हर कोई यही सवाल पूछता है ये कोरोना कब खत्म होगा. हर कोई यही जानना चाहता है कि आखिर हम सबकी पुरानी ज़िंदगी फिर से कब लौटेगी? कब हम अपनी पुरानी आदतों के साथ जिएंगे? तो कायदे से इसका कड़ुवा जवाब ये है कि फिलहाल तो कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लीजिए. ना सिर्फ आदत डाल लीजिए बल्कि रोजमर्रा की ज़िंदगी में बहुत सी जरूरी चीजें जो बदलने जा रही हैं, उसे अपनाना भी अभी से सीख लीजिए. क्योंकि कोरोना फिलहाल जाने वाला नहीं बल्कि आपके साथ घूमने वाला है.
अगर पिछले साल की ईद और इस साल की ईद की तस्वीरों को देखें तो ज़िंदगी बदलने का मतलब समझ आ जाएगा. यहां तो रस्म ए दुनिया भी थी, मौक़ा भी था, दस्तूर भी. पर फिर भी ईद से गले दूर ही रहे. पर काश, बात सिर्फ़ ईद तक होती तो भी सब्र किया जा सकता था. मगर अब तो कहने वाले कह रहे हैं कि कोरोना के साथ जीने की आदत डाल लो. यानी कोरोना से पहले की ज़िंदगी जीने का जो तरीक़ा था, उसे बदल डालो. बदलना ही होगा. हाथ मिलाना और गले लगना अब शायद इसी तरह तस्वीरों में ही देखने को मिले. अभी तक कोरोना ने पैनडेमिक बन कर तबाही मचाई. अब कहा जा रहा है कि यही कोरोना एनडेमिक भी बन सकता है.
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अब आप कहेंगे कि पैनडेमिक के बाद ये एनडेमिक क्या बला है? तो पैनडेमिक महामारी को कहते हैं, जबकि एनडेमिक उस हालत को कहते हैं जिसमें एक वायरस इंसानों के साथ घूमता रहता है. और उन लोगों पर असर डालता है, जिनके शरीर ने या तो इनसे लड़ने की क्षमता पैदा नहीं की है. या फिर उन्हें इसकी वैक्सीन नहीं लगी है. ज़ाहिर है कोरोना वायरस की वैक्सीन तो फिलहाल बनी नहीं है. ऐसे में ये इंसानों के साथ ही घूमता रहेगा.
पर हां, बहुत मुमकिन है कि एनडेमिक बनने के बाद ये वायरस सीज़नल बन जाए और कुछ ही मौसमों में लोगों को संक्रमित करे या फिर ये सालभर भी लोगों को इंफेक्ट करता रहे. सबसे पहले ये सलाह या चेतावनी उनसे समझते हैं, जो इसके एक्सपर्ट हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन यानी डब्लूएचओ के इमरजेंसी एक्सपर्ट माइक रायन के मुताबिक एक तो कोरोना वायरस कभी खत्म नहीं होगा और दूसरा ये कि वो एनडेमिक वायरस बनकर हमेशा हमारे साथ ही रहने वाला है.
डब्लूएचओ के इमरजेंसी एक्सपर्ट माइक रायन के मुताबिक हो सकता है कि ये कोरोना वायरस हमारे बीच से कभी जाए ही नहीं. ठीक वैसे ही जैसे एचआईवी और डेंगू जैसे वायरस आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. जिनकी वैक्सीन अभी तक नहीं बन पाई है और जिनके साथ अब हमने जीना सीख लिया है. इसी तरह हमें कोरोना वायरस के साथ भी रहना सीखना होगा.
हालांकि दुनियाभर की सरकारों और मेडिकल साइंस को उम्मीद है कि जल्द ही कोरोना वायरस की कोई ना कोई वैक्सीन मिल जाएगी. मगर दूसरी तरफ वो ये भी कह रहे हैं कि हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा. खुद भारत सरकार और डब्लूएचओ भी लगातार इस बात को दोहरा रही है. और न्यू नॉर्मल की बात कह रही है. यानी एक नई तरह की सामान्य ज़िंदगी जो कई एहतियात के साथ होगी. तो सवाल ये है कि आखिर कोरोना के साथ हमें कैसे और किस तरीके से जीना होगा. तो आइये सिलसिलेवार समझते हैं कि कोरोना के साथ हमारी नई ज़िंदगी कैसी होगी.
सोशल डिस्टेंसिंग
सोशल डिस्टेंसिंग का जो पालन आप अभी कर रहे हैं. मुमकिन है कि आगे भी जब हम न्यू नॉर्मल लाइफ की तरफ बढ़ेंगे. तब भी आपको सोशल डिस्टेंसिंग का यूं ही पालन करना पड़े. ईद की झलक तो देख ली आपने. बाकी अपने देश में ये जो लंबी लंबी कतारें, ये भीड़ भरे बाज़ार, दुकानों, मार्केट, रेस्तरां, सिनेमाहॉल, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, शादी घर यहां तक कि श्मशान और क़ब्रिस्तान तक में इंसान को इंसानों से दूर ही रहना पड़ेगा.
