भारत के बड़े शहरों में एक नौकरीपेशा कपल के लिए अपना घर खरीदना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है. भले ही दोनों अच्छी कमाई कर रहे हों, फिर भी एक घर खरीदना उनके लिए लगभग नामुमकिन है. वेल्थ एडवाइजरी फर्म के फाउंडर, सिद्धार्थ मुकुंद का मानना है कि इस मुश्किल की वजह आपकी सैलरी नहीं, बल्कि घरों की सप्लाई और उपलब्धता में एक बड़ा अंतर है. उनके मुताबिक, भारत में भले ही लाखों घर खाली पड़े हों, फिर भी किफ़ायती और रहने लायक घरों की भारी कमी है.
मुकुंद का कहना है कि डेवलपर ज़्यादा मुनाफे के लिए लग्जरी घर बना रहे हैं, जबकि असल ज़रूरत मध्यम वर्ग के लिए छोटे और किफ़ायती घरों की है. ज़मीन की राजनीति, काले धन का लेन-देन और सरकारी नियमों की वजह से यह समस्या और भी गंभीर हो गई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मिडिल क्लास का अपने घर का सपना हमेशा अधूरा ही रह जाएगा?
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मुकुंद बताते हैं कि भारत में 1.1 करोड़ से ज़्यादा शहरी घर खाली पड़े हैं, फिर भी 1.9 करोड़ घरों की कमी है. यह कमी ज़्यादातर 'किफ़ायती घरों' के सेगमेंट में है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "समस्या सिर्फ़ उपलब्धता की नहीं है. असली समस्या 'किफ़ायती और रहने लायक घरों' की उपलब्धता की है." उनके मुताबिक, इस समस्या की बड़ी वजह यह है कि डेवलपर ज़्यादातर लग्जरी घर बनाने पर ध्यान देते हैं, क्योंकि इससे उन्हें ज्यादा फ़ायदा मिलता है और निवेशक भी पैसा लगाते हैं, जबकि असल जरूरत उन छोटे और शुरुआती घरों की है, जिन्हें पहली बार घर खरीदने वाले लोग खरीद सकें, उन्होंने लिखा, "यह सिर्फ़ कमी नहीं है, बल्कि घरों के सही वितरण में भी बहुत बड़ी गड़बड़ी है."
मुकुंद कहते हैं- 'इन ढांचागत समस्याओं ने इस दिक्कत को और भी बढ़ा दिया है. जमीन से जुड़ी राजनीति, फ्लोर स्पेस इंडेक्स (FSI) की सीमाएं, निवेशकों की सट्टेबाजी और काले धन का लेन-देन ये सब मिलकर बाजार को बिगाड़ रहे हैं और इन सबके बीच फंसा है मिडिल क्लास.'
देश के बड़े शहरों में प्रॉपर्टी के रेट तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, मुश्किल ये है कि देश में सबसे ज्यादा बिक्री लग्जरी घरों की हो रही है, जिसमें पैसे वाले लोग निवेश कर रहे हैं, लेकिन वहीं जिन लोगों को रहने के लिए एक छोटे घर की जरूरत है वो नहीं मिल पा रहा है.