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दोहरी मार: कोरोना के इलाज में 50% रकम PPE किट्स के नाम पर वसूल रहे अस्पताल

इस साल जनवरी से मार्च महीने के बीच इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदारों की संख्या में 20-50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. संभव है कि कई लोगों ने कोरोना महामारी को देखते हुए जल्दी से इंश्योरेंस पॉलिसी ली है. लेकिन दिक्कत यह है कि लोगों के पास पॉलिसी होने के बावजूद उन्हें अपने जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.

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किट्स का पैसा नहीं दे रहीं इंश्योरेंस कंपनियां (प्रतीकात्मक फोटो)
किट्स का पैसा नहीं दे रहीं इंश्योरेंस कंपनियां (प्रतीकात्मक फोटो)

  • बिल में 50 प्रतिशत राशि किट्स के नाम पर
  • इंश्योरेंस कंपनियां नहीं दे रहीं किट्स का पैसा

क्या आप मानेंगे कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले अस्पताल, N95 मास्क और पीपीई किट्स के नाम पर एक लाख रुपये का बिल बना रहे हैं? ये सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है लेकिन देश के निजी अस्पतालों में इन दिनों यही चल रहा है. आजतक ने कुछ ऐसे ही केस का पता लगाया है, जिसमें निजी अस्पतालों ने मास्क और पीपीई किट्स के नाम पर बिल में 50 प्रतिशत राशि जोड़ दी है. ताज्जुब यह है कि अब तक इस तरह के आइटम्स पर अस्पताल केवल 10 प्रतिशत ही चार्ज करता था जो अब बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है. यानी कि बिल का 50 प्रतिशत दवाइयों पर और 50 प्रतिशत जो मरीज की इलाज के दौरान मेडिकल स्टाफ पर खर्च होता है.

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सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि मेडिकल स्टाफ एक बार में पीपीई किट और मास्क पहनकर कई मरीजों को देखते हैं, लेकिन बिल सभी के नाम पर पूरे दिए गए हैं. यानी अगर पांच मरीजों को एक बार में देखा गया तो पीपीई किट्स और मास्क के दाम को पांचों में बांटा जाना चाहिए था. उदाहरण के तौर पर अगर एक किट का दाम 1000 रुपये है और इसे पांच लोगों पर इस्तेमाल किया गया है तो फिर सभी मरीजों से 200 रुपये चार्ज करना चाहिए, लेकिन हो यह रहा है कि सभी मरीजों से 1000-1000 रुपये चार्ज किए जा रहे हैं.

मुंबई में एक निजी अस्पताल ने एक परिवार को 2.8 लाख रुपये का बिल थमाया है, जिसमें 1.4 लाख रुपये मास्क और पीपीई किट्स के नाम पर जोड़े गए हैं. मुंबई के एक निजी अस्पताल में भर्ती मरीज ने बताया, 'मैं कोविड-19 मरीज था और 19 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा. मुझे जब बिल थमाया गया तो मैंने देखा आधा पैसा सिर्फ पीपीई किट्स, मास्क्स और फेस शिल्ड पर खर्च किए गए हैं. उससे भी बड़ा झटका तब लगा जब इंश्योरेंस कंपनी ने बताया कि वो मास्क, फेस शिल्ड और पीपीई किट्स का पैसा नहीं चुकाएंगे.'

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दिल्ली में कोरोना का इलाज करा रहे एक मरीज के भाई सुरेंद्र ने बताया कि पूरे भारत में यही समस्या है. मेरे भाई का भी इलाज चल रहा था. वह नौ दिनों तक अस्पताल में था. जिसके बाद अस्पताल ने सिर्फ पीपीई किट्स के नाम पर 80 हजार रुपये चार्ज किए हैं. शुरुआत के दो दिनों में अस्पताल ने 4,300 रुपये चार्ज किए थे लेकिन बाकी के सात दिनों में उन्होंने प्रति किट 8,900 रुपये चार्ज किए हैं.

चेन्नई का एक मरीज कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक होकर घर पहुंचा लेकिन उन्होंने जब अस्पताल का बिल देखा तो उनके होश उड़ गए. उसमें पीपीई के नाम पर 33000 रुपये चार्ज किए गए थे. फिलहाल उन्होंने अस्पताल प्रशासन से बिल की राशि कम करने की अपील की है.

हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वो पारदर्शिता सुनिश्चित कर रहे हैं और मरीजों को प्रत्येक दिन का हिसाब दे रहे हैं. अस्पताल ने बताया कि कोरोना बीमारी में संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा होता है , साथ ही कई मरीज ऐसे आते हैं जिन्हें पहले से भी कई सारी बीमारियां होती हैं. उनकी तरफ से सभी सरकारी गाइडलाइन्स को फॉलो किया जा रहा है. जहां तक कंज्यूमेबल्स आइटम की बात है वह एक मरीज के लिए ही उपयोग किया जाता है.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल जनवरी से मार्च महीने के बीच इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदारों की संख्या में 20-50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. संभव है कि कई लोगों ने कोरोना महामारी को देखते हुए जल्दी से इंश्योरेंस पॉलिसी ली है. लेकिन दिक्कत यह है कि लोगों के पास पॉलिसी होने के बावजूद उन्हें अपने जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.

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जिसके बाद इंश्योरेंस समाधान ने इस मामले को देखना शुरू किया. इंश्योरेंस समाधान एक संस्था है जो लोगों को इंश्योरेंस क्लेम करने के तरीकों को लेकर कानूनी सलाह देता है. इंश्योरेंस समाधान के को फाउंडर दीपक भुवनेश्वरी उनियाल ने बताया कि डिस्पोजल आइटम के दाम 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होते. लेकिन कोरोना के मामले में अस्पताल 50 प्रतिशत चार्ज कर रहा है. इंश्योरेंस कंपनिया इस तरह की वस्तुओं (मास्क, फेस शिल्ड और पीपीई किट्स) के लिए पैसा नहीं चुकातीं. दिक्कत यह है कि आजकल बिल में इस नाम पर भारी पैसे मांगे जा रहे हैं.

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