अखिलेश-प्रियंका के बिना राहुल गांधी अमेठी और रायबरेली में कितना असर छोड़ पाएंगे?

अमेठी या रायबरेली में अखिलेश यादव को भी राहुल गांधी की न्याय यात्रा में साथ होना था. अचानक बीमार पड़ जाने के कारण प्रियंका गांधी भी नहीं पहु्ंच सकीं. मजबूरन राहुल गांधी को अकेले स्मृति ईरानी से जूझना पड़ा है, जिनकी नजर रायबरेली तक बनी हुई है.

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राहुल गांधी अमेठी में अकेले स्मृति ईरानी से जूझ रहे हैं राहुल गांधी अमेठी में अकेले स्मृति ईरानी से जूझ रहे हैं

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 8:13 PM IST

राहुल गांधी ने कार्यक्रम बनाया नहीं कि स्मृति ईरानी अमेठी पहले ही पहुंच जाती हैं. ये सिलसिला 10 साल से चल रहा है. 2014 स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव हार गई थीं, लेकिन कभी राहुल गांधी को अकेले अड्डा जमाने नहीं दिया. और 2019 में चुनाव जीत जाने के बाद भी स्मृति ईरानी के तत्परता में कोई तब्दीली नहीं आई है. 

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भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ राहुल गांधी के अमेठी पहुंचने के पहले से ही स्मृति ईरानी इलाके में दस्तक दे चुकी थीं. राहुल गांधी की न्याय यात्रा अभी अमेठी में दाखिल हो रही थी, और स्मृति ईरानी का जन संवाद कार्यक्रम चल रहा था. अमेठी के लोग अपनी अपनी समस्यायें लेकर पहुंचे थे. टीवी पर वे लोग मीडिया को बता रहे थे कि कोई काम नहीं हो रहा है लेकिन ये पूछे जाने पर कि चुनाव कौन जीतेगा, उनकी जबान पर एक ही नाम था - स्मृति ईरानी.

एक शख्स को जमीन का कब्जा नहीं मिल रहा था. मौके पर ही स्मृति ईरानी ने जम कर हड़काया. लेखपाल को डांटते वक्त भी लग रहा था, जैसे उनके सामने छवि राहुल गांधी की ही हो, आप लेखपाल हैं... अमेठी के मालिक नहीं हैं.

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अव्वल तो प्रियंका गांधी वाड्रा को राहुल गांधी के साथ होना था ताकि वो स्मृति ईरानी को सही जवाब दे सकें, लेकिन वो 16 फरवरी को ही अस्पताल में भर्ती हो गईं जब उनको यूपी में भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होना था. प्रियंका गांधी वाड्रा ने तबीयत खराब होने के जानकारी सोशल साइट एक्स पर दी थी, तब से कोई अपडेट भी नहीं आया है. 

ऊपर से अखिलेश यादव ने भी कदम पीछे खींच लिया है, जब तक सीटों पर बंटवारे का मामला फाइनल नहीं हो जाता, वो न्याय यात्रा में राहुल गांधी का साथ नहीं देने वाले. न्याय यात्रा का न्योता पाने के बाद अखिलेश यादव ने कहा था कि वो रायबरेली या अमेठी में जरूर शामिल होंगे - अभी तो स्थिति यही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव के बगैर राहुल गांधी अकेले जूझ रहे हैं. 

अमेठी की लड़ाई

राहुल गांधी के अमेठी पहुंचने से पहले से ही काफी गहमगहमी देखी गई. एक तरफ कांग्रेस कार्यकर्ता स्वागत की तैयारियों में जुटे थे, तो दूसरी तरफ बीजेपी कार्यकर्ता नारेबाजी में - राहुल गांधी गो बैक. यूपी पुलिस की चुनौती दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को आमने-सामने आने से रोकना हो गई है. 

स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल गांधी के रायबरेली से भी चले जाने के बाद भी बनी रहेंगी. 22 फरवरी को स्मृति ईरानी गृह प्रवेश करने वाली हैं. स्मृति ईरानी ने अमेठी में घर बनवाने की वजह भी बताई थी कि उनसे मिलने के लिए लोगों को दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा. जाहिर है, ये भी गांधी परिवार पर ही कटाक्ष था.  

