कोरोना के इस काल में पूरी दुनिया की उम्मीद एक आदर्श वैक्सीन पर टिकी हैं. कोरोना वायरस की दो वैक्सीन के शुरुआती ट्रायल में अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं. इसे लेकर डॉक्टर्स काफी उत्साहित तो हैं, लेकिन भविष्य में आने वाली बड़ी चुनौतियों और बाधाओं को लेकर चेतावनी भी दे रहे हैं.
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चीन की कंपनी 'कैनसिनो बायोलॉजिक्स' और 'ऑक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी'-'एस्ट्राजेनेका' द्वारा विकसित की गई कोरोना वैक्सीन के
शुरुआत ट्रायल्स में अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं. सेफ्टी और इम्यून के
लिहाज से दोनों ही काफी असरदार नजर आ रही हैं. अब ट्रायल के अगले चरण में
पता चलेगा कि आखिर संभावित वैक्सीन इंसान को संक्रमण से बचा सकती है या
नहीं.
अटलांटा में 'एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन' के
एग्जीक्यूटिव एसोसिएटिव डीन डॉ. कार्लोस डेल रियो कहते हैं, 'अगर हम कोई
विमान बना रहे हैं तो समझ लीजिए अभी हम उसके प्रोडक्शन लेवल पर हैं. अभी
सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि ये विमान आपको सुरक्षित जमीन पर उतार सकता
है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये मुझे यहां से पैरिस लेकर जा सकता है.'
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वैक्सीन
की खोज में अब तक हम असाधारण गति से आगे बढ़े हैं. आमतौर पर, एक वैक्सीन
की टेस्टिंग और ट्रायल के कई अलग-अलग स्टेज को पूरा होने में एक दशक तक लग
जाता है. लेकिन 6,00,000 लाख से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली
अचानक फैली इस महामारी का ही नतीजा है कि दुनियाभर में दर्जनों वैक्सीन
कैंडिडेट्स क्लिनिकल ट्रायल में हैं.
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ऑक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका और कैनसिनो बायोलॉजिक्स की वैक्सीन टेस्टिंग के
तीसरे चरण में पहुंच चुकी हैं, जिसे ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल कहा जाता है.
टेस्टिंग के इस चरण में वैज्ञानिक देखेंगे कि क्या ये वैक्सीन वाकई में
कोरोना वायरस के इंफेक्शन को खत्म कर सकती हैं. डेल रिया ने कहा, 'यह
सामान्य नहीं है कि किसी वैक्सीन के शुरुआती चरण में अच्छे रिजल्ट देखने को
मिले हों, लेकिन बाद में वो फेल हो गई.'
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HIV के बारे में उदाहरण
देते हुए उन्होंने कहा, 'ऐसी कई वैक्सीन हैं जो इस संक्रमण में इम्युनिटी
को बेहतर करने का काम करती हैं. लेकिन तीसरे चरण में जाते ही ये इंसान को
नहीं बचा पातीं. इसके बाद भी रिजल्ट पॉजिटिव ही आता है.'
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ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका
की वैक्सीन ने एंटीबॉडी और टी सेल्स दोनों के प्रोडक्शन को ट्रिगर किया
है, जो वायरस के सेल्स को खोजकर उन्हें नष्ट करते हैं. ब्राजील, दक्षिण
अफ्रीका और ब्रिटेन में हुए ऑक्सफोर्ड के क्लीनिकल ट्रायल में अच्छे रिजल्ट
सामने आए हैं. जबकि कैनसिनो के ब्राजील में हुए नतीजे भी कुछ ऐसे ही हैं.
इसमें ये देखना जरूरी हो गया है कि दुनिया की विविध आबादी पर कौन सी
वैक्सीन ज्यादा बेहतर साबित होती है.
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डेल रियो ने बताया कि पृथ्वी
पर इस बीमारी ने विविधता के आधार लोगों को कम या ज्यादा नुकसान पहुंचाया
है. उन्होंने कहा, 'यहां अमेरिका में मैं बीमारी से ज्यादा प्रभावित हुए
लोगों को रिसर्च में नामांकित होने देखना चाहता हूं. हमें अफ्रीकन अमेरिकन,
हिस्पानिक और बुजु्र्गों को स्टडी में शामिल करने की जरूरत है. अगर इसमें
सिर्फ मिडिल क्लास के गोरे लोगों को ही शामिल किया जाता है तो ऐसी स्टडी का
कोई फायदा नहीं है.'
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वैक्सीन के खतरनाक साइडइफेक्ट्स पर भी
वैज्ञानिकों की नजर होगी. परीक्षण के शुरुआती चरणों में दोनों वैक्सीन के
मामूली साइडइफेक्ट देखेने को मिले, जैसे बुखार और सिरदर्द. यूनिवर्सिटी ऑफ
साउथ कैलिफॉर्निया के प्रोफेसर पिन वैंग का कहना है कि यह वायरस एकदम नया
है, इसलिए इसकी वैक्सीन बनाना भी काफी चुनौतीपूर्ण है.
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