किलाउआ ज्वालामुखी फटा... शैतान की सींग की तरह निकली 1500 फीट ऊंची लावे की दो धार

हवाई के किलाउआ ज्वालामुखी ने दिसंबर से अब तक 34 बार फट चुका है. इसबार वो शैतान के दो सींग की तरह फट रहा है. 1300-1500 फीट ऊंचे लावा का फव्वारा उगला रहा है. लावा ज्वालामुखी के नीचे मौजूद मैग्मा कक्षों से निकल रहा है. 200 साल में चौथी बार ऐसा पैटर्न देखने को मिला है.

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हवाई में किलाउआ ज्वालामुखी से निकलती लावे की दो धार. (Photo: Getty) हवाई में किलाउआ ज्वालामुखी से निकलती लावे की दो धार. (Photo: Getty)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

हवाई द्वीप पर स्थित किलाउआ ज्वालामुखी दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है. पिछले साल के अंत से यह लगातार लावा उगल रहा है. हर कुछ दिनों में यह लाल-चमकदार गर्म पत्थरों की तरह फव्वारे छोड़ता है, जो स्थानीय लोगों, पर्यटकों और ऑनलाइन दर्शकों को खुश कर देते हैं. यह लावा एक आग की नली की तरह निकलता है. इस बार तो इसने हद ही कर दी. लावे की दो धार ऐसी निकली जैसे किसी शैतान के सिर दो सींग. 

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34वीं बार लावा का नया शो

बुधवार को किलाउआ ने दिसंबर से अब तक अपना 34वां विस्फोट किया. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सभी विस्फोट एक ही बड़े विस्फोट का हिस्सा हैं. मैग्मा (ज्वालामुखी के अंदर का गर्म पिघला पत्थर) एक ही रास्ते से सतह पर आ रहा है. इस बार दक्षिणी छेद से लावा के फव्वारे 1,300 फीट (लगभग 400 मीटर) ऊंचे उछले.

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यह न्यूयॉर्क के एम्पायर स्टेट बिल्डिंग से भी ऊंचा है, जो 100 मंजिला इमारत है. विस्फोट करीब 6 घंटे चला और फिर शांत हो गया. अच्छी बात यह है कि सारा लावा हवाई वोल्केनो नेशनल पार्क के अंदर क्रेटर (गड्ढा) में ही रह गया. इससे किसी इमारत या रिहायशी इलाके को खतरा नहीं है. 

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पार्क में घूमने वाले लोग इसे सीधे देख सकते हैं. जो नहीं जा पाते, वे अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (USGS) के लाइव स्ट्रीम देख सकते हैं. इसमें तीन अलग-अलग कैमरों से नजारे मिलते हैं. किलाउआ हवाई द्वीप पर है, जो हवाई द्वीपसमूह का सबसे बड़ा द्वीप है. यह राज्य के सबसे बड़े शहर होनोलूलू से करीब 320 किलोमीटर दक्षिण में है.

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लावा फव्वारे कैसे बनते हैं? 

किलाउआ का यह नजारा किसी जादू जैसा लगता है, लेकिन इसके पीछे विज्ञान है. हलेमाऊमाऊ क्रेटर के नीचे एक मैग्मा कक्ष है. यह पृथ्वी के अंदर से हर सेकंड 5 क्यूबिक यार्ड (3.8 क्यूबिक मीटर) मैग्मा ले रहा है. यह कक्ष बैलून की तरह फूल जाता है. ऊपरी कक्ष में मैग्मा को धकेल देता है. फिर यह दरारों से सतह पर आता है.

दिसंबर से कई विस्फोटों में लावा हवा में ऊंचा उछला है. कभी-कभी यह 1,000 फीट (300 मीटर) ऊंचे टावर बनाता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मैग्मा में गैसें भरी होती हैं. जब यह संकरे, पाइप जैसे छेदों से ऊपर आता है, तो गैसें फट जाती हैं. ऊपर भारी मैग्मा पुराने विस्फोट का होता है, जिसमें गैस निकल चुकी होती. नया मैग्मा जमा होकर इसे धकेल देता है - जैसे शैंपेन की बोतल को हिलाकर ढक्कन खोल दें.

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हवाई वोल्केनो ऑब्जर्वेटरी के वैज्ञानिक-इन-चार्ज केन हॉन कहते हैं कि हम चींटियों की तरह हैं जो हाथी पर चढ़कर उसके काम करने का राज समझने की कोशिश कर रही हैं. वैज्ञानिक सेंसरों से मैग्मा के फूलने-सिकुड़ने से दिनों पहले अनुमान लगा लेते हैं कि कब लावा निकलेगा. कभी फव्वारे छोटे होते हैं, क्योंकि छेद चौड़ा हो जाता है और दबाव कम हो जाता है.

200 साल में चौथा ऐसा पैटर्न

पिछले 200 सालों में किलाउआ ने ऐसा लावा फव्वारों का सिलसिला चौथी बार दिखाया है. पहले 1959 और 1969 में हुआ. तीसरी बार 1983 में शुरू हुआ, जिसमें 44 एपिसोड थे. वे तीन साल चले, लेकिन दूर इलाके में थे, इसलिए कम लोग देख पाए. 1983 का विस्फोट 35 साल चला और 2018 में खत्म हुआ.
 
अब वैज्ञानिक नहीं जानते कि यह विस्फोट कब बदलेगा. शायद मैग्मा का दबाव बढ़कर नीचे नया छेद खोले और लावा लगातार बहने लगे, जैसे 1983 में हुआ. या ऊपर ही रुक जाए अगर मैग्मा कम हो जाए. हवाई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टीव लुंडब्लाड कहते हैं कि वेंट चौड़ा होने से फव्वारे छोटे हो जाते हैं.

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