एक बेटे का सपना था कि वो भी अपने पापा की तरह एक पुलिसवाला बने. मगर कांस्टेबल नहीं, बल्कि एक बड़ा पुलिस ऑफिसर. ये सपना भी उसने अपने पापा की वजह से ही देखा था. लेकिन एक रोज एक झूठी शिकायत की वजह से उसके पापा की वर्दी छीन ली जाती है. अब उस बेटे के साथ-साथ पूरे घर का सुनहरा ख्वाब दम तोड़ने लगता है. और तब बेटा एक कसम खाता है. कसम अपने पापा की खोई हुई इज्ज्त और वर्दी को वापस दिलाने की. और इसी के साथ शुरू होती है कि एक 12 साल लंबी लड़ाई.
कहते हैं कि बेटा अगर लायक हो तो मां-बाप का बुढ़ापा संवर जाता है. और वही बेटा अगर नालायक हो तो बुढ़ापा छोड़िए मां-बाप की जवानी भी जहन्नुम बन जाती है. ये कहानी है एक बर्खास्त पुलिस कॉंस्टेबल मिथिलेश पांडे और अपने सपने को जलाकर खाकी से काले कोर्ट में आ गए मिथिलेश पांडे के छोटे बेटे एडवोकेट अभिषेक पांडे की.
12 साल पुराना प्रण
मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के एक गांव में एमपी पुलिस के बर्खास्त कॉंस्टेबल मिथिलेश पांडे का परिवार रहता है. उस दिन खुद मिथिलेश पांडे, उनकी पत्नी, रिश्तेदार, पड़ोसी, सभी हाथों में फूल मालाएं लेकर किसी का इंतजार कर रहे हैं. ढ़ोल ताशों और पटाखों का दौर जारी है. इंतजार की घड़ियां खत्म होती हैं. और एक कार से एक नौजवान नीचे उतरता है. सबसे पहले वो अपनी मां के पांव छूता है. फिर एक एक कर बाकी सबके. पिता भीड़ में पीछे खड़े बेटे का इंतजार कर रहे हैं. एक साथ सबके चेहरे पर खुशियां भी है और नम आखें भी. फिर पिता अपने बेटे को गले लगाते हैं और इसके साथ ही एक बेटे का 12 साल का एक वचन, प्रण, कसम पूरा हो जाता है.
साल 2013, शहडोल, मध्य प्रदेश
इस जश्न की अहमियत को समझने के लिए हमें 12 साल पीछे जाना होगा. मिथिलेश पांडे मध्यप्रदेश पुलिस में एक कॉंस्टेबल हैं. परिवार में मिथिलेश पांडे की पत्नी और उनके दो बेटे बड़ा बेटा अविनाश पांडे और छोटा बेटा अभिषेक पांडे. बात 2013 की है, तब मिथिलेश पांडे शहडोल के अनूपपुर पुलिस लाइन में पोस्टेड थे. उसी वक्त पुलिस विभाग को एक गुमनाम शिकायत मिलती है. शिकायत ये थी कि मिथिलेश पांडे ने 1 लाख 98 हजार रुपए का एक प्लॉट खरीदा है और उनके पास स्कॉर्पियों गाड़ी है.
पुलिस विभाग का एक तरफा फैसला
शिकायत गुमनाम थी, शिकायत भेजने वाले ने जो पता भेजा था वो भी फर्जी था. मिथिलेश पुलिस विभाग को ये सफाई भी दे चुके थे कि उन्होंने 1 लाख 98 हजार का प्लॉट बैंक से लोन लेकर खरीदा था. और उनके पास कोई स्कॉर्पियो गाड़ी नहीं है. लेकिन फिर भी पुलिस विभाग ने एकतरफा जांच के बाद मिथिलेश पांडे को सस्पेंड कर दिया.
नौकरी से बर्खास्तगी
तमाम सफाई के बावजूद बिना किसी ठोस सबूत के एमपी पुलिस विभाग ने मिथिलेश पांडे को सस्पेंड करने के कुछ वक्त बाद ही नौकरी से सीधे बर्खास्त कर दिया. असल में बर्खास्तगी से पहले मिथिलेश को पुलिस विभाग के सामने एक तय तारीख पर फिर से बुलाया गया था. लेकिन उस तय तारीख पर मिथिलेश पांडे बीमार थे. वो विभाग के सामने पेश नहीं हो सके. उन्हें अगली तारीख देने के बजाय पुलिस विभाग ने सीधे उन्हें टर्मिनेट यानि नौकरी से बर्खास्त कर दिया.
