रूस भारत को दे सकता है RD-191M सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन, बढ़ जाएगी इसरो की ताकत

रूस ने इसरो को RD-191M सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन की 100% तकनीक दे सकता है. LVM3 रॉकेट में इस्तेमाल होने से GTO पेलोड 4.2 टन से बढ़कर 6.5-7 टन हो जाएगा. भारत में ही बनेगा यह इंजन. गगनयान व भारी उपग्रह मिशनों को बड़ा बढ़ावा मिलेगा.

Advertisement
ये है इसरो का LVM3 रॉकेट जिसमें लगाया जाएगा रूस का सेमी-क्रायोजेनिक इंजन. (File Photo: ISRO) ये है इसरो का LVM3 रॉकेट जिसमें लगाया जाएगा रूस का सेमी-क्रायोजेनिक इंजन. (File Photo: ISRO)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:54 AM IST

भारत और रूस के बीच रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग एक नया मुकाम हासिल करने जा रहा है. रूस भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को अपना सबसे शक्तिशाली सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन RD-191M की 100% तकनीक हस्तांतरण (TOT) करने पर सहमत है. अगर यह समझौता होता है तो यह भारत के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम में बहुत बड़ा कदम होगा.

RD-191M इंजन क्या है?

RD-191M रूस का एक बहुत ही उन्नत सेमी-क्रायोजेनिक इंजन है. यह इंजन तरल ऑक्सीजन और केरोसिन (RP-1) ईंधन का इस्तेमाल करता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बहुत ज्यादा थ्रस्ट (जोर) पैदा करता है – एक इंजन करीब 192 टन का जोर दे सकता है. अभी रूस अपने अंगारा रॉकेट में इसी परिवार के इंजन का इस्तेमाल करता है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: मौत के बाद शरीर कर दे मरने से इनकार तो... जानें क्या होती है 'थर्ड स्टेट'

इस फोटो बाएं सबसे पहला ही RD-191M ही सेमी-क्रायोजेनिक इंजन है. (Photo: X/TheLegateIN)

इसरो को क्या फायदा होगा?

इसरो इस नई तकनीक का इस्तेमाल अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट GSLV Mk3 (जिसे अब LVM3 कहा जाता है) में करेगा. अभी LVM3 में ऊपरी स्टेज में क्रायोजेनिक इंजन (CE-20) लगा होता है. अगर निचले स्टेज में RD-191M जैसे शक्तिशाली सेमी-क्रायोजेनिक इंजन लगा दिए जाएं तो रॉकेट की ताकत बहुत बढ़ जाएगी. इसरो को अपने भारी सैटेलाइट दूसरे देशों से लॉन्च नहीं करने पड़ेंगे. साथ ही दूसरे की भारी सैटेलाइट इसरो लॉन्च कर पाएगा. इससे देश को आर्थिक फायदा होगा. 

यह भी पढ़ें: रूस की यारी से भारी होगी ब्रह्मोस की रेंज, नए वर्जन पर बनेगी बात

Advertisement
  • वर्तमान में... LVM3 का GTO (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) पेलोड: लगभग 4.2 टन.
  • RD-191M इंजन लगने के बाद... GTO पेलोड बढ़कर 6.5 से 7 टन तक हो जाएगा.

यानी एक बार में ढाई से तीन टन ज्यादा वजन अंतरिक्ष में ले जाया जा सकेगा. इससे भारी संचार उपग्रह, चंद्रयान और मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन (गगनयान) को आसानी से लॉन्च किया जा सकेगा.

भारत में कहां बनेगा यह इंजन?

रिपोर्ट के अनुसार यह इंजन भारत में ही बनाया जाएगा. इसके लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और इसरो मिलकर नई फैक्ट्री लगाएंगे. पूरी तकनीक भारत आएगी इसलिए आने वाले समय में भारत खुद ये इंजन बनाकर दूसरे देशों को भी बेच सकेगा.

यह समझौता कब तक पूरा होगा?

अभी दोनों देशों के बीच अंतिम बातचीत चल रही है. उम्मीद है कि साल 2026-27 तक तकनीक हस्तांतरण शुरू हो जाएगा. 2030 तक भारत का अपना सेमी-क्रायोजेनिक इंजन पूरी तरह तैयार हो जाएगा.

मेक इन इंडिया सपना साकार होगा

यह तकनीक हासिल करने से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिनके पास सेमी-क्रायोजेनिक इंजन बनाने की क्षमता है. अभी तक सिर्फ रूस, अमेरिका और चीन के पास ही यह तकनीक है. इसरो के वैज्ञानिक बहुत खुश हैं. उनका कहना है कि RD-191M मिलने से भारत का भविष्य का हेवी लिफ्ट रॉकेट और मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement