कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर के साथ हुई हैवानियत के बाद पूरे देश में गुस्से की लहर है. इस केस की जांच कोलकाता पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी गई है. सीबीआई की टीम कोलकाता पहुंच चुकी है. इसी बीच अखिल भारतीय सरकारी डॉक्टर संघ के अतिरिक्त महासचिव डॉ. सुवर्ण गोस्वामी ने सनसनीखेज दावा किया है. इसके मुताबिक पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ था. उसके प्राइवेट पार्ट से 151 ग्राम लिक्विड मिला है, जो किसी एक शख्स का नहीं हो सकता. इस तरह की एक हैवानियत 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में हुई थी.
मुंबई के उस अस्पताल में ठीक वैसा ही कुछ हुआ था, जो 51 साल बाद कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में हुआ है. कोलकाता में इस बार जूनियर डाक्टर निशाने पर थी, तब मुंबई में अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स निशाने पर थी. अरुणा साल 1966 में कर्नाटक से मुंबई आई और किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में बतौर नर्स काम करने लगी. इसके बाद में अस्पताल के ही एक डॉक्टर से उसकी शादी भी तय हो गई. लेकिन उसके एक अनहोनी हो गई.
कुत्ते के चेन से वार्ड बॉय ने अरुणा का गला घोंट दिया
शादी से सिर्फ एक महीने पहले ही 27 नवंबर 1973 को अस्पताल के अंदर ही सोहनाल वाल्मीकि नामक एक वार्ड बॉय ने अरुणा शानबाग के साथ बलात्कार किया. फिर पकड़े जाने के डर से उसने कुत्ते के चेन से अरुणा का गला घोंट दिया और उसे मुर्दा समझ कर वहां से फरार हो गया. लेकिन अरुणा मरी नहीं थी. अलबत्ता उस दिन के बाद से वो फिर कभी जिंदा भी नहीं कहलाई. वो कोमा में चली गई. इसके बाद पूरे 42 साल तक वो कोमा में रही.
अरुणा के लिए इच्छा मृत्यु की मांग को कोर्ट ने ठुकराया
इस दौरान उसकी मौत के लिए कुछ लोग अदालत तक चले गए. इच्छा मृत्यु की मांग की गई. लेकिन अदालत ने मौत देने से इंकार कर दिया. मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अरुणा को जीना होगा. इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं दी जा सकती. फैसला देने से पहले कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड से उनका चेकअप करवाया था. डाक्टरों की रिपोर्ट और केईएम अस्पताल के नर्सों की दलील के बाद 7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने उनको इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं दी.

42 साल तक अरुणा जिन्दगी और मौत के साथ लेटी रही
कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को मंजूरी देने के बावजूद उनको जीवित रखने के लिए कहा था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ये कहना मुश्किल है कि अरुणा क्या चाहती हैं. लेकिन उनके हाव-भाव बताते हैं कि उन्हें जिंदगी से अब भी लगाव है. अच्छा खाना या किसी स्टाफ को लेकर अच्छा रवैया दिखाना ये साबित करता है कि वह जीना चाहती हैं. लिहाजा 42 साल तक उनकी जिन्दगी, मौत के साथ लेटी रही. जैसे बिस्तर पर दोनों साथ-साथ सो रही हों.
नर्स की जिंदगी बर्बाद करने वाले को महज 7 साल की सजा
42 साल बाद अचानक जिन्दगी चुपके से बिस्तर से उतर कर चली गई. निमोनिया की वजह से आखिरकार अरुणा शानबाग के हिस्से वो मौत आ ही गई जो 42 साल पहले आकर भी दूर रह गई थी. अरुणा के गुनहगार सोहन लाल को बाद में सिर्फ सात साल की सजा हुई. सजा काट कर वो 1980 में जेल से बाहर भी आ गया. रिहाई के बाद वो नाम और पहचान बदल कर दिल्ली के किसी अस्पताल में नौकरी भी की. लेकिन फिर बाद में उसकी भी मौत हो गई.

अरुणा के गुनहगार ने कहा था- भगवान से माफी मांगता हूं!
अरुणा शानबाग के साथ हुई दरिंदगी पर सोहन लाल ने कहा था कि उसे बहुत पछतावा है. उसने एक इंटरव्यू में कहा था, ''मैं अरुणा दीदीजी और अपने भगवान से माफी मांगना चाहता हूं. मैंने मांसाहार छोड़ दिया, बीड़ी और शराब को भी त्याग दिया. मेरे जेल जाने से पहले मेरी एक बेटी थी, जिसकी मौत हो गई. वह मर गई, क्योंकि मैंने गुनाह किया था. जेल से आने के कई वर्ष तक मैंने अपनी पत्नी को छूआ भी नहीं. 14 साल बाद मेरा बेटा पैदा हुआ.''
पढ़ाई में होशियार थी अरुणा, 1971 में लगी पहली नौकरी
बताते चलें कि अरुणा शानबाग के 10 भाई और बहन थे. वो जब 10 साल की थी, तभी पिता की मौत हो गई. पूरे परिवार की जिम्मेदारी बच्चों पर आ गई. बड़े भाई-बहनों ने मेहनत करके अरुणा की पढ़ाई कराई, क्योंकि उसे पढ़ने-लिखने का शौक था. प्रारंभिक शिक्षा गांव में हासिल करने के बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई आ गई. बड़ी बहन के पास रहक नर्सिंग की पढ़ाई करने लगी. साल 1971 में किंग एडवर्ड हॉस्पिटल में उसकी नौकरी लगी थी.