बदलना पड़ा था स्कूल-कॉलेज
एक मिथिलेश पांडे अपने घर में अकेले कमाने वाले थे. नौकरी जाते ही पूरे घर पर पहाड़ टूट पड़ा. दोनों बेटे तब पढ़ाई कर रहे थे. बड़ा बेटा बीटेक कर रहा था. बीटेक के बाद उसे एमटेक करना था. गेट का इम्तिहान देना था. जिसकी फीस काफी ज्यादा थी. छोटा बेटा अभिषेक तब सातवीं में था. स्कूल की फीस ज्यादा थी, इसीलिए मिथिलेश पांडे ने दोनों को दूसरे स्कूल में डाल दिया था.
जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका
इधर, बर्खास्तगी के खिलाफ मिथिलेश पांडे ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. पर वो याचिका भी कानून के ढेरों फाइलों के बीच कहीं दबी रही. मिथिलेश पांडे छोटा मोटा काम करके घर चलाने की कोशिश कर रहे थे. पिता की हालत देखकर बड़ा बेटा अविनाश बीच में ही पढ़ाई छोड़ने का फैसला करता है और पिता का हाथ बटाने के लिए नौकरी करने लगता है.
अभिषेक ने किया अहम फैसला
तब अभिषेक बारहवीं में था. वो तब तक एक पुलिस अफसर बनना चाहता था. पर वो चाहता था कि वो अपने पिता से बड़ा अफसर बने. यही उसका सपना था. लेकिन नौकरी जाने के बाद घर में पिता को इस तरह टूटते देख एक रोज अचनाक अभिषेक ने फैसला किया कि अब वो पुलिस में नहीं जाएगा. बल्कि अपना सपना अपने पिता को उनकी खोई हुई वर्दी दिलाकर पूरा करेगा और इसके लिए उसने वकील बनने की ठान ली.
वकील बन गया था अभिषेक
अभिषेक ने भोपाल में LLB यानी कानून की पढ़ाई शुरु कर दी. पहले साल का पूरा खर्चा बड़े भाई ने उठाया. फिर अगले साल से पढ़ाई के साथ साथ फीस का खर्चा निकालने के लिए अभिषेक ने भी पार्ट टाइम जॉब शुरु कर दिया. धीरे धीरे वक्त बीता और आखिरकार 2023 में अभिषेक वकील बन गया. वकील बनते ही उसने जबलपुर हाईकोर्ट में उन वकील साहब के अंडर प्रैक्टिस शुरु कर दी जो अब तक उसके पिता का केस देख रहे थे. अभिषेक चाहता तो वो क्रिमिनल केस की भी प्रैक्टिस कर सकता था मगर उसे पता था कि वो वकील क्यों बना है. बस इसीलिए उसने सर्विस से रिलेटेड केसेज पर काम करना शुरू कर दिया.
गंभीरता से स्टडी किया पिता का केस
बेटा वकील बन चुका था लेकिन पिता का केस अब भी जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई का इंतजार कर रहा था. इस दौरान अभिषेक ने अपने पिता के केस की पूरी फाइल लगभग घूंट-घूंट कर पी चुका था. केस की हर छोटी बड़ी जानकारी जुटाने के काम में लगा था. फिर जब उसे यकीन हो गया कि अब वो अपने पिता का केस बेहतर ढंग से हैंडल कर सकता है तब उसने जबलपुर हाईकोर्ट में सालों से लंबित पड़ी अपने पिता की याचिका की सुनवाई के लिए अर्जी डाली.
सीनियर ने कहा- खुद लड़ो पिता का केस
केस की सुनवाई अब शुरु हुई. जब अदालत में पहली बार इस केस पर जिरह शुरु हुई तो जिन वकील साहब के अंडर में अभिषेक प्रैक्टिस कर रहा था, खुद उन्होंने आगे बढ़ कर अभिषेक से कहा कि ये तुम्हारा केस है, तुम्हारे पिता का केस है. तुमसे बेहतर इसे कोई नहीं लड़ सकता. इसलिए ये केस तुम खुद लड़ो. अभिषेक ने मशहूर हिंदी फिल्म मुन्ना भाई MBBS कई बार देखी थी. उसे उस फिल्म का एक सीन और डायलॉग अच्छी तरह याद था. जब बोमन ईरानी ये कहते हैं कि अगर कोई डॉक्टर अपनी बेटी का ऑपरेशन कर रहा हो तो उसके हाथ कांपते हैं.
...और फिर आया फैसले का दिन
अभिषेक को अच्छी तरह पता था कि ये सिर्फ एक केस नहीं है, उसके पूरे परिवार की जिंदगी, उनकी खुशियां, उनकी इज्जत और सबसे बड़ी बात पिता की वर्दी का सवाल है. इस एक केस के हारने का मतलब था 12 साल की सारी उम्मीदों का दम तोड़ देना. वैसे भी अभिषेक के पिता मिथिलेश पांडे कबकी उम्मीदों का दामन छोड़ चुके थे. और फिर आखिरकार वो दिन आ ही गया. इस परिवार की जिंदगी के सबसे बड़े फैसले का दिन. तमाम सुनवाई के बाद अब अदालत को अपना फैसला सुनाना था. पूरा परिवार फैसले के दिन गांव में था. अकेला एडवोकेट अभिषेक पांडे कोर्ट के अंदर.