मास्क और सेनेटाइज़र
मोबाइल और पर्स की तरह मास्क और सेनेटाइज़र तब हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा होंगे. पूर्वी एशियाई देशों यानी चीन, जापान और हॉन्गकॉन्ग में तो सर्दियों के मौसम में इंफेक्शन फैलते ही लोग पहले से मॉस्क और ग्लव्ज़ का इस्तेमाल करते रहे हैं. लेकिन मॉस्क और सेनेटाइज़र भारत में आमतौर पर इस्तेमाल करना इतना आसान नहीं है. इतना ही नहीं ये आदत अपनाना भारतीयों के लिए महंगा सौदा भी है. हालांकि सरकार पब्लिक प्लेसेस में मास्क ना पहनने पर जुर्माना लगा सकती है.
डिजिटल ट्रांज़ैक्शन
अगर हमारी ज़िंदगी न्यू नॉर्मल की तरफ बढ़ी तो ये मानकर चलिए की तब ज़्यादातर खरीद-फरोख्त डिजिटल ट्रांज़ैक्शन के ज़रिए ही होंगी. और तब लोग बैंक जाने से और नकदी इस्तेमाल करने से बचेंगे. क्योंकि इससे बार बार संक्रमित होने का खतरा कायम रहेगा. एक आंकड़े के मुताबकि लॉकडाउन के दौरान हिंदुस्तान में पहले के मुकाबले ज़्यादा डिजिटल ट्रांज़ैक्शन का इस्तेमाल हुआ.
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वर्क फ्रॉम होम
कंपनियां जितना मुमकिन हो सकेगा अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करवाएंगी. आईटी कंपनियों के ज़्यादातर काम तो कर्मचारी अपने अपने घरों से ही करेंगे. स्टैंडफोर्ड की स्टडी भी बताती है कि घर से काम करने वाले कर्मचारी दफ्तर में काम करने वालों से ज़्यादा प्रोडक्टिव और क्रिएटिव होते हैं. ज़ाहिर है कंपनियों को इस नए चलन को अपनाने में ज़रा भी तकलीफ नहीं होगी.
स्कूलों में होंगे बदलाव
अगर कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं बनीं तो ये मानकर चलिए कि बच्चों के स्कूल में पढ़ाई का तरीका पूरी तरह से बदलने वाला है. तब बच्चे एक दूसरे को छूने या हाथ मिलाने से बचेंगे. एक दूसरे के साथ खेल नहीं सकेंगे. साथ ही बच्चों के बैठने की व्यवस्था भी सोशल डिस्टेंसिंग के हिसाब से की जाएगी और बहुत ज़्यादा मुमकिन है कि डिजिटल एजूकेशन यानी कम्प्यूटर के ज़रिए पढ़ाई इतनी सामान्य और चलन में आ जाए कि बच्चे स्कूल जाना ही बंद कर दें.
यातायात में बदलाव
यातायात के तरीकों में तो बहुत सारे बदलाव हमें अभी से देखने को मिलने लगे हैं. हाल ही में भारत सरकार ने एयर ट्रांसपोर्ट के लिए नई गाइडलाइन जारी की है. मसलन आरोग्य सेतु ऐप मोबाइल पर इंस्टाल करना ज़रूरी है. सोशल डिस्टेंसिंग करना. मास्क पहनना होगा और थर्मल स्क्रीनिंग होगी. इस तरह के कई और नियम कानून बनाए गए हैं. जो रोडवेज़, मेट्रो और रेलवे के लिए भी अपनाए जाएंगे. निजी वाहनों के लिए भी नए नियम जारी हो सकते हैं. मसलन टू-व्हीलर पर एक और फोर व्हीलर पर दो ही लोगों के बैठने की परमीशन होगी.
बदल जाएगी इंडस्ट्री
कोरोना के काल के बाद हमारी इंडस्ट्री और उसके काम करने का तरीका भी पूरी तरह से बदल जाएगा. लेबर कम हो जाएगी. और जो होंगे भी उन्हें सोशल डिस्टेंसिग का पालन करना होगा. हर सेक्टर में कंपनियों को अपने कर्मचारियों का हेल्थ इंश्यूरेंस कराना होगा. और कंपनियों में ऑटोमेशन बढ़ जाएगा. यानी काम इंसानों से कम मशीनों से ज़्यादा किया जाएगा. ज़ाहिर है इससे देश की बेरोज़गारी तब पहले से भी कहीं ज़्यादा होगी.
हेल्थ सिस्टम को बेहतर बनाना
ज़ाहिर है इन हालात में सरकारें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को ठीक करने की कोशिश करेगी और उन्हें पहले से बेहतर बनाया जाएगा. कोरोना की टेस्टिंग ज़्यादा जगहों पर और ज़्यादा तादाद पर की जाएगी और एहतियाती कदम ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाए जाएंगे. कुल मिलाकर अब हमारी ज़िंदगी की तस्वीर ऐसी ही होने वाली है. आने वाले दौर में हालात बिल्कुल जुदा होंगे. यानी कुल मिलाकर, अब यही तस्वीर हम सबकी तकदीर है.