Shani Pradosh Vrat 2021: 18 सितंबर को है शनि प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार 18 सितंबर 2021 को पड़ रही है, ऐसे में यह शनि प्रदोष व्रत है. मान्यता है इस व्रत को करने से भगवान शिव के साथ न्याय के देवता शनिदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.

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 शनि प्रदोष व्रत शनि प्रदोष व्रत

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST
  • भगवान शिव और शनिदेव का करें पूजन
  • व्रत रखने वालों का होती है मोक्ष की प्राप्ति

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat)  हर माह में दो बार शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है. इस समय भाद्रपद माह का शुक्ल पक्ष चल रहा है. शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि शनिवार 18 सितंबर 2021 को पड़ रही है, ऐसे में यह शनि प्रदोष व्रत है. मान्यता है इस व्रत को करने से भगवान शिव के साथ न्याय के देवता शनिदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. 

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शनि प्रदोष व्रत का महत्व
पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से लम्बी आयु का वरदान मिलता है. हालांकि प्रदोष व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष माना जाता है, लेकिन शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान शिव के साथ ही शनि की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसलिए इस दिन भगवान शिव के साथ ही शनिदेव की पूजा अर्चना भी करनी चाहिए. मान्यता है कि ये व्रत रखने वाले जातकों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है. इसका समापन अगले दिन 19 सितंबर को सुबह 05 बजकर 59 मिनट पर होगा. व्रत रखने वाले जातकों को शिव जी और माता पार्वती की पूजा के लिए शाम के समय 02 घंटे 21 मिनट का शुभ समय मिलेगा. इस दिन शाम 06 बजकर 23 मिनट से रात 08 बजकर 44 मिनट तक प्रदोष व्रत की पूजा कर सकते हैं.

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शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करें. शनि प्रदोष के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें. गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें. बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. इसके बाद ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं. शनि की आराधना के लिए सरसों के तेल का दिया पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं. एक दिया शनिदेव के मंदिर में जलाएं. व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करें.

 

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