मेडिकल की ट्रेनिंग कर रहे FMG (Foreign Medical Graduates) छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में स्टाइपेंड ना मिलने की याचिका दायर की है. छात्रों ने अपनी शिकायत याचिका में लिखा है कि उनसे काम बाकी MBBS इंटर्न्स के बराबर ही लिया गया लेकिन इसके बदले उन्हें स्टाइपेंड नहीं दिया गया, जबकि नेशनल मेडिकल कमीशन के नियमों के अनुसार, इंटर्नशिप कर रहे सभी छात्रों को स्टाइपेंड देने का प्रावधान है.
बुद्धवार को कुछ FMG छात्र जो कि विदेश से मेडिकल डीग्री लेकर आए हैं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए एक शिकायत याचिका दर्ज की है. छात्रों का कहना है कि इंटर्नशिप के दौरान उनका पेमेंट नहीं किया गया है. इन छात्रों की शिकायत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए राजस्थान मेडिकल कॉलेज, नेशनल मेडिकल कमीशन और राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली को नोटिस जारी किया है. इन छात्रों ने एडवोकेट तन्वी दुबे की मदद से ये याचिका दायर की है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि छात्रों को स्टाइपेंड न देना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है.
दरअसल, नेशनल मेडिकल कमीशन के (कंपलसरी रोटेटिंग मेडिकल इंटर्नशिप ) रेगुलेशन्स 2021 के अनुच्छेद 3 के तहत यह प्रावधान है कि मेडिकल इंटर्नशिप कर रहे सभी छात्रों को स्टाइपेंड दिया जाएगा. इसके साथ ही 4 मार्च 2022 और 19 मई 2022 को नेशनल मेडिकल कमीशन द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुसार, सभी छात्रों को भारत से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के बराबर ही स्टाइपेंड दिया जाएगा. इन्हीं नियमों का हवाला देते हुए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (FMG) छात्रों ने याचिका दायर की.
छात्रों से जबरन पेपर साइन कराए गए
याचिका में छात्रों ने ये भी बताया कि इंटर्नशिप शुरू होने से पहले छात्रों से जबरन एक अंडरटेकिंग फॉर्म साइन करवाया गया था जिसमें लिखा था कि इंटर्नशिप के दौरान किसी भी तरह का कोई स्टाइपेंड नहीं दिया जाएगा, कोई और विकल्प न होने के कारण छात्रों को अंडरटेकिंग फॉर्म साइन करना पड़ा लेकिन उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि इंटर्नशिप के दौरान उन्हें खाने-पीने रहने, आने-जाने और भी रोज के बाकी खर्चों का सामना करना पड़ेगा. छात्रों को ये जानकर भी हैरानी हुई कि जिन छात्रों की इंटर्नशिप ग्रामीण क्षेत्रों में थी उन्हें भी वहां खर्चा खुद ही उठाना होगा.
भारतीय छात्रों को दिया गया स्टाइपेंड
अपनी याचिका में आगे लिखते हुए छात्रों ने बताया कि ड्यूटी रोस्टर के अनुसार, उनके काम करने का टाइम बाकी के MBBS इंटर्न के बराबर ही था लेकिन उन्हें कोई पैसा नहीं दिया गया. एडवोकेट तन्वी दुबे ने कोर्ट में छात्रों की बात पर दलील पेश करते हुए बताया कि लगभग 80-90 छात्रों की इंटर्नशिप मई से जुलाई 2023 के बीच शुरू हुई थी लेकिन भारत से पढ़ाई करने वाले छात्रों जैसा स्टाइपेंड उन्हें नहीं दिया गया. जब छात्र अपना खर्च उठाने में असमर्थ हुए तो उन्होंने कॉलेज और मेडिकल प्रबंधन से स्टाइपेंड देने की बात कही लेकिन उनकी बात पर किसी भी तरह की कोई सुनवाई नहीं हुई. याचिका में साफ तौर पर अस्पताल प्रबंधन के रवैये को गलत और गैर जिम्मेदाराना बताया गया.
26 जुलाई को होगी सुनवाई
एडवोकेट तन्वी दुबे की दलील सुनने के बाद जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्नवनाथन की बेंच ने मामले को संज्ञान में लेते हुए राजस्थान के 8 मेडिकल कॉलेज के FMG छात्रों और राम मनेहर लोहिया, नई दिल्ली के FMG छात्रों की याचिका पर नेशनल मेडिकल कमीशन, राजस्थान मेडिकल कॉलेज और राम मनोहर लोहिया अस्पताल, नई दिल्ली को एक नोटिस जारी किया गया है जिसके संबंध में सुनवाई 26 जुलाई को होगी.