बॉलीवुड के मशहूर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की उम्र में सुसाइड कर लिया है. सुशांत ने अपने मुंबई स्थित आवास पर रविवार को फांसी लगाकर जान दे दी. पुलिस को छानबीन में पता चला कि सुशांत पिछले छह महीने से डिप्रेशन में थे. सुशांत के दुनिया छोड़ जाने के बाद अब हर किसी के जेहन में बस एक ही सवाल है. बेशुमार पैसा और तरक्की मिलने के बावजूद कौन सा बड़ा दुख मशहूर हस्तियों को डिप्रेशन की तरफ धकेल देता है.
सफलता और शोहरत जिनके कदम चूमती है उनकी जिंदगी में आखिर ऐसा कौन सा दुख छिपा है जिससे वे दूर भागना चाहते हैं? पर्दे पर जिनकी जिंदगी इतनी रंगीन दिखाई देती है उसकी हकीकत क्या है? हांगकांग और चीन में कई लोकप्रिय हस्तियों को डिप्रेशन से निकालने वाली साइकोलॉजिस्ट कैंडिस लाम यू तुंग ने इस सवाल का जवाब दुनिया के सामने रखा है.
अपने मरीजों की पहचान छिपाते हुए उन्होंने बताया कि डिप्रेशन के शिकार उनके तकरीबन आधे क्लाइंट या तो बड़े सेलिब्रिटी हैं या फिर किसी बैंक के सीईओ या राजनीतिक के महारथी. कैंडिस कहती हैं कि मीडिया और पब्लिक के दबाव में भी अक्सर ये लोग डिप्रेशन या बाईपोलर डिसॉर्डर का शिकार होते हैं.
कैंडिस ने बताया कि ये लोग एक साधारण व्यक्ति की तुलना में ज्यादा मानसिक दबाव महसूस करते हैं. मेंटल डिसॉर्डर की वजह से इनमें घबराहट, इंसोमेनिया, हिंसक, ईटिंग डिसॉर्डर, सुसाइड और सेक्स एडिक्शन की समस्या काफी बढ़ जाती है. उम्मीद से ज्यादा तरक्की मिलने के बाद एकदम से फेम कम होने के कारण भी एक इंसान डिप्रेशन में जा सकता है.
डिप्रेशन के कई मरीज तो सेकेंड जेनरेशन के अमीर भी होते हैं जिन्हें जन्म के बाद से ही पाबंदियों में रहना बिल्कुल पसंद नहीं होता है. इनकी उपलब्धियों को अगर परिवार के बड़े नाम और शोहरत से जोड़ा जाए तो ये इन्हें एकदम रास नहीं आता है.
इसके अलावा बैंकिंग या दूसरे किसी पेशे में ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए कई लोगों को परिवार या रोमांटिक रिलेशनशिप जैसी चीजों का बलिदान देना पड़ता है. एक समय के बाद इन लोगों को सपोर्ट नेटवर्क एक आम आदमी की तुलना में काफी कमजोर पड़ने लगता है जो डिप्रेशन की वजह बन सकता है.
साल 2010 में सामने आई Health.com की एक रिपोर्ट कहती है कि कला के क्षेत्र काम कर रहे लोग उन 10 बड़े ग्रुप्स में पांचवें स्थान पर हैं जो सबसे ज्यादा डिप्रेशन का शिकार होते हैं. इनमें प्रोफेशनल केयर वर्कर्स, फूड सर्विस स्टाफ, सोशल वर्कर्स और हेल्थ केयर वर्कर्स शीर्ष पर है.
स्वीडन की एक मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोध का हवाला देते हुए कैंडिस कहती हैं कि क्रिएटिव फील्ड में काम करने वाले लोगों में डिप्रेशन की संभावना ज्यादा होती है. स्टडी में दावा किया गया है कि जिन परिवारों में सिजोफ्रेनिया या बाईपोलर डिसॉर्डर था उनमें पेशेवर आर्टिस्ट और साइंटिस्ट कॉमन थे.