
KYV For FASTag Users Explained: जहां "ईज़ ऑफ लिविंग" को नारा बनाकर डिजिटल क्रांति की बात की जाती है, वहीं अब वाहन मालिक खुद को एक नई उलझन में फंसा पा रहे हैं. जिस वक्त वाहन मालिकों को लगा कि अब सभी औपचारिकताओं से राहत मिल गई है... स्मार्ट नंबर प्लेट लगवा ली, ई-रजिस्ट्रेशन करा लिया, फास्टैग का एनुअल पास बनवा लिया, उसी वक्त एक नई मुसीबत सामने आ गई है. अब उन्हें "नो-योर-व्हीकल" यानी KYV (Know Your Vehicle) नाम की नई प्रक्रिया से गुजरना होगा.
अगस्त 2024 से चुपचाप लागू हुई यह प्रक्रिया अब सख़्ती से लागू की जा रही है और खासतौर पर FASTag उपयोगकर्ताओं के लिए यह सिरदर्द बन गई है. अब सरकार ने गाड़ियों के लिए 'KYV' प्रक्रिया को अनिवार्य कर दिया है. तो आइये जानें क्या है ये नो-योर-व्हीकल (KYY) नियम और क्या है इसकी प्रक्रिया.
नेशनल हाईवेज़ अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) की पहल पर शुरू की गई इस प्रक्रिया को नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने लागू किया है. इसके तहत सभी FASTag यूजर्स को अपने वाहन की स्पष्ट तस्वीरें और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) की डिजिटल कॉपी अपलोड करनी होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि FASTag वास्तव में उसी गाड़ी से जुड़ा हुआ है, जिसके नाम पर जारी किया गया है.
सरकार का कहना है कि इसका मकसद फ्रॉड और टैग के दुरुपयोग को रोकना है. कई मामलों में देखा गया है कि लोग एक ही टैग को अलग-अलग वाहनों में इस्तेमाल करते हैं या झूठे विवरणों से FASTag प्राप्त करते हैं. KYV के ज़रिए अब ऐसी गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है.
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. यह एक बार की प्रक्रिया नहीं है. हर तीन साल में वाहन मालिकों को दोबारा KYV करना होगा ताकि NHAI का डेटाबेस हमेशा अपडेट रहे. यानी अब हर तीन साल में एक बार फिर वही फोटो खींचो, अपलोड करो, और मंजूरी का इंतज़ार करो. नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) के अक्टूबर 2024 के सर्कुलर के अनुसार, हर तीन साल में re-KYV यानी पुनः सत्यापन करवाना अनिवार्य होगा.
मजेदार बात यह है कि FASTag जारी करते समय ही गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर, चेसिस नंबर और इंजन नंबर पहले से ही VAHAN डेटाबेस के साथ सत्यापित किया जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सारी जानकारी पहले से प्रमाणित है, तो फिर यह नया KYV नियम किसलिए?
NPCI के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इसका उद्देश्य “वन व्हीकल वन टैग (OVOT)” योजना को मजबूत बनाना और डुप्लीकेट या फर्जी FASTag को खत्म करना है. नियमों का पालन न करने पर FASTag डिएक्टिवेट किया जा सकता है, जिससे टोल भुगतान असंभव हो जाएगा.

FASTag यूजर्स को यहां ध्यान देना जरूर है कि, RC (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) की फ्रंट और बैक की डिजिटल कॉपी, जो केवल DigiLocker या mParivahan ऐप से डाउनलोड की गई हो. ध्यान रखें कोई स्क्रीनशॉट या एडिटेड कॉपी मान्य नहीं होगी.
कागज़ों पर यह पहल सुरक्षा और पारदर्शिता के नाम पर है, लेकिन आम वाहन मालिकों के लिए यह एक और डिजिटल सिरदर्द बन गई है. सोशल मीडिया पर लोग इसे “डिजिटल उत्पीड़न” बता रहे हैं, तो कई कह रहे हैं “यह सुविधा नहीं, सज़ा है.” हाल ही में सोशल मीडिया पर लोगों ने इस प्रक्रिया को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं दी है.
सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने अपनी झुंझलाहट जाहिर की है. एक कार मालिक ने लिखा कि, “अब तो मेरी कार की फोटो दर्जनों बार रिजेक्ट होगी. कभी एंगल गलत, कभी शैडो, कभी क्लैरिटी कम. आखिर ये सब बार-बार क्यों करना पड़ रहा है?” लोगों की शिकायत यह नहीं है कि सत्यापन क्यों हो, बल्कि यह है कि प्रक्रिया बेहद जटिल, बार-बार दोहराई जाने वाली और तकनीकी तौर पर भ्रमित करने वाली है. कुछ यूजर्स ने व्यंग्य करते हुए कहा कि “अब फोटो में एक पत्ता भी दिख जाए तो शायद FASTag कैंसल कर दिया जाएगा.”

समस्या यह है कि ये सब नियम बिना किसी ग्रेस पीरियड या जागरूकता अभियान के लागू कर दिए गए. लाखों वाहन मालिकों को यह पता तक नहीं चला कि उनका FASTag कब और क्यों बंद हो गया. और वे टोल प्लाज़ा पर जाकर फाइन भरने पर मजबूर हो गए. कुछ यूजर्स ने सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर भी सवाल उठाए हैं.
'X' (पूर्व में ट्विटर) पर @swarad07 नाम के हैंडज यूजर ने लिखा कि, कोल्हापुर से पनवेल जाते हुए टोल के पास फंसे कम से कम 15 लोगों से मिला, जिनके फास्टैग मेरी तरह बिना किसी सूचना के हॉटलिस्ट हो गए थे. कई लोगों ने KYV दस्तावेज़ अपलोड किए थे, लेकिन बैंक उन्हें बार-बार तुच्छ कारणों से रिजेक्ट कर रहे थे, इसमें नागरिकों की क्या गलती है?
FASTag सिस्टम का वादा था कि टोल भुगतान आसान और बिना रुकावट होगा. लेकिन अब बार-बार नए नियम, रिवेरिफिकेशन और उलझे हुए ऐप इंटरफेस ने इस वादे की साख कम कर दी है. यह प्रक्रिया खासकर वरिष्ठ नागरिकों या तकनीकी जानकारी न रखने वाले लोगों के लिए मुश्किल बन गई है. हाई-क्वॉलिटी वाली फोटो लेना, उन्हें अपलोड करना, सही फॉर्मेट में डिजिटल RC देना यह सब उतना आसान नहीं है, जितना कि समझा जा रहा है. और अगर वाहन का नंबर प्लेट बदल गया हो, या FASTag स्टिकर डैमेज हो गया हो, तो प्रक्रिया में कोई स्पष्ट डायरेक्शन नहीं दी गई है.
सेफ्टी और पारदर्शिता जरूरी हैं, इसमें दो राय नहीं. लेकिन जब नियम बिना संवेदना के लागू किए जाते हैं, तो वे जनता के लिए सिरदर्द बन जाते हैं. KYV को देखकर भी अब वैसा ही लग रहा है जैसा बैंकिंग क्षेत्र में KYC को लेकर समझा जाता है. जहां हर कुछ साल में वही दस्तावेज़ फिर से जमा करने पड़ते हैं.
भारत पहले ही ‘डिजिटल कंप्लायंस’ की थकान झेल रहा है. हर छोटी प्रक्रिया के लिए दस्तावेज़ अपलोड, वेरिफिकेशन और दोबारा सबमिशन का सिलसिला अब नागरिकों को बोझिल लगने लगा है. KYV की यह अनिवार्यता शायद एक और उदाहरण है कि कैसे अच्छे इरादे, जब जमीनी हकीकत को जांचे बिना लागू होते हैं, तो आम नागरिकों के लिए परेशानी बन जाते हैं.