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कोरोना वायरस से बचाव का एक और रास्ता बंद, WHO ने बताया खतरनाक

aajtak.in
  • 18 मई 2020,
  • अपडेटेड 3:40 PM IST
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कोरोना वायरस से बचाव के लिए हर्ड इम्युनिटी को एक अहम हथियार बताया जा रहा था. स्वीडन समेत कुछ देशों ने इस पर अमल भी किया. हालांकि, अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर्ड इम्युनिटी की अवधारणा को खतरनाक बताते हुए इसकी आलोचना की है. एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर माइकल रेयान ने हर्ड इम्युनिटी पर चर्चा की.

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डॉक्टर रेयान ने कहा कि यह सोचना ही गलत है कि कोई देश जादुई तरीके से कोरोना वायरस के खिलाफ अपनी आबादी में इम्युनिटी विकसित कर सकता है. उन्होंने बताया कि हर्ड इम्युनिटी का प्रयोग आमतौर पर यह जानने के लिए किया जाता है कि टीकाकरण नहीं करा पाने वालों की सुरक्षा के लिए आबादी के कितने लोगों का टीकाकरण करने की आवश्यकता है.

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डॉक्टर रेयान ने कहा, 'प्राकृतिक संक्रमण जैसे शब्दों के इस्तेमाल के समय हम लोगों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है. यह हर्ड इम्युनिटी की गणना को खतरनाक बना सकता है क्योंकि इसकी गणना का केंद्र बीमार और बीमारी से जूझ रहे लोग नहीं होते हैं.'

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हेल्थ एक्सपर्ट की चेतावनी

लोगों के मन में यह गलतफहमी है कि इस बीमारी से सिर्फ गंभीर मामले ही सामने आएंगे और बाकी लोगों को हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए संक्रमित होना पड़ेगा. लोगों को लगता है कि जितने ज्यादा लोग संक्रमित होंगे, उतनी जल्दी यह महामारी चली जाएगी और लोग फिर से सामान्य जीवन शुरू कर सकेंगे.

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डॉक्टर रेयान ने कहा, 'लेकिन सीरो महामारी विज्ञान के प्रारंभिक परिणाम इसके विपरीत हैं. पूरी दुनिया में संक्रमित लोगों में गंभीर रूप से बीमार लोगों का अनुपात  अच्छा खासा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पूरी आबादी में संक्रमित लोगों की संख्या हमारी अपेक्षा से बहुत कम है. इसका मतलब है कि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है. हम बार-बार कह रहे हैं कि यह एक गंभीर बीमारी है और लोगों की सबसे बड़ी दुश्मन है. जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है, तब तक एक व्यक्ति भी सुरक्षित नहीं है.'


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डब्ल्यूएचओ के निदेशक ने भी हर्ड इम्युनिटी का प्रयोग कर रहे देशों को इसके खतरनाक परिणाम के बारे में भी चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग सावधानियां बरतने में लापरवाही कर रहे हैं और किसी भी तरह का योगदान नहीं कर रहे हैं. इन्हें लगता है कि कुछ बुजुर्ग लोगों की मौत के बाद किसी जादू की तरह इनमें हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी.

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उन्होंने कहा, यह एक बहुत खतरनाक गणना है. हमें इस लड़ाई के अगले चरण की तरफ बढ़ रहे हैं. ऐसे में हमें अपनी प्राथमिकताएं तय करने की आवश्यकता है.'

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अन्य चुनौतियां

प्राकृतिक संक्रमण के जरिए हर्ड इम्युनिटी विकसित करने की दूसरी चुनौतियां भी हैं. हर्ड इम्यूनिटी में कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद एंटीबॉडीज आम तौर पर एक से तीन सप्ताह में विकसित होते हैं. कुछ लोगों में एंटीबॉडी का ह्यूमरल इम्यून रिस्पांस (Humoral immune response) विकसित नहीं हो पाता है. यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है.

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अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) में छपे एक लेख के अनुसार, 'एंटीबॉडी प्रतिक्रिया और क्लीनिकल सुधार के बीच संबंध अभी भी स्पष्ट नहीं हो सका है. हालांकि, नौ मरीजों पर की गई एक छोटी स्टडी के मुताबिक एंटीबॉडी प्रतिक्रिया के स्तरों और क्लीनिकल सिवेरिटी के बीच एक सीधा संबंध पाया गया.

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लेख के अनुसार, 'COVID-19 के क्लीनिकल सुधार में एंटीबॉडी और टाइटर्स हमेशा सहसंबंधित नहीं पाए गए.' इसके अलावा, हल्के संक्रमण एंटीबॉडी के उत्पादन से पहले ही ठीक हो सकता है.'

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इसके अलावा, अभी तक इसका पता भी फिलहाल नहीं चल पाया है कि वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी कितनी देर तक काम करता है. हालांकि एक स्टडी में पाया गया है कि यह लक्षण शुरू होने से 40 दिनों तक बने रहते हैं.

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