कोर्ट ने मिथिलेश पांडे के हक में सुनाया फैसला
27 मई 2024 को जबलपुर हाईकोर्ट अपना फैसला सुनाती है. और इस एक फैसले के साथ एक बेटा अपने पिता को उसकी सारी खुशियां, खोई हुई इज्जत और उतार ली गई वर्दी सब कुछ लौटा देता है. 12 साल बाद इस फैसले के साथ लगा कि अब सबकुछ बदल गया. सबकुछ ठीक हो गया. लेकिन ऐसा नहीं था. अब भी मिथिलेश पांडे और उनकी वर्दी के बीच कुछ दूरियां थी. कुछ लोग अब भी दुश्वारियां पैदा कर रहे थे. अभिषेक का काम अभी खत्म नहीं हुआ था. अब उसे एक और लड़ाई लड़नी थी.
पुलिस विभाग की लापरवाही
जबलपुर हाई कोर्ट मिथिलेश पांडे की बहाली का फैसला सुना चुकी थी. लेकिन एमपी पुलिस अब भी मिथिलेश को उनकी वर्दी वापस देने के मूड में नहीं थी. अब पुलिस विभाग की कार्रवाई के नाम पर मिथिलेश की बहाली का फाइल एक अफसर से दूसरे अफसर के दफ्तर के चक्कर काटता रहा. दरअसल, बात सिर्फ मिथिलेश को ड्यूटी पर वापस लेने की नहीं थी. बल्कि नौकरी पर बहाली का मतलब था कि मिथिलेश को पिछले बारह सालों की तनख्वाह भी देनी थी, जो इन बारह सालों में पचास लाख से ज्यादा बैठती. इसलिए उन्हें परेशान किया जा रहा था.
हाई कोर्ट ने जारी किया नोटिस
अभिषेक लड़ाई जीत कर भी जीत नहीं पा रहा था. तब उसने एक बार फिर से जबलपुर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट को जब ये पता चला तो हाई कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाते हुए एसपी और आईजी को नोटिस जारी कर दिया कि अदालत के आदेश के बाद भी मिथिलेश की नौकरी बहाल ना करने के लिए क्यों ना दोनों अफसरों के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दर्ज किया जाए.
4 अप्रैल को वापस मिली खोई हुई इज्जत और सम्मान
जैसे ही जबलपुर हाई कोर्ट के इस सख्त तेवर के बारे में पुलिस विभाग को पता चला आनन-फानन में सब कुछ बदल गया. इसी 4 अप्रैल को आखिरकार मिथिलेश पांडे की बर्खास्गी को रद्द करते हुए पूरे सम्मान और इज्जत के साथ पूरे 12 साल बाद आखिरकार उन्हें उनकी नौकरी वापस मिल गई. और इसके साथ ही एक बेटे का वचन और प्रण दोनों पूरा हुआ.
5 अप्रैल को वापस घर लौटा अभिषेक पांडे
जब एमपी पुलिस ने 4 अप्रैल को मिथिलेश पांडे को वापस बहाल किया उस रात अभिषेक पांडे अपने घर से दूर जबलपुर में थे. रात को खबर मिलते ही वो फौरन गांव के लिए निकल पड़ते हैं. पांच अप्रैल की सुबह का वक्त था. घर वालों को भी पता था कि घर का वो बेटा घर लौट रहा है. जिसने अपने पिता को उनकी वर्दी वापस दिलाने की कसम खाई थी. उसी लायक बेटे के लिए पूरा घर और मोहल्ला इस वक्त उसका इंतजार कर रहा था.
'वकील हूं, वकील रहूंगा'
12 साल बाद मिथिलेश पांडे फिर से पुलिसवाले बन गए थे. उन्हें उमरिया के थाने में पोस्टिंग मिली. एक बार फिर से मिथिलेश पांडे के जिस्म पर उनकी पसंदीदा खाकी वर्दी थी. हालांकि 12 सालों में बहुत कुछ बदला तो मिथिलेश पांडे की वर्दी का साइज़ भी बदल गया था. पुरानी वर्दी अब उन्हें फिट नहीं आ रही थी. लिहाज़ा नई वर्दी सिलाई गई. और इस तरह जिस कसम के साथ अभिषेक वकील बने थे वो पूरा हो गया. तो अब? अब आगे क्या? क्या अभिषेक अब वकालत छोड़ देंगे क्या अब वो अपने पुराने सपने की तरफ लौटेंगे? इस पर एडवोकेट अभिषेक पांडे ने कहा कि वकील हूं. वकील रहूंगा. इंसाफ दिलाने में जो खुशी है. वो किसी काम में नहीं.
(शहडोल से रवि शुक्ला का इनपुट)