कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने रविवार को दावा किया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान पार्टी के बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) द्वारा दर्ज कराई गईं 89 लाख शिकायतों को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि इतनी बड़ी संख्या में गड़बड़ियों की अनदेखी चुनाव आयोग की नीयत पर सवाल खड़े करती है. इसपर चुनाव आयोग ने कहा है कि जिला निर्वाचन अधिकारी इन आपत्तियों को संबंधित निर्वाचन पंजीकरण अधिकारिओं (ERO) को उचित कार्यवाही के लिए अग्रेषित (forward) कर रहे हैं.
पवन खेड़ा के क्या हैं आरोप?
खेड़ा ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि कांग्रेस की टीम ने चुनाव आयोग को 89 लाख अनियमितताओं की शिकायतें दीं, लेकिन आयोग ने इन्हें स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा, “जब हमारे BLA शिकायतें दर्ज कराने गए, तो उन्हें कह दिया गया कि राजनीतिक दलों की ओर से शिकायतें स्वीकार नहीं की जाएंगी, केवल व्यक्तिगत शिकायतें ही ली जाएंगी.”
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि आयोग के इस रवैये से स्पष्ट है कि SIR की पूरी प्रक्रिया पर भरोसा नहीं किया जा सकता. उन्होंने मांग की कि पूरे विशेष पुनरीक्षण को दोबारा कराया जाए और सभी हटाए गए नामों की घर-घर जाकर जांच हो.
70 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के नाम काटने का दावा?
खेड़ा ने दावा किया कि इस दौरान 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं. इनमें से 25 लाख लोगों के नाम पलायन के कारण, 22 लाख मृत घोषित करने के आधार पर और करीब 9.7 लाख नाम अनुपस्थित पाए जाने पर हटाए गए. उन्होंने कहा कि कई बूथों पर महिलाओं के नामों को असमान रूप से हटाया गया है. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 7,613 बूथ ऐसे हैं जहां 70 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के नाम काट दिए गए.
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इसके अलावा, खेड़ा ने यह भी आरोप लगाया कि कई मतदाताओं को दो-दो EPIC नंबर जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा, “हमारे पास इसकी रसीदें हैं, जिन्हें नकारा नहीं जा सकता. इसलिए जरूरी है कि चुनाव आयोग इन आंकड़ों की जांच करे और गलतियों को सुधारे.”
दूसरी ओर, बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) कार्यालय ने कांग्रेस के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया. कार्यालय ने कहा कि अब तक कांग्रेस के किसी भी अधिकृत BLA ने न तो नाम जोड़े जाने (फॉर्म-6) और न ही नाम हटाने पर आपत्ति (फॉर्म-7) के लिए कोई दावा या शिकायत दर्ज कराई है.
सीईओ कार्यालय ने कहा कि वर्तमान मतदाता सूची केवल ड्राफ्ट है और इसमें दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया के बाद ही अंतिम सूची बनेगी. साथ ही कहा गया कि बिहार जैसे ग्रामीण इलाकों में एक जैसे नाम, पिता का नाम और उम्र होना आम है, इसलिए केवल डेटा माइनिंग से डुप्लिकेट साबित नहीं किया जा सकता.
कार्यालय ने साफ किया कि ECI के सॉफ्टवेयर ERONET 2.0 से डुप्लिकेट नामों को सिर्फ चिन्हित किया जाता है, लेकिन उन्हें फील्ड वेरीफिकेशन के बाद ही हटाया जाता है.
कुल मिलाकर, कांग्रेस और चुनाव आयोग के दावों ने बिहार की मतदाता सूची को लेकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. अब देखना होगा कि आयोग आगे इस मामले में क्या कदम उठाता है.