहुंच गया था.
क्या बिहार के लोग उन्हें और जन सुराज को वोट देंगे, यह एक गंभीर प्रश्न है.
वोट वाइब के स्टेट वाइब बिहार चुनाव सर्वेक्षण में 56% लोगों ने जन सुराज को मुख्यतः "वोट कटवा" के रूप में देखा. हालांकि शेष 44% में से लगभग 8.4% का मानना था कि पीके मुख्यमंत्री बन सकते हैं, जबकि 15.8% का मानना था कि अगर नवंबर में होने वाले चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है, तो जन सुराज किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है.
इस सर्वे में यह भी पाया गया कि बिहार में बुजुर्ग मतदाता पीके के नेतृत्व वाली पार्टी को लेकर ज़्यादा संशय में हैं, जबकि युवा मानते हैं कि वह अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, सर्वेक्षण के अनुसार उच्च जाति के हिंदू किंगमेकर की भूमिका में सबसे ज़्यादा संभावना (23.0%) देखते हैं.
पिछले हफ्ते राजनीतिक टिप्पणीकार अमिताभ तिवारी ने लिखा था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान की लोजपा ने वोट काटने वाले की भूमिका निभाई थी; इस बार यह भूमिका प्रशांत किशोर की जन सुराज निभा सकती है.
हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि "चुनावी नतीजे व्यापक भावनाओं के बजाय सूक्ष्म स्तर के फैक्टर पर निर्भर करेंगे, जहां उम्मीदवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है."
कुल मिलाकर देखा जाए तो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि प्रशांत किशोर का जन सुराज बिहार विधानसभा चुनाव में ज़बरदस्त जीत हासिल नहीं करेगा, लेकिन यह हाशिए पर भी नहीं जाएगा. ज़्यादातर लोग इसे वोटकटवा मानते हैं, जबकि एक बड़ा वर्ग मानता है कि PK किंगमेकर की भूमिका निभाकर अगली सरकार बनाने में रोल निभा सकते हैं.
युवा मतदाताओं के बीच पीके की बढ़ती चर्चा उनकी बढ़ती लोकप्रियता का संकेत देती है. जैसे-जैसे बिहार चुनावों की ओर बढ़ रहा है सबकी निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि क्या जन सुराज चुनाव में महज अस्थायी खलल डालते हैं या निर्णायक साबित होता है. और क्या राजनेता पीके रणनीतिकार पीके को गलत साबित कर पाते हैं.