आखिर क्या है बघेल रियासत से श्रीराम का रिश्ता? जहां राजाधिराज बनकर राजगद्दी पर बैठे भगवान

Rewa News: रीवा की बघेल रियासत देश की ऐसी रियासत है जहां महाराजा राजगद्दी पर नहीं बैठते. उनकी राजगद्दी पर राजधिराज श्रीराम बैठते हैं. 500 वर्षों से इस परंपरा का निर्वाह अनवरत किया जा रहा है.

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बघेल रियासत की गद्दी पर राजधिराज श्रीराम बैठते हैं. (फोटो:aajtak) बघेल रियासत की गद्दी पर राजधिराज श्रीराम बैठते हैं. (फोटो:aajtak)

विजय कुमार विश्वकर्मा

  • रीवा,
  • 22 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 7:27 PM IST

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ समूचे देश में खुशी का माहौल है. ऐसे में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की चर्चा भी होना लाज़िमी है. हम भगवान श्रीराम को रघुकुल के राजा के रूप में मानते हैं लेकिन मध्य प्रदेश के विंध्य इलाके में राम को वनवासी राम के रूप में माना जाता है. श्रीराम ने यहां का पूरा इलाका लक्ष्मण को सौंपा था.

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रीवा रियासत ने लक्ष्मण को अपना राजा मानते हुए अनुसरण किया और श्रीराम को राजगद्दी पर बैठाया और खुद सेवक बने. बघेल रियासत देश की ऐसी रियासत है जहां महाराजा राजगद्दी पर नहीं बैठते. यहां गद्दी पर राजधिराज श्रीराम बैठते हैं. 500 वर्षों से इस परंपरा का निर्वाह अनवरत किया जा रहा है.
 
कहते हैं कि चित्रकूट न होता तो भगवान राम न होते. वनवास काल में भगवान श्रीराम ने सबसे ज्यादा वक्त बिताया था. यहां ही उन्होंने असुरों का विनाश करने का संकल्प लिया था. भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को जमुनापार से लेकर दक्षिण का पूरा इलाका सौंपा था. 

विंध्य में घने जंगलों के बीच बांधवगढ़ मौजूद है. बांधवगढ़ में वनवासी राम की बड़ी आस्था है. इसी मान्यता के चलते बघेल रियासत में राजाधिराज को गद्दी दी गई और खुद उसके सेवक बने.  500 वर्षों के इतिहास में पहली बार 22 जनवरी को राजाधिराज नगर भ्रमण के लिए निकाले जाएंगे. 

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पता हो कि राजा- महाराजाओं के शाही ठाट-बाट में राजगद्दी का अपना विशेष महत्व होता था, जिसकी गद्दी जितनी बड़ी, उसका वैभव उतरना बड़ा. ऐसे में भला कौन राजा इसमें बैठना नहीं चाहेगा. भले ही रियासतें ख़त्म हो गई हों, लेकिन रीवा में देश की एक ऐसी रियासत है जहां राजा राजगद्दी पर नहीं बैठते हैं. 

बघेल रियासत के 500 वर्षों के वैभवशाली इतिहास में महाराज ने राजाधिराज भगवान श्रीराम को राजगद्दी पर बैठाया है. बघेल रियासत के पित्त पुरुष व्याघ्रदेव उर्फ बाघ देव गुजरात से चलकर आए विंध्य आए. उन्हें यह जानकारी दी की यह लक्ष्मण का इलाका है.
 
चित्रकूट के आसपास इन्होंने अपना ठिकाना बनाया और राज्य का विस्तार करते हुए बांधवगढ़ तक पहुंच गए. बघेल रियासत ने लक्ष्मण को आराध्य माना. उनकी पूजा की और राजाधिराज को राजगद्दी में बैठाया, जबकि सेवक बनकर परपरा का निर्वाह किया. 

बांधवेश महाराजा पुष्पराज सिंह ने बताया कि रियासत की 37वीं पीढ़ी भी इस परंपरा का निर्वाह करती आ रही है. अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ ही रीवा रियासत में खुशी मनाई जा रही है. अब राजाधिराज को दूसरी बार नगर भ्रमण के लिए निकले.

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