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मंदी के दौर में प्रॉपर्टी मार्केट, घर खरीदने का सही समय या जोखिम?

डिस्ट्रेस सेल और कम कीमतें आकर्षक दिखती हैं, लेकिन इनके साथ अनिश्चितता, नौकरी की असुरक्षा और वित्तीय दबाव जुड़ा होता है. इसलिए सही निर्णय वही है जिसमें खरीदार अपनी वित्तीय स्थिति, परिवार की जरूरतों और भविष्य की संभावनाओं का संतुलन बनाए.

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मंदी में घर खरीदने के फायदे और नुकसान (Photo-ITG)
मंदी में घर खरीदने के फायदे और नुकसान (Photo-ITG)

पिछले कुछ महीनों में, देश के प्रमुख शहरों जैसे कि दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और हैदराबाद में मकानों की बिक्री में गिरावट देखी गई है. खरीदार इंतजार कर रहे हैं, जबकि बिल्डर बिक्री बढ़ाने के लिए छूट और लुभावने ऑफर दे रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या मंदी का दौर घर ख़रीदने का सही अवसर है या एक जोखिम भरा कदम? 

आर्थिक मंदी का असर हर परिवार की दिनचर्या पर पड़ता है, नौकरी की असुरक्षा, आय में रुकावट और भविष्य की अनिश्चितता, ये कुछ ऐसी स्थितियां हैं जहां लोग बड़े खर्चों से बचने की कोशिश करते हैं, घर खरीदना जीवन का सबसे बड़ा निवेश होता है, इसलिए मंदी के दौर में यह फ़ैसला और भी जटिल हो जाता है.

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रियल एस्टेट डेटा एनालिटिक्स फर्म PropEquity की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (MMR) और पुणे में घरों की बिक्री में तिमाही 2025 में कम से कम 17% की गिरावट आने की उम्मीद है. यह गिरावट पिछले साल की इसी अवधि में बेची गई 59,816 इकाइयों की तुलना में 49,542 इकाइयों तक हो सकती है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

रियल एस्टेट एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा कहते हैं- 'घर लेने का फैसला तभी लें जब नौकरी स्थिर हो, सेविंग्स का अच्छा बैकअप हो और ईएमआई आय का 40% से अधिक न हो. अगर ये शर्तें आप पूरी करते हैं, तो आपके लिए घर खरीदने का सही अवसर है. लेकिन जिन लोगों की आय में अस्थिरता है, उनके लिए घर खरीदने का फैसला आर्थिक संकट ला सकता है.

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रेडी-टू-मूव बनाम निर्माणाधीन फ्लैट

प्रदीप आगे कहते हैं- 'मंदी के दौरान खरीदारों की प्राथमिकता रेडी-टू-मूव फ्लैट्स की ओर बढ़ जाती है, इसका सबसे बड़ा फायदा है कि लोग तुरंत शिफ्ट हो सकते हैं. किराया और ईएमआई दोनों साथ में नहीं देने पड़ते और कानूनी जोखिम कम रहता है. वहीं अंडर कस्ट्रक्शन फ्लैट 10–20% तक सस्ते मिल सकते हैं, लेकिन पजेशनन में देरी, अधूरे प्रोजेक्ट या बिल्डर की वित्तीय कमजोरी जैसी समस्याएं आती हैं, रेरा लागू होने के बाद स्थिति कुछ सुधरी है, लेकिन अभी भी सावधानी बरतना जरूरी है.

डिस्ट्रेस सेल और नीलामी में अवसर

मंदी के वक्त पर अक्सर लोग मजबूरी में अपना घर कम कीमत पर बेचते हैं, इसे ‘डिस्ट्रेस्ड सेल’ कहा जाता है, इसमें खरीदार को 15–30% तक छूट मिल सकती है, इसी तरह, बैंकों या अदालतों द्वारा नीलामी में बेची जाने वाली संपत्तियां भी निवेश का अवसर देती हैं. लेकिन इसमें जोखिम भी अधिक होता है. खरीदार को चाहिए कि रजिस्ट्री और पुराना रिकॉर्ड देखें, सभी बकाया और क्लियरेंस की जांच करें और एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले.

एक्सपर्ट का मानना है कि मंदी के दौर में खरीदार को केवल बाजार की स्थिति देखकर नहीं, बल्कि अपनी वित्तीय क्षमता और जरूरतों के हिसाब से फैसला लेना चाहिए, घर खरीदने का निर्णय केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक और भावनात्मक भी होता है. मंदी में खरीदार अक्सर डर और असमंजस के बीच रहते हैं. यही समय है जब विवेकपूर्ण निर्णय सबसे बड़ा हथियार साबित होता है. आर्थिक मंदी एक ओर खरीदारों के लिए अवसर लाती है, तो दूसरी ओर जोखिम भी बढ़ाती है.

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