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खिड़की से होती थी बात, नेटफ्लिक्स पर कटता था वक्त, कोरोना से जंग जीतने वालों की कहानियां

मोनामी विश्वास कोलकाता की रहने वाली हैं. 24 साल की मोनामी विश्वास यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की छात्रा थीं. मध्य मार्च में जब वो विदेश से भारत लौटीं तो वो कोरोना पॉजिटिव पाई गईं. इसके बाद उन्हें दो हफ्ते तक क्वारनटीन करके रखा गया. मोनामी कहती है कि क्वारनटीन में नेटफ्लिक्स देख कर वह अपना वक्त गुजारती थीं.

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सूरत में एक महिला अपने बच्चे के साथ खुद को ढकती हुई (फोटो- पीटीआई)
सूरत में एक महिला अपने बच्चे के साथ खुद को ढकती हुई (फोटो- पीटीआई)

  • हौसले से दे रहे हैं कोरोना को मात
  • क्वारनटीन में लोगों ने कैसे गुजारे वक्त
  • दहशत में आने की जरूरत नहीं

कोरोना के कहर के बीच कुछ पॉजिटिव कहानियां भी आ रही हैं. कई लोग ऐसे हैं जो हफ्ते-दस दिनों तक कोरोना से संघर्ष करने के बाद इस बीमारी को मात देने में सफल रहे हैं. इंडिया टुडे ने ऐसे कुछ लोगों से बात की है और अपने अनुभव हमसे साझा किए हैं.

नेटफ्लिक्स का सहारा लिया- मोनामी

मोनामी विश्वास कोलकाता की रहने वाली हैं. 24 साल की मोनामी विश्वास यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की छात्रा थीं. मध्य मार्च में जब वो विदेश से भारत लौटीं तो वो कोरोना पॉजिटिव पाई गईं. इसके बाद उन्हें दो हफ्ते तक क्वारनटीन करके रखा गया. मोनामी कहती है कि क्वारनटीन में नेटफ्लिक्स देख कर वह अपना वक्त गुजारती थीं. उन्होंने कहा कि डॉक्टर उनसे मिलने आते थे और उनका हौसला बढ़ाते थे. लोगों के लिए मोनामी का संदेश है, " दहशत में आने की कोई जरूरत नहीं है, स्वस्थ रहिए, अच्छा खाइए और घर पर रहिए."

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खिड़कियों से बात करते थे डॉक्टर-अनिता

45 साल की अनिता विनोद 10 दिन के नेपाल दौरे के बाद 8 मार्च को पटना लौटी थीं. 16 मार्च को उनके अंदर कोरोना के लक्षण दिखने लगे. इसके बाद उन्हें पटना एम्स में भर्ती कराया गया. उन्हें 11 दिन आइसोलेशन वार्ड में गुजारने पड़े.

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उन दिनों को याद करते हुए अनिता कहती हैं, "डॉक्टर मुझसे खिड़कियों के जरिए बात करते थे, हालांकि वो ठीक ही कर रहे थे, लेकिन मुझे खराब लगता था, दोस्तों और परिवार से मिल रही मदद से मुझे ऊर्जा मिलती थी, मैं अपनी स्टोरी इसलिए बता रही हूं ताकि लोगों को इससे उम्मीद मिले, क्योंकि इस समय दुनिया भर से खतरनाक आंकड़े आ रहे हैं, आप पैनिक मत करिए, कोरोना का इलाज हो सकता है, मैंने इसे कर दिखाया है."

क्वारनटीन में मैं एग्जाम की तैयारी कर रही थी-रीता

रीता बचकानीवाला सूरत की रहने वाली हैं. उन्होंने भी कोरोना से जंग जीती है. उन्होंने कहा कि उन्हें सूखी खांसी और बुखार हुआ, ऐसा लग रहा था कि जैसे सामान्य फ्लू है.

रीता कहती हैं, "मैं डर नहीं रही थी, मेरी परीक्षाएं थीं और मैं इसके लिए तैयारी कर रही थी, मैं खुद को हमेशा पॉजिटिव विचारों से जोड़ती थी." उन्होंने कहा कि अगर आपके अंदर कोरोना के लक्षण दिखें तो डॉक्टर के पास जाइए और लॉकडाउन का पालन करिए.

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कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें

मुझे लगा बॉडी चेंज एडॉप्ट कर रही है-सुमति

गुजरात की सुमति सिंह ने भी कोरोना वायरस को मात दी है. सुमति कहती हैं कि मैं फिनलैंड से लौटी थी, दो दिनों तक दो मेरे अंदर कोई लक्षण नहीं थे. मैंने सोचा कि मेरी बॉडी भारत के मौसम के मुताबिक बदल रही है, आखिरकार मैं अस्पताल गई और अपना इलाज करवाया.

ठान लिया था इसे हराना है- राहुल

पटना के रहने वाले राहुल कुमार स्कॉटलैंड में कम्प्यूटर साइंस में मास्टर्स कर रहे थे, कोरोना संक्रमण देखते हुए वे भारत लौटे. एयरपोर्ट में तो उनके अंदर कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखे, इसके बाद वे घर आ गए. इसके बाद राहुल ने खुद कोरोना टेस्ट करवाने की सोची. राहुल की रिपोर्ट जब पॉजिटिव आई तो सबसे पहले उन्होंने अपना हौसला बनाया. राहुल कहते हैं, "मैंने मन बना लिया था कि इससे लड़ना है, मैंने हौसला बनाए रखा, मैंने अपनी इच्छाशक्ति मजबूत रखी और इस बीमारी से जीता."

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