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स्मृति ईरानी का दावा है कि राहुल गांधी के स्वागत के लिए भी प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर से लोग लाने पड़े हैं. ऐसा होने के पीछे स्मृति ईरानी की दलील है कि राहुल गांधी के उत्तर भारत और अमेठी के लोगों की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने की बात लोग अब तक भूले नहीं हैं. 

स्मृति ईरानी ने लगे हाथ राहुल गांधी को अपने खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती भी दे डाली है, अगर वो आश्‍वस्‍त हैं, तो वायनाड जाए बिना अमेठी से चुनाव लड़कर दिखाएं.

अमेठी को लेकर गांधी परिवार काफी कन्फ्यूज लगता है. बीच बीच में सुनने में आता है कि अमेठी से कांग्रेस राहुल गांधी की जगह प्रियंका गांधी को लाया जा सकता है, लेकिन लक्षण तो बिलकुल नहीं नजर आ रहे हैं. 

अगर प्रियंका गांधी राहुल गांधी के साथ आई होतीं तो एक बार ऐसी संभावनाओं को बल भी मिलता. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान तो प्रियंका गांधी को अमेठी में भी काफी सक्रिय देखा गया था, लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया हो. 

ये ठीक है कि यूपी चुनाव के बाद प्रियंका गांधी हिमाचल प्रदेश चुनावों में व्यस्त थीं. जब प्रियंका गांधी की जगह अविनाश पांडे को यूपी का प्रभारी बनाया गया, तब भी लगा था कि उनको अमेठी रायबरेली पर ज्यादा वक्त देने के लिए ऐसा किया गया होगा, लेकिन ये बात भी नहीं रही. 

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अगर प्रियंका गांधी सक्रिय होतीं तो और चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं, तो राहुल गांधी के लिए भी मौका था. अब तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता. अभी तो ऐसी कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती, जिससे लगे कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव जीत सकते हैं. 

2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद अमेठी और रायबरेली से अखिलेश यादव और मायावती ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, और हो सकता है इस बार भी ऐसा ही हो. तब भी जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन की सूरत न बनती हो.

लेकिन लगता नहीं कि राहुल गांधी भी अकेले बीजेपी यानी स्मृति ईरानी को अमेठी में चैलेंज कर पाएंगे. कांग्रेस को हर हाल में अखिलेश यादव के सपोर्ट की जरूरत पड़ेगी - और सिर्फ कागजी सपोर्ट नहीं, चुनाव प्रचार के दौरान मौजूदगी भी जरूरी होगी.

रायबरेली की जंग

अमेठी के मैदान से ही स्मृति ईरानी रायबरेली लोक सभा सीट पर भी निशाना साधने की कोशिश कर रही हैं. कांग्रेस की मुश्किल ये है कि सोनिया गांधी ने राजस्थान के जरिये राज्य सभा का रुख कर लिया है, और बीजेपी को रायबरेली के लोगों से भड़काने का मौका मिल गया है. 

वैसे सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के नाम एक पत्र लिखकर रिश्ते की अहमियत बताई थी, और पहले की तरह अपने लिए और परिवार के लिए पहले की तरह ही आगे के लिए भी सपोर्ट करते रहने की गुजारिश की थी.

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अमेठी में स्मृति ईरानी कहती हैं, किसी ने नहीं सोचा था... गांधी परिवार अपनी सीट छोड़ देगा? और फिर समझाती हैं कि रायबरेली के लोग जानते हैं कि कैसे अमेठी की सांसद यानी वो खुद और और यूपी कीा योगी आदित्यनाथ सरकार उनके लिए जो भी कर सकते हैं, कर रहे हैं.

अमेठी को छोड़ दिया जाये तो गांधी परिवार के लिए रायबरेली में अब भी गुंजाइश बनी हुई है. रायबरेली लोक सभा के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं. पांच में से एक सीट से बीजेपी की अदिति सिंह विधायक हैं. अदिति सिंह भी पहले कांग्रेस में ही हुआ करती थीं, और गांधी परिवार की करीबी समझी जाती थीं. 

रायबरेली के पांच में से चार विधायक समाजवादी पार्टी के हैं. लोक सभा की बात और होती है, लेकिन विधानसभा सीट पर काबिज होने का भी अपना असर तो होता ही है - अगर एक बार फिर राहुल गांधी को अखिलेश यादव का साथ मिल जाये तो मामला अभी उतना भी बिगड़ा नहीं है.
 

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