अगस्त 2025 में भारत के उत्तरी हिस्से में भारी बारिश ने कहर बरपा दिया है. राजस्थान, पंजाब और जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक 'हिमालयन सुनामी' जैसी स्थिति पैदा हो गई है. यह शब्द हिमालयी क्षेत्रों में भारी वर्षा से उत्पन्न होने वाली तेज बाढ़ और भूस्खलन को दर्शाता है, जो मैदानी इलाकों तक पहुंचकर तबाही मचाती है.
26-27 अगस्त को जम्मू में 296 मिमी बारिश हुई, जो 115 साल का रिकॉर्ड तोड़ने वाली है. वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन से 35 मौतें हुईं, जबकि पंजाब में सतलुज, ब्यास और रावी नदियां उफान पर हैं. राजस्थान में अजमेर और जोधपुर जैसे इलाकों में बाढ़-जैसे हालात हैं.
यह भी पढ़ें: गंगा के भविष्य पर खतरा... गंगोत्री ग्लेशियर 40 साल में 10% पिघला, घट रहा बर्फ से मिलने वाला पानी
कुल मिलाकर, 10 से ज्यादा राज्यों में 100 से अधिक मौतें हो चुकी हैं. हजारों लोग बेघर हुए हैं. सड़कें-पुल बह गए हैं. आइए समझते हैं कि बारिश से इतनी तबाही क्यों हो रही है. इसके कारण क्या हैं. आंकड़े क्या कहते हैं.
2025 के मानसून में उत्तरी भारत में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार...
जम्मू-कश्मीर: 26 अगस्त को जम्मू में 296 मिमी, भद्रवाह में 100 मिमी और कठुआ में 155 मिमी बारिश. 24 घंटे में 368 मिमी बारिश से क्लाउडबर्स्ट हुए, जिससे तवी, चेनाब और बसंतर नदियां खतरे के स्तर से ऊपर चली गईं. वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन से 34 मौतें, 23 घायल. कुल 41 मौतें, 6000 से अधिक लोग विस्थापित. 690 सड़कें बंद, 956 ट्रांसफॉर्मर खराब और 517 जल आपूर्ति योजनाएं प्रभावित.
पंजाब: सतलुज, ब्यास और रावी नदियां उफान पर. पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, लुधियाना, कपूरथला, फिरोजपुर, जालंधर, रूपनगर, संगरूर, मंसा और बठिंडा जिले बाढ़ग्रस्त. 7 जिले पूरी तरह डूबे, हजारों किसानों की फसलें नष्ट. 22 CRPF जवान और 3 नागरिकों को हेलीकॉप्टर से बचाया गया. स्कूल 27 से 30 अगस्त तक बंद.
यह भी पढ़ें: पश्चिम की ओर खिसक गया मॉनसून... क्लाइमेट थिंक टैंक ने बताया कैसे 40 सालों में बदल गया देश का मौसम
राजस्थान: अजमेर में 190 मिमी, नागौर में 230 मिमी, बूंदी में 234 मिमी बारिश. अजमेर-पुष्कर, बूंदी, सवाई माधोपुर और पाली में बाढ़. अना सागर झील ओवरफ्लो हो गई, कई गांव कट गए. 126% अधिक मॉनसून वर्षा. जोधपुर डिवीजन में भारी बारिश की चेतावनी.
अन्य प्रभावित क्षेत्र: हिमाचल में 320 सड़कें बंद, मनाली-लेह हाईवे बह गया. उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा उफान पर. कुल 10 राज्यों में 100+ मौतें. 70000 पर्यटक फंसे. 1000 करोड़ से अधिक का नुकसान. NDRF, SDRF और सेना ने 5000 से अधिक लोगों को बचाया.
IMD ने जम्मू, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के लिए रेड अलर्ट जारी किया है. 29 अगस्त से 1 सितंबर तक पूर्वी राजस्थान और हिमाचल में भारी बारिश की संभावना.
बारिश का मौसम भारत में सामान्य है, लेकिन इस बार की तीव्रता असामान्य है. विशेषज्ञों के अनुसार, 'हिमालयन सुनामी' का मतलब हिमालय से आने वाली तेज बाढ़ है, जो मैदानों तक पहुंचकर विनाश फैलाती है. इसके कारण दो प्रकार के हैं...
1. प्राकृतिक कारण: जलवायु परिवर्तन और मौसम की अनियमितता
भारी वर्षा और क्लाउडबर्स्ट: हिमालयी क्षेत्रों में क्लाउडबर्स्ट (एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश) आम हो गए हैं. IMD के अनुसार, बंगाल की खाड़ी से लो-प्रेशर सिस्टम और पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) का टकराव हुआ है, जिससे मानसून ट्रफ सक्रिय हो गई. राजस्थान के ऊपर चक्रवाती हवाओं ने नमी बढ़ाई. गर्म समुद्री सतह (अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में) ने लो-प्रेशर को मजबूत किया.
यह भी पढ़ें: गर्मी में गंगा ग्लेशियर से नहीं बल्कि भूजल से बहती है... IIT की स्टडी
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैश्विक तापमान बढ़ने से वातावरण में नमी 7% अधिक हो जाती है, जिससे बारिश तीव्र हो जाती है. IPCC रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़ की तीव्रता 60 वर्षों में बढ़ी है. 2023 की तरह, 2025 में भी अल नीनो और इंडियन ओशन डायपोल (IOD) ने मॉनसून को अनियमित बनाया. जेट स्ट्रीम का दक्षिण की ओर खिसकना और एटमॉस्फेरिक रिवर्स (नमी की संकरी धाराएं) ने राजस्थान-पंजाब जैसे शुष्क क्षेत्रों में भी भारी बारिश कराई.
ग्लेशियर पिघलना और GLOF: गंगोत्री जैसे ग्लेशियरों में 10% हिमपिघल प्रवाह कम हुआ है (IIT इंदौर अध्ययन). इससे ग्लेशियर झील आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का खतरा बढ़ा. 2021 उत्तराखंड बाढ़ की तरह, यह मैदानों तक पहुंचता है.
भौगोलिक कारण: हिमालय की ऊंची ढलानें और इंडो-गंगा मैदान की समतल भूमि बाढ़ को तेज करती हैं. नदियों में तलछट जमा होने से क्षमता कम हो जाती है.
2. मानवीय कारण: विकास और लापरवाही
अनियोजित निर्माण और वनों की कटाई: हिमालयी क्षेत्रों में सड़कें, बांध और होटल बनाने से ढलान अस्थिर हो गए. 2013 केदारनाथ आपदा (5000 मौतें) और 2023 हिमाचल बाढ़ (330 मौतें) में इसी का असर दिखा. वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन का कारण नदी किनारों पर निर्माण है.
यह भी पढ़ें: धराली तबाही का रहस्य... क्या गर्म होते हिमालय में बादल फटने के पैटर्न बदल रहे हैं?
नदी तटों पर अतिक्रमण: पंजाब और राजस्थान में नदियों के किनारों पर बस्तियां बनी हैं, जो बाढ़ में बह जाती हैं. बांधों (जैसे भाखड़ा-नंगल और पोंग) से अतिरिक्त पानी छोड़ने से मैदानी इलाके प्रभावित.
ड्रेनेज सिस्टम की कमी: शहरीकरण से जल निकासी खराब हो गई. दिल्ली-यमुना बाढ़ इसका उदाहरण है. Swiss Re रिपोर्ट के अनुसार 2000-2025 में प्राकृतिक आपदाओं से 12.6 लाख करोड़ का नुकसान जिसमें बाढ़ मुख्य है.
अन्य: खनन और कृषि से मिट्टी का कटाव बढ़ा. CEEW अध्ययन के अनुसार 55% तहसीलों में मॉनसून वर्षा 10% बढ़ी, लेकिन वितरण अनियमित है.
प्रभाव: आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय
'हिमालयन सुनामी' प्राकृतिक है, लेकिन मानवीय लापरवाही से घातक बन गई. IMD की चेतावनियों का पालन, वनों का संरक्षण, स्मार्ट सिटी प्लानिंग और जलवायु अनुकूलन जरूरी. NDRF जैसी टीमों ने अच्छा काम किया, लेकिन स्थानीय स्तर पर ड्रेनेज सुधार और निर्माण नियम सख्त करने होंगे.
जलवायु परिवर्तन से बाढ़ बढ़ेंगी, इसलिए 'आत्मनिर्भर भारत' में आपदा प्रबंधन को प्राथमिकता दें. IMD के अनुसार, 29 अगस्त से राहत मिल सकती है, लेकिन सतर्क रहें. यह आपदा हमें सिखाती है कि प्रकृति से खिलवाड़ न करें, वरना तबाही और बढ़ेगी.
ऋचीक मिश्रा