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बढ़िया वाला IPO आपको कभी क्यों नहीं मिलता? जानिए कैसे होता है अलॉटमेंट?

IPO Allotment Process: उदाहरण के लिए अगर M कंपनी का आईपीओ तीन गुना ओवरसब्सक्राइब हो गया. यानी जितने शेयर ऑफर किए गए थे, उसके तिगुने अप्लीकेशन मिल गए. आसान शब्दों में कहें तो एक शेयर के तीन दावेदार हो गए.

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IPO Allotment Process (Photo: File)
IPO Allotment Process (Photo: File)

आज की तारीख में Initial Public Offering (IPO) में पैसे लगाने का क्रेज बढ़ गया है. खासकर रिटेल निवेशकों (Retail Investor) को इसका चस्का लग गया है, जिसका एक बार आईपीओ निकल जाता है, फिर उनकी उम्मीदें और बढ़ जाती हैं. कुछ लोग तो केवल IPO अप्लाई करने के लिए परिवार के कई सदस्यों के नाम से भी डिमैट अकाउंट खुलवा रखे हैं. 

लेकिन जब लगातार कई आईपीओ में अप्लाई करने के बाद शेयर अलॉट नहीं होते हैं, फिर मन में सवाल उठने लगता है कि कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं है. अगर आप भी आईपीओ में अप्लाई करते हैं, तो जानना चाहते होंगे कि किस प्रक्रिया के तहत अलॉटमेंट होता है, ताकि जिसे मिला, उसे किस नियम के तहत मिला. ऐसे लोग भी मिल जाते हैं, जिनकी हमेशा शिकायत होती है कि बढ़िया वाला आईपीओ तो कभी निकलता ही नहीं है.

IPO को लेकर आपकी भी ये शिकायत?
 
कुछ लोगों की ये शिकायत होती है कि उन्हें अभी तक कोई बढ़िया आईपीओ अलॉट नहीं हुए, जबकि उनके दोस्त को पहले दफा में ही अच्छी कमाई वाला आईपीओ में शेयर अलॉट हो गए. वो जानना चाहते हैं कि ऐसा क्या सिस्टम है?

दरअसल, निवेशक आईपीओ अलॉटमेंट (IPO Allotment) के प्रक्रिया को बारीकी से समझना चाहते हैं. क्योंकि अच्छी कंपनी के आईपीओ हमेशा ओवरसब्सक्राइब होता है, यानी आईपीओ में मौजूद शेयर से कई गुने ज्यादा निवेशकों के आवेदन मिल जाते हैं, फिर सबको शेयर अलॉट नहीं हो पाते. 

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सेबी (SEBI) के नियम के मुताबिक एक रिटेल निवेशक (Retail Investor) मैनबोर्ड IPO में अधिकतम 2 लाख रुपये तक की बोली लगा सकता है. हालांकि, इसके लिए न्यूनतम बोली होना जरूरी है. इसका अर्थ है कि अगर किसी आईपीओ में एक लॉट 15 शेयरों की है, तो आपको कम से कम 15 शेयरों के लिए बोली लगानी ही होगी.

अगर IPO में जितने शेयर ऑफर किए जाते हैं, उतने ही आवेदन मिलने पर लगभग सभी निवेशकों को आईपीओ में शेयर अलॉट हो जाते हैं. लेकिन जब आईपीओ ओवरसब्सक्राइब हो जाता है तो फिर अलॉटमेंट थोड़ा जटिल हो जाता है. ऐसी स्थिति में अलॉटमेंट प्रक्रिया के लिए कुछ नियम हैं, जिसे फॉलो किए जाते हैं.

जब कई गुने भर जाते हैं आईपीओ 

आईपीओ ओवरसब्सक्राइब का सीधा मतलब है कि उपलब्ध शेयर्स के मुकाबले आवदेन ज्यादा मिलना. ऐसी स्थिति में जिन रिटेल निवेशकों को शेयर अलॉट किए जाते हैं. उनकी संख्या, अलॉटमेंट के लिए उपलब्ध इक्विटी शेयर्स की संख्या से विभाजित कर निकाली जाती है. यानी निवेशकों को अनुपातिक आधार पर ही शेयरों का आवंटन किया जाता है.

जिन रिटेल निवेशकों को आईपीओ में अलॉटमेंट मिलता है, उसे कम से कम एक लॉट जरूर मिलता है. यानी कम लॉट की बोली लगाना, अधिक सब्सक्रिप्शन की स्थिति में निवेशक के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. यानी आईपीओ अलॉटमेंट होने की उम्मीद कम होती है. इसलिए अच्छी कंपनियों के आईपीओ में अधिक से अधिक लॉट में अप्लाई करने से शेयर अलॉट होने की उम्मीद बढ़ जाती है.

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अलॉटमेंट की ये प्रक्रिया
इसके अलावा शेयर आवंटन के लिए लकी ड्रॉ का इस्तेमाल भी किया जाता है. आज के दौर कई निवेशक अपने परिजनों के नाम से अलग-अलग डिमैट अकाउंट से बोली लगाते हैं, ताकि किसी के नाम से भी निकल जाए. जब आप कई अकाउंट से IPO अप्लाई करते हैं तो फिर शेयर आवंटन की संभवानाएं बढ़ जाती हैं. आवेदन के लिए केवल डिमैट अकाउंट की जरूरत होती है, जो एक बैंक या UPI से कनेक्ट होता है. 

ओवरस्क्रिप्शन की स्थिति में कुछ इस प्रकार से शेयर का अलॉटमेंट होता है. उदाहरण के लिए अगर M कंपनी का आईपीओ तीन गुना ओवरसब्सक्राइब हो गया. यानी जितने शेयर ऑफर किए गए थे, उसके तिगुने अप्लीकेशन मिल गए. आसान शब्दों में कहें तो एक शेयर के तीन दावेदार हो गए. ऐसे मामलों में आईपीओ का आवंटन कम्प्यूटरीकृत ड्रा के माध्यम से किया जाता है.

क्या होता है आईपीओ?
जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर पब्लिक को ऑफर करती है तो उसे आईपीओ कहते हैं. आईपीओ के जरिए कंपनी फंड इकट्ठा करती है और उस फंड को कंपनी की तरक्की में खर्च करती है. बदले में आईपीओ खरीदने वाले लोगों को कंपनी में हिस्सेदारी मिल जाती है. IPO में जो शेयर अलॉट होते हैं, वो आमतौर पर BSE या NSE  जैसे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होते हैं. जहां लोग इन शेयरों की आराम से खरीद बिक्री कर सकते हैं. 

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