मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम, चेन्नई... हर साल की बारिश से कितना नुकसान? जानें- क्या हैं भविष्य के संकट

मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम और चेन्नई जैसे शहर हर साल मॉनसून की मार झेलते हैं. जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को और गंभीर कर दिया है. पुरानी ड्रेनेज प्रणालियां, अनियोजित शहरीकरण और प्राकृतिक जल निकायों का नुकसान बाढ़ को और खतरनाक बनाते हैं. भारत को ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से सीख लेकर बाढ़ प्रबंधन को मजबूत करना होगा, ताकि इन शहरों को बारिश के कहर से बचाया जा सके.

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मुंबई में बीएमसी कर्मचारी बारिश के दौरान सड़क पर गाड़ियों को दिशा दिखाते हुए. (File Photo: PTI) मुंबई में बीएमसी कर्मचारी बारिश के दौरान सड़क पर गाड़ियों को दिशा दिखाते हुए. (File Photo: PTI)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:33 PM IST

भारत के बड़े शहर जैसे मुंबई, दिल्ली, गुरुग्राम और चेन्नई हर साल मानसून के दौरान भारी बारिश और बाढ़ की चपेट में आते हैं. सड़कों पर पानी भरना, ट्रैफिक जाम, घरों और दुकानों में नुकसान और जनजीवन का ठप होना आम बात हो गई है. जलवायु परिवर्तन ने बारिश के पैटर्न को और अनिश्चित कर दिया है, जिससे ये समस्याएं और गंभीर हो रही हैं.

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मुंबई: बाढ़ का बार-बार खतरा

भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई हर मॉनसून में भारी बारिश से प्रभावित होती है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, मुंबई में औसतन 2,213-2,502 मिमी सालाना बारिश होती है, जिसमें जुलाई और अगस्त में सबसे ज्यादा बारिश (919.9 मिमी और 768.5 मिमी) होती है. 26 जुलाई 2005 को मुंबई में 24 घंटे में 944 मिमी बारिश दर्ज की गई, जिससे शहर ठप हो गया, कई लोगों की जान गई और संपत्ति को भारी नुकसान हुआ.

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2025 में भी मुंबई में भारी बारिश ने कई इलाकों में जलभराव और ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा की. पुरानी ड्रेनेज प्रणाली, जो ब्रिटिश काल में 25 मिमी प्रति घंटा बारिश के लिए बनाई गई थी, अब 50 मिमी प्रति घंटा से अधिक बारिश को संभाल नहीं पाती. इसके अलावा, अनियोजित शहरीकरण और तटीय क्षेत्रों में प्राकृतिक जल निकासी की कमी ने समस्या को बढ़ा दिया.

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दिल्ली: यमुना का कहर

दिल्ली में मॉनसून के दौरान यमुना नदी का उफान बड़े पैमाने पर बाढ़ का कारण बनता है. 2023 में यमुना का जलस्तर बढ़ने से बड़े पैमाने पर लोगों को निकाला गया और सार्वजनिक ढांचे को नुकसान हुआ. दिल्ली में औसतन 747 मिमी सालाना बारिश होती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) ने बारिश को और अनियोजित कर दिया. 2025 में जुलाई में भारी बारिश ने दिल्ली-NCR में सड़कों को तालाब बना दिया. कई उड़ानें प्रभावित हुईं.

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दिल्ली की ड्रेनेज प्रणाली भी पुरानी है. अनियोजित निर्माण ने प्राकृतिक जल निकासी को बाधित किया. नजफगढ़ ड्रेन जैसे जल निकाय अक्सर कचरे से भरे रहते हैं, जिससे जलभराव की समस्या और बढ़ती है.

गुरुग्राम: जलभराव और ट्रैफिक जाम

हरियाणा का आर्थिक केंद्र गुरुग्राम हर मानसून में जलभराव से जूझता है. 2025 में जुलाई और अगस्त में भारी बारिश ने सोहना रोड, हीरो होंडा चौक और दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे पर भारी जलभराव और ट्रैफिक जाम पैदा किया. निवासियों ने सोशल मीडिया पर शिकायत की कि पानी घरों में घुस रहा है. ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह विफल हो गया.

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गुरुग्राम म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने जवाब में कहा कि टीमें काम कर रही हैं, लेकिन भारी बारिश के कारण ड्रेनेज सिस्टम अपनी पूरी क्षमता पर काम कर रहा था. गुरुग्राम की तेजी से बढ़ती इमारतें और कंक्रीट सतहों ने प्राकृतिक जल निकासी को नष्ट कर दिया है, जिससे बारिश का पानी सड़कों पर जमा हो जाता है.

चेन्नई: सर्दियों की बारिश का प्रकोप

चेन्नई में मॉनसून जून-सितंबर के बजाय अक्टूबर-दिसंबर में (उत्तर-पूर्वी मानसून) ज्यादा प्रभावी होता है. औसतन 1,276 मिमी बारिश होती है, लेकिन हाल के वर्षों में यह और तीव्र हो गई है. 2023 में साइक्लोन माइचौंग ने चेन्नई में भारी तबाही मचाई, जिसमें 3,000 किमी का स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज सिस्टम अधूरा और खराब रखरखाव के कारण नाकाम रहा. अनियोजित शहरीकरण ने प्राकृतिक जल निकायों और आर्द्रभूमियों को नष्ट कर दिया, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ गया.

नुकसान का आंकलन

  • आर्थिक नुकसान: हर साल बाढ़ से इन शहरों में अरबों रुपये का नुकसान होता है. मुंबई में 2005 की बाढ़ से 14,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. चेन्नई में 2015 की बाढ़ से 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. दिल्ली और गुरुग्राम में सड़कों, वाहनों और संपत्ति को होने वाला नुकसान भी हर साल करोड़ों में है.
  • मानवीय नुकसान: 2023 में भारत में मॉनसून से संबंधित आपदाओं से 1,400 से अधिक मौतें हुईं. बाढ़ और भूस्खलन से घर, आजीविका और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान होता है.
  • बुनियादी ढांचे पर असर: सड़कें, रेलवे और हवाई अड्डे अक्सर ठप हो जाते हैं. स्कूल, दफ्तर और अस्पताल बंद हो जाते हैं, जिससे जनजीवन प्रभावित होता है.
  • कृषि और आजीविका: बाढ़ से फसलें नष्ट होती हैं. छोटे व्यवसाय, जैसे स्ट्रीट वेंडर भारी नुकसान झेलते हैं.

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जलवायु परिवर्तन और भविष्य के संकट

जलवायु परिवर्तन ने बारिश के पैटर्न को बदल दिया है. भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के शोध के अनुसार, हाल के दशकों में अत्यधिक बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं. मुंबई में 1994 के बाद से भारी बारिश (>120 मिमी/दिन) और अत्यधिक भारी बारिश (>250 मिमी/दिन) की आवृत्ति बढ़ी है. सालाना बारिश की तीव्रता 22 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है.

भविष्य के जोखिम

  • अनियमित बारिश: जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का समय और मात्रा अनिश्चित हो रही है. गुजरात और राजस्थान जैसे शुष्क राज्यों में बारिश 20-50% बढ़ सकती है, जबकि सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में 15% तक कमी हो सकती है.
  • अधिक तीव्र बाढ़: शहरी बाढ़ की चोटी सामान्य से 1.8 से 8 गुना तेजी से बढ़ती है. पानी की मात्रा 6 गुना अधिक हो सकती है.
  • प्राकृतिक जल निकायों का नुकसान: अनियोजित शहरीकरण ने आर्द्रभूमियों और झीलों को नष्ट कर दिया, जो प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक हैं. मुंबई में मिठी नदी और चेन्नई में कोसस्थलाई नदी कचरे और अतिक्रमण से प्रभावित हैं.
  • आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: बढ़ती बाढ़ से शहरों की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या पर दबाव बढ़ेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि बिना अनुकूलन के नुकसान और बढ़ेगा.

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समाधान और भविष्य की रणनीति

  • आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम: शहरों को आधुनिक सस्टेनेबल अर्बन ड्रेनेज सिस्टम (SUDS) अपनाने चाहिए, जो प्राकृतिक जल प्रबंधन की नकल करते हैं. मुंबई और चेन्नई में ड्रेनेज को 50 मिमी/घंटा से अधिक बारिश के लिए अपग्रेड करना होगा.
  • प्राकृतिक जल निकायों की बहाली: आर्द्रभूमियों, झीलों और नदियों को पुनर्जनन करना जरूरी है. ये प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक के रूप में काम करते हैं.
  • बाढ़ मानचित्रण: ऑस्ट्रेलिया की तरह, भारत को 1-इन-10 और 1-इन-100 साल की बाढ़ मानचित्र तैयार करने चाहिए, जो जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करें.
  • जलवायु अनुकूलन: शहरों को जलवायु परिवर्तन के लिए तैयार होना होगा. मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान जैसे कदम इस दिशा में शुरू हो चुके हैं.
  • बेहतर शहरी नियोजन: अनियोजित निर्माण को रोकना और कंक्रीट सतहों को कम करना जरूरी है. हरित क्षेत्रों और पार्कों को बढ़ावा देना होगा.
  • प्रारंभिक चेतावनी सिस्टम: IMD को और सटीक और समय पर चेतावनी सिस्टम विकसित करने चाहिए, जैसा कि 2025 में मुंबई और गुरुग्राम के लिए किया गया.
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