दिल्ली की हवा हमेशा जहरीली रहती है, खासकर सर्दियों में. स्मॉग (धुंध और धुआं का मिश्रण) से लोग बीमार पड़ जाते हैं. इसे साफ करने के लिए वैज्ञानिक कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) की कोशिश कर रहे हैं. आईआईटी कानपुर के डायरेक्टर प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल ने हाल ही में बताया कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग हुआ. लेकिन बारिश नहीं हुई. क्यों? क्योंकि बादलों में नमी बहुत कम थी – सिर्फ 15%.
फिर भी, यह प्रयोग सफल रहा, क्योंकि इससे प्रदूषण 6-10% कम हो गया. आइए, इस पूरी कहानी को हम वैज्ञानिक तथ्यों से समझते हैं कि कृत्रिम बारिश के लिए बादलों में नमी कैसे काम करती है. फिलहाल आईआईटी कानपुर की टीम ने अस्थाई तौर पर आज होने वाला अगला ट्रायल टाल दिया है. जब बादलों में नमी महसूस होगी तब फिर से क्लाउड सीडिंग का प्रोसेस कराया जाएगा.
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क्लाउड सीडिंग में गीले बादल क्यों जरूरी हैं?
मान लीजिए, आकाश में बादल तैर रहे हैं. ये बादल पानी की बूंदों से बने होते हैं. लेकिन कभी-कभी ये बूंदें इतनी छोटी होती हैं कि वे नीचे नहीं गिर पातीं. बारिश नहीं होती. क्लाउड सीडिंग इसी समस्या को हल करती है. यह एक वैज्ञानिक तरीका है जिसमें हवाई जहाज या जमीन से बादलों में छोटे-छोटे कण डाले जाते हैं. ये कण बीज (सीड) की तरह काम करते हैं.
कैसे काम करता है?
मुख्य कण चांदी आयोडाइड (सिल्वर आयोडाइड) होता है. यह बर्फ के क्रिस्टल बनाता है. ठंडे बादलों में पानी की बूंदें सुपरकूल्ड होती हैं. ये क्रिस्टल उन बूंदों को जोड़ लेते हैं. क्रिस्टल बड़े हो जाते हैं और भारी होकर बारिश या बर्फ के रूप में गिर पड़ते हैं.
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उपयोग: अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश सूखे को रोकने या बाढ़ नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करते हैं. भारत में दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण साफ करने के लिए.
यह तरीका 1940 के दशक से चल रहा है. लेकिन सफलता बादलों पर निर्भर करती है. सबसे जरूरी है – नमी.
बादलों में नमी क्यों जरूरी है?
बादल पानी की भाप से बनते हैं. नमी का मतलब है बादल में कितना पानी मौजूद है. वैज्ञानिक इसे लिक्विड वॉटर कंटेंट (LWC) कहते हैं. कृत्रिम बारिश के लिए बादल सही होने चाहिए. अगर नमी कम हो, तो बीज डालने से भी ज्यादा बारिश नहीं होगी. आइए, स्टेप बाय स्टेप समझें...
बादल का प्रकार
अमेरिका के डेजर्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक क्लाउड सीडिंग ठंडे बादलों (स्ट्रेटिफॉर्म या कन्वेक्टिव) पर सबसे अच्छा काम करती है. तापमान -5°C से -20°C तक होना चाहिए. गर्म बादलों के लिए नमक जैसे हाइग्रोस्कोपिक कण इस्तेमाल होते हैं, जो नमी को आकर्षित करते हैं.
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नमी की न्यूनतम मात्रा
नमी कम होने पर क्या होता है?
कम नमी (जैसे दिल्ली में 15%) में बीज डालने से थोड़े क्रिस्टल बनते हैं. ये प्रदूषण के कणों (PM2.5, PM10) को चिपका लेते हैं. लेकिन बूंदें इतनी बड़ी नहीं बन पातीं कि बारिश हो. नतीजा: हल्की धुंध साफ होती है, लेकिन भारी बारिश नहीं.
दिल्ली का प्रयोग: सफलता और सीख
दिल्ली में स्मॉग से AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 400 से ऊपर चला गया था. सरकार ने आईआईटी कानपुर को क्लाउड सीडिंग सौंपी. प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा...
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हमें बादलों में ज्यादा नमी नहीं मिली. सिर्फ 15% के आसपास. कम नमी की वजह से बारिश की संभावना बहुत कम थी. इस नजरिए से हम सफल नहीं हुए. लेकिन हमें बहुत उपयोगी जानकारी मिली. हमने दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में 15 स्टेशन लगाए थे. इनसे हवा का प्रदूषण, नमी आदि मापा.
डेटा दिखाता है कि PM2.5 और PM10 में 6 से 10% की कमी आई. इससे पता चलता है कि कम नमी वाले बादलों में भी सीडिंग से कुछ असर होता है. आदर्श असर नहीं, लेकिन कुछ तो असर हुआ है. भविष्य के प्रयोगों के लिए उपयोगी डेटा है. दो और उड़ानें करेंगे. उम्मीद है, नमी थोड़ी बेहतर मिलेगी. शायद परिणाम अच्छे हों.
हवाई जहाज ने सिल्वर आयोडाइड डाला. बारिश कम हुई, लेकिन प्रदूषण घटा. वैज्ञानिक कहते हैं, कम नमी में भी यह सफाई का अच्छा तरीका है.
आजतक साइंस डेस्क / सिमर